Bhopal Gas Tragedy की 37वीं बरसी, 15,000 लोगों की मौत, हजारों की संख्या में अपंग, इस तरह हुआ था विश्व का सबसे बड़ा औद्योगिक आपदा

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Bhopal Gas Tragedy
Bhopal Gas Tragedy

भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) की आज 37वीं बरसी है। इसे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से भी जाना जाता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक आपदा थी। 2-3 दिसंबर 1984 में भोपाल में छोला