कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और मनमोहन सरकार में विदेश मंत्री का दायित्व संभाल चुके कांग्रेस के पूर्व नेता एस एम कृष्णा ने एक चौंका देने वाला खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि काम में राहुल गांधी के निरंतर हस्तक्षेप के कारण उन्हें सरकार और कांग्रेस पार्टी से अलग होना पड़ा। बीजेपी में शामिल हो चुके कृष्णा ने कहा कि उन्हें पार्टी से अलग होने के लिए मजबूर किया गया।

उन्होनें कहा कि मुझे विदेश मंत्री का पद इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि राहुल के लगातार हस्तक्षेप के कारण मेरा जिम्मेदारी संभाल पाना मुश्किल हो चुका था। एसएम कृष्णा ने 2009-2012 तक यूपीए सरकार में विदेश मंत्री थे। उन्होंने दावा किया कि मंत्रालय के बंटवारों पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुछ भी नहीं कहते थे। कृष्णा ने कहा कि 10 साल पहले राहुल गांधी केवल एक सांसद थे और पार्टी में किसी पद पर नहीं थे मगर वह हर काम में हस्तक्षेप करते थे।

रिपोर्ट के मुताबिक, एसएम कृष्णा ने कहा, ‘मैं 3.5 साल तक विदेश मंत्री था और मनमोहन सिंह ने उसको लेकर कुछ नहीं कहा था। राहुल गांधी उस वक्त कुछ भी नहीं थे और वह महासचिव भी नहीं थे। लेकिन उन्होंने यह कहा कि जो लोग 80 के हो गए हैं वह मंत्री नहीं बन सकते। जब मैंने यह सुना तो अपना इस्तीफा बेंगलुरु में सौंप दिया।

गौरतलब है कि कृष्णा कांग्रेस छोड़ने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए थे। हालांकि वह सक्रिय राजनीति में तो नहीं रहे लेकिन उन्होंने पिछले विधानसभा चुनावों में कर्नाटक के कांग्रेस नेता सिद्धारमैया के खिलाफ प्रचार किया था।

50 साल तक कांग्रेस से जुड़े रहने के बाद एसएम कृष्णा ने साल 2017 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ गए। एसएम कृष्णा ने साथ ही कहा कि राहुल गांधी सरकार में किसी के प्रति जवाबदेही नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘बहुत सारे मुद्दे थे, जिन्हें कभी भी मंत्रियों तक के सामने नहीं लाया गया। कैबिनेट एक अध्यादेश को पास करने के लिए उस पर चर्चा कर रहा था, लेकिन राहुल गांधी ने बाहर उस अध्यादेश की कॉपी फाड़ दी। यह वह था जिसे वह अतिरिक्त संवैधानिक प्रभुत्व कहते हैं। वह किसी के प्रति जवाबदेही नहीं थे।

एसएम कृष्णा का कहना है कि कांग्रेस सरकार में घोटाले गठबंधन सरकार की वजह से हुए। उन्होंने कहा, ‘यूपीए के दूसरे कार्यकाल में मैं विदेश मंत्रालय संभाल रहा था. वहां काम करने का माहौल नहीं था। वह गठबंधन की सरकार थी, जिसकी वजह से कोई एक दूसरे को कुछ नहीं कहता था। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, लेकिन उनका अपने मंत्रिमंडल पर कोई नियंत्रण नहीं था। इसलिए उस समय कई घाटाले हुए।

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