चुनावों में कितनी है Social Media की भूमिका, जानिए Election के प्रचार-प्रसार में कितना खर्च करती हैं पार्टियां

देश में इन दिनों दो राज्यों (गुजरात ओर हिमाचल प्रदेश) में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं ओर इन चुनावों को लेकर भी चुनाव आयोग सोशल मीडिया (Social Media) को लेकर विशेष निगरानी कर रहा है.

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चुनावों में कितनी है Social Media की भूमिका, जानिए Election के प्रचार-प्रसार में कितना खर्च करती हैं पार्टियां - APN News
Social Media and Election ads

पिछले दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के ‘समिट फॉर डेमोक्रेसी’ (Summit For Democracy) मंच के तहत भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India) द्वारा आयोजित चुनाव प्रबंधन निकायों (Election Management Bodies) के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने सोशल मीडिया (Social Media) साइटों को अपने प्लेटफार्म से फर्जी खबरों को सक्रिय रूप से पहचान को लेकर अपनी “एल्गोरिदम शक्ति” (Algorithm Power) का उपयोग करने का आग्रह किया.

देश में इन दिनों दो राज्यों (गुजरात ओर हिमाचल प्रदेश) में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं ओर इन चुनावों को लेकर भी चुनाव आयोग सोशल मीडिया (Social Media) को लेकर विशेष निगरानी बरत रहा है.

2014 के बाद तेजी से बदला माहौल

Social Media पिछले 7-8 सालों में खासकर 2016 के बाद से संचार के एक आवश्यक उपकरण के रूप में उभरा है और इसने राजनीतिक लामबंदी के नए तरीकों का निर्माण किया है और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया है; जैसे कि ट्वीट करके अपने राजनीतिक पार्टी को स्पोर्ट करना, स्टेटस अपडेट करना, YouTube पर ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से समर्थन व्यक्त करने जैसे कई तरीके शामिल हैं.

अनुमानों के अनुसार भारत में लगभग 50 करोड़ से अधिक सोशल मीडिया उपयोगकर्ता हैं जिसमें से अधिकतर की आयु 18-35 वर्ष के बीच है. इस प्रकार, चुनाव के दौरान लोगों के बीच राय बनाने में सोशल मीडिया बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. राजनीतिक गतिविधियों के लिए सोशल मीडिया का उपयोग लोगों की राजनीतिक प्रभावकारिता, राजनीतिक भागीदारी और राजनीतिक ज्ञान को प्रभावित करता है.

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कितना खर्च

मार्च 2022 में हुए पांच राज्यों (पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर) में हुए विधानसभा चुनावों से पहले देश के शीर्ष छह राजनीतिक दलों ने फेसबुक और गूगल विज्ञापनों पर कम से कम 31 करोड़ रुपये खर्च किए थे. ये विश्लेषण उन विज्ञापनदाताओं का जिन्होंने Google के लिए ₹50,000 और मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम) के लिए ₹1,00,000 रुपए से अधिक खर्च किए. इस विशलेषण में आधिकारिक तौर पर पार्टियों, उनके नेताओं या किराए की एजेंसियों को शामिल किया गया था.

चुनाव आयोग को सौंपे गए राजनीतिक दलों की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार 2015 और 2020 के बीच देश के सात मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दलों और 11 क्षेत्रीय दलों सहित 18 राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों पर 6,564 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए जिसमें से अकेले प्रचार पर 3,400 रुपये या 52.3 फीसदी से अधिक खर्च किए.

चुनाव आयोग को दी गई जानकारी के अनुसार 2019-’20 में, भारत के 18 राजनीतिक दलों ने अपने कुल चुनावी खर्च का लगभग 49 फीसदी प्रचार या प्रचार पर खर्च किया. 2019-’20 (लोकसभा चुनाव भी शामिल) में पार्टियों ने कुल मिलाकर 2,800 करोड़ रुपये खर्च किए. इसमें से 1,300 करोड़ रुपये से अधिक प्रचार या प्रचार पर खर्च किए गए और इसका 57.6 फीसदी यानि 700 करोड़ रुपये से अधिक अकेले भाजपा ने खर्च किया. इसके बाद कांग्रेस (29.5 फीसदी), राकांपा (NCP) (3.6 फीसदी) और आम आदमी पार्टी (1.7 फीसदी) का स्थान रहा.

राजनीतिक दल क्यों उपयोग करते हैं सोशल मीडिया?

