Subhas Chandra Bose : आखिर सुभाष चन्द्र बोस ने अध्यक्ष रहते हुए ही क्यों छोड़ दी थी कांग्रेस?

भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब ‘The Coalition Years’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि, 1930 के दशक के आखिर में गांधीजी और बोस (Subhas Chandra Bose) के रिश्तों में आई दरार कांग्रेस के इतिहास का एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय है।'

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Subhas Chandra Bose : आखिर सुभाष चन्द्र बोस ने अध्यक्ष रहते हुए ही क्यों छोड़ दी थी कांग्रेस? - APN News
Mahatma Gandhi - Subhas Chandra Bose and Patel

लंबे समय के इंतजार या यूं कहें कि दो दशक के बाद 2022 में अक्टूबर में कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष का चुनाव हुआ था जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे को दल का अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस के 138 सालों के इतिहास में अब तक 62 नेता पार्टी की बागडोर संभाल चुके जिनमें से एक सुभाष चन्द्र बोस (Subhas Chandra Bose) भी एक हैं।

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Subhas Chandra Bose जब बने थे कांग्रेस के अध्यक्ष…

138 साल के कांग्रेस के इतिहास में बहुत कम ही मौके आये है जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है। वहीं, ज्यादातर बार पार्टी अध्यक्ष को निर्विरोध चुनाव हुआ है। ऐसा हा एक चुनाव हुआ था 1939 में जब कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ तो इसमें एक तरफ थे महात्मा गांधी द्वारा समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया (Sitaramayya) तो दूसरी तरफ थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस। इस चुनाव को सुभाष बोस (Subhas Chandra Bose) जीत तो गए लेकिन गांधी और उनके समर्थकों से लगातार बढ़ती जा रही दूरी और कड़वाहट की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

Bose and Nehru
Bose and Nehru

1939 में हुए चुनाव से पहले नेताजी सुभाष बोस को 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्विरोध रूप से चुना गया था। 1939 में अभी के मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के त्रिपुरी (Tripuri) गांव में कांग्रेस का अधिवेशन होना था। महात्मा गांधी की ये इच्छा था कि अबुल कलाम आजाद त्रिपुरी में होने वाले अधिवेशन की अध्यक्षता करें जिससे पिछे का मकसद था कि इससे सांप्रदायिक सौहार्द के लिहाज से अच्छा संदेश जाएगा। दरअसल उस समय हिंदू और मुसलमानों के बीच खाई लगातार गहरी ही होती जा रही थी और ब्रितानी हुकूमत भी इसको लगातार बढ़ावा दे रही थी।

लेकिन गांधी की इस सोच में सबसे बड़ा पेंच जब फंसा जब सुभाष चन्द्र बोस ने भी अपनी उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया। वहीं, दूसरी ओर बारदोली में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक में मौलाना अबुल कलाम आजाद की कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवारी का ऐलान किया जा चूका था। हालांकि बाद में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली।

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मौलाना के पीछे हटने के बाद नेहरू को अध्यक्ष देखना चाहते थे गांधी

जब मौलाना अबुल कलाम आजाद ने सुभाष (Subhas Chandra Bose) के खिलाफ पिछे हटने का फैसला लिया तो गांधीजी ने जवाहर लाल नेहरू (Nehru) को चुनाव लड़ने के लिए राजी करने की कोशिश की। इसको लेकर गांधीजी ने नेहरू को एक पत्र लिखकर कहा कि, ‘मौलाना साहब कांटों भरा ताज नहीं पहनना चाहते हैं। अगर आप कोशिश करना चाहते हैं तो कीजिए। अगर आप भी चुनाव नहीं लड़ते हैं या वह (सुभाष बोस) भी नहीं सुनते हैं तो पट्टाभि (Sitaramayya) ही एकमात्र विकल्प दिख रहे हैं।’

पट्टाभि सीतारमैया की उम्मीदवारी

जब गांधीजी द्वारा लिखे गए पत्र के बाद भी नेहरू ने चुनाव लड़ने से इनका कर दिया तो महात्मा गांधी ने आंध्र प्रदेश से आने वाले पट्टाभि सीतारमैया (Bhogaraju Pattabhi Sitaramayya) का नाम तय कर दिया गया। वहीं, 29 जनवरी 1939 को होने वाले चुनाव से कुछ दिन पहले सरदार बल्लभ भाई पटेल के अलावा तमाम बड़े कांग्रेसी वर्किंग कमिटी के सात नेताओं ने संयुक्त बयान जारी करते हुए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर पुनर्विचार की अपील की थी ताकि पट्टाभि सीतारमैया निर्विरोध रूप से कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जा सकें।

Subhas Chandra Bose
Subhas Chandra Bose

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) चाहते थे कि नेहरू भी कांग्रेस के अन्य नेताओं की तरह संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करें लेकिन उन्होंने दस्तखत नहीं किये। इसके बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने पटेल और वर्किंग कमिटी के अन्य सदस्यों के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि जब चुनाव में दो सहयोगी ही लड़ रहें हो तो वर्किंग कमिटी के सदस्यों का सार्वजनिक तौर पर किसी एक का पक्ष नहीं लेना चाहिए। बोस ने 19 जनवरी 1939 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में जहां 1,580 मत हासिल किये तो वहीं महात्मा गांधी द्वारा समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को केवल 1,377 वोट ही हासिल कर पाए।

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पट्टाभि की हार को गांधी ने बताया था अपनी हार

सुभाष चन्द्र बोस की जीत के बाद महात्मा गांधी ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि पट्टाभि सीतारमैया की हार ‘उनसे ज्यादा मेरी हार’ है। गांधी ने कहा कि, ‘मुझे उनकी (सुभाष बोस की) जीत से खुशी है’ और चूंकि मौलाना आजाद साहिब के नाम वापस (अध्यक्ष पद के चुनाव से) लेने के बाद मैंने ही पट्टाभि को चुनाव लड़ने को कहा था कि लिहाजा ये उनकी हार से ज्यादा मेरी हार है।’

दिवंगत कांग्रेसी नेता और भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब ‘The Coalition Years’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि, 1930 के दशक के आखिर में गांधीजी और बोस (सुभाष चन्द्र बोस) के रिश्तों में आई दरार कांग्रेस के इतिहास का एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय है।’

Gandhi and Subhas 1
Gandhi and Subhas

त्रिपुरी अधिवेशन

सुभाष चन्द्र बोस के बिमार होने के बावजूद ही 1939 में कांग्रेस का त्रिपुरी (जबलपुर, मध्य प्रदेश) अधिवेशन शुरू हुआ जो पांच दिनों तक यानी 8 से 12 मार्च तक चला। महात्मा गांधी ने इस अधिवेशन से दूरी बनाए रखी और वह राजकोट चले गए। अपनी बीमारी के कारण सुभाष चन्द्र बोस अधिवेशन में स्ट्रेचर पर पहुंचे। त्रिपुरी अधिवेशन में कांग्रेस की अंदरूनी कलह और गुटबाजी खुलकर लोगों के सामने आ गई।

जब बोस ने छोड़ दी थी कांग्रेस

8 से 12 मारच 1939 को हुए त्रिपुरी अधिवेशन (Tripuri Session) के अगले ही महीने यानी अप्रैल 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने न सिर्फ कांग्रेस के अध्यक्ष पद को छोड़ दिया बल्कि पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। बोस ने 3 मई 1939 को कलकत्ता की एक रैली में फॉरवर्ड ब्लॉक (All India Forward Bloc) की स्थापना की घोषणा की जिसके साथ ही उनकी राह कांग्रेस से भी अलग हो गई।

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