सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की ओर से आवंटित जमीनों पर बने प्राइवेट स्कूलों की कार्यसमिति की याचिका खारिज कर दी है। समिति ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने उनसे फीस बढ़ोतरी से पहले सरकार की इजाजत लेने को कहा था।

चीफ जस्टिस जेएस केहर, जस्टिस एनवी रमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि इन स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले सरकार की अनुमति लेनी ही होगी क्योंकि वे डीडीए की ओर से आवंटित जमीन पर बने हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल 19 जनवरी को दिए अपने आदेश में कहा था कि डीडीए की आवंटित जमीन पर स्थित गैर सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूल पैसा कमाने और शिक्षा के व्यवसायीकरण में शामिल नहीं हो सकते। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय को यह निर्देश दिया था कि वह डीडीए की ओर से आवंटित जमीन पर बने मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में फीस बढ़ाने से जुड़े आवंटन पत्र की शर्तों का पालन तय करे।

नियम तोड़ने पर कानूनी कार्रवाई

हाईकोर्ट ने डीडीए को भी निर्देश दिया था कि वह ऐसे निजी स्कूलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे जो फीस वृद्धि से संबंधित आवंटन पत्र की शर्तों का उल्लंघन करते हों। हाईकोर्ट ने यह फैसला एक एनजीओ की जनहित याचिका पर सुनाया था। दिल्ली में ऐसे लगभग 400 स्कूल हैं, जो डीडीए की जमीन पर बने हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से दिल्ली के अभिभावक यकीनन राहत महसूस कर रहे होंगे। दिल्ली में पब्लिक स्कूलों का फीस बढ़ाना शुरु से ही एक बड़ा मुद्दा है। ज्यादातर माता-पिता इससे परेशान रहते हैं। सबसे ज्यादा तकलीफ उन्हें तब होती है, जब इसे लेकर उनकी कहीं सुनवाई नहीं होती और स्कूल जब चाहे तब फीस बढ़ाकर अपनी मनमर्जी से उनपर थोप देते हैं।

दिल्ली के सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा बदलने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के सामने अभी भी काफी लंबा रास्ता तय करने की चुनौती है। उन्हें ये तय करना होगा कि दिल्ली के पब्लिक स्कूलों में छात्रों को सही शिक्षा मिले और उसका भार भी अभिभावकों पर ज्यादा न पड़े, चाहे इसके लिए सरकार को कड़े नियमों की चाबुक ही क्यों न चलानी पड़े।

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