राजनीतिक दल Social Media पेजों के माध्यम से लोगों से जुड़ने और उन्हें उनकी कल्याणकारी गतिविधियों के बारे में अपडेट करने और अपने प्रतिद्वंद्वी दलों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए भी करते हैं. सोशल मीडिया एक नया तरीका निकालने में भी मदद कर रहा है जिसके जरिए लोग जानकारी साझा कर सकते हैं, खोज कर सकते हैं और अपनी जागरूकता बढ़ा सकते हैं.

फेक न्यूज के फैलने के संबंध में चिंताएं

गलत सूचना (Misinformation) को रोकने के लिये सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की कंटेंट मॉडरेशन संचालित रणनीति एक रेड-हेरिंग (Red herring) है जिसे व्यापार मॉडल के हिस्से के रूप में दुष्प्रचार बढ़ाने से रोकने को लेकर कहीं बड़ी समस्या से ध्यान हटाने के लिये डिजाइन किया गया है. इसके साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तेजी से सार्वजनिक अभिव्यक्ति (Expression) का प्राथमिक आधार बनते जा रहे हैं, जिस पर मुट्ठी भर व्यक्तियों का कब्जा है.

पुरी दुनिया इस समय बड़े स्तर पर गलत सूचनाओं का सामना कर रही है इसका सबसे बड़ा कारण सोशल मीडिया पर रोक लगाने में सक्षम होने के रास्ते में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता (Transparency) की कमी है.

भारत जैसे देश में आज भी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गलत सूचनाओं को रोकने के लिये एक तंत्र को विकसित करने में नाकाम रहे हैं और जब कोई बड़ी घटना होती है या सार्वजनिक दबाव आता है तो इसके चलते गलत तरीके से रिस्पांड करते हैं. हर तरह की घटना पर एक समान दृष्टिकोण, कार्रवाई और जवाबदेही के अभाव ने सूचना पारिस्थितिकी तंत्र को खराब कर दिया है.

प्रभावशाली लोग उठाते हैं फायदा

Social Media प्लेटफॉर्म हमेशा से ही अपने फायदे को देखते हैं. इसी नीति का फायदा उठाते हुए इसका उपयोग प्रभावशाली और शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा निजी राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिये गलत सूचनाओं का प्रसार आसानी से किया जाने लगा है. सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार, घृणा और खुली धमकियों ने भारत की वास्तविक स्थिति को भी नुकसान पहुंचाया है और इससे कहीं न कहीं लोकतंत्र को भी खतरा महसूस किया जा रहा है.

इसके अलावा सोशल मीडिया के जरिये फैलाई गई गलत सूचनाएं अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा, बड़े स्तर पर सामाजिक ध्रुवीकरण, हिंसा जैसे आम आदमा के मुद्दों से सीधे तौर पर जुडी हुई हैं.

सोशल मीडिया एक ओर किसी के लिये बिना किसी असुरक्षा के अपने विचार रखने में सहायक होता है तो वहीं या उपयोगकर्ता द्वारा जारी की गई किसी भी हद तक गैर जिम्मेदाराना झूठी जानकारी को बड़े स्तर पर फैला सकता है.

चुनाव में सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान

फायदे

हाल के वर्षों में राजनीतिक रैलियों से लेकर चुनावी घोषणाएं का लोगों तक पहुंचना महत्त्वपूर्ण हो गया हैं. इसी के साथ अब लोगों की भावना की समझने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों की जगह ट्वीटर / फेसबुक सर्वेक्षणों ने ले लिया है.

सोशल मीडिया प्लेटफार्म को आम लोगों के सात-साथ नेता भी तेजी से प्रचार, प्रसार या जानकारी प्राप्त करने या तर्कसंगत और महत्त्वपूर्ण बहस में योगदान देने के लिये अपना रहे हैं ओर आगामी कार्यक्रमों, पार्टी कार्यक्रमों और चुनाव एजेंडे को लेकर लगातार अपडेट करते रहते हैं.

नुकसान

सोशल मीडिया राजनेताओं को लोकप्रिय बनाने और अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने का साधन बन गया है. इसके साथ ही विपक्षी दलों को दोष देने और आलोचना करने के लिये सोशल मीडिया का बड़े स्तर पर किया जा रहा है, इसके साथ ही भ्रामक एवं गलत तथ्यों द्वारा जानकारी को गलत तरीके से पोस्ट किया जाता है जिससे राजनीतिक गतिरोध पैदा होता है.

सोशल मीडिया पर विज्ञापन के लिये बहुत ज्यादा खर्च की आवश्यकता होती है. जिससे केवल साधन संपन्न दल ही इतना खर्च कर सकते हैं और वे अधिकांश मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं. वहीं चुनावों के दौरान सोशल मीडिया पर फेक न्यूज के प्रसार से लोगों का दृष्टिकोण भी प्रभावित होता है.

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