दुनिया के कई हिस्सों में फैली हिंसा के इस दौर में शांति की बात करना बेहद जरूरी है। दुनिया को शांति का संदेश देने वाले महात्मा गांधी ने कहा था कि आंख के बदले आंख की प्रवृति पूरी दुनिया को अंधी कर देगी। शांति ही पूरी मानव जाति को प्रगति के रास्ते पर आगे ले जा सकती है। विश्व में शांति और युद्ध के खात्में क् लिए लगातार कई स्तर पर प्रयास हो रहे हैं और इन्हीं प्रयासों में 2016 का शांति और युद्ध की समाप्ती का घोषणा पत्र बड़ी भूमिका निभा रहा है। इसी की दूसरी वर्षगांठ पर दिल्ली में बुधवार (14 मार्च) को एक सम्मेलन हुआ।

विश्व में शांति और युद्ध की समाप्ती के घोषणा पत्र के स्वीकार करने की दूसरी वर्षगांठ पर दिल्ली में वार्षिक शिखर सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में कई हस्तियों ने अपने विचार रखे। सम्मेलन में मुख्य वक्ता के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रदीप राय, धर्म और ज्ञान के विश्व संगठन के अध्यक्ष सईद अब्दुल्ला तारिक, मुस्लिम महिला कल्याण संगठन से सुश्री मामदुहा माजिद, और रिचिंग स्काई फाउंडेशन की सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक सुनिधि कांत ने हिस्सा लिया। इस मौके पर अपने संबोधन में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रदीप राय ने वासुदेव कुटुम्बकम की बात की। उन्होंने कहा कि विकास का ना होना अंतर्राष्ट्रीय अराजकता का कारण है। इसके अलावा शिक्षा की भी जिम्मेदारी है, लोगों को भारत की शांतिपूर्वक सभ्यता से सीख लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत किस्मत वाला है कि हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। बल्कि यह कहा जाए कि विकास की असली कूंजी ही लोकतंत्र है और लोकतंत्र ही अराजकता और हिंसा पर वार है।

प्रदीप राय ने यह भी कहा कि हथियारों का इस्तेमाल सरंक्षण, प्रतिररोध और बचाव के लिए किया जा सकता है लेकिन यह तय करना होगा कि हमे कैसे इसका इस्तेामाल करना है। इसमें मानव अधिकार एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 14 मार्च 2016 को दक्षिण कोरिया के सिओल में शांति और युद्ध की समाप्ति के घोषणा पत्र को स्वीकार किया गया। इसका उद्देश्य दुनिया में सशस्त्र संघर्षों को रोकने, समाप्त करने और शांति स्थापित करना है। इस घोषणा पत्र में जो प्रावधान किए गए हैं उन्हें परी दुनिया के देशों को लागू करना चाहिए ताकि युद्ध की समाप्ती हो, विश्व में शांति बहाल हो और खून खराबा बंद हो। शांति और युद्ध की समाप्ति के घोषणा पत्र को अब कई देशों के प्रमुखों का व्यापक समर्थन मिल रहा है।

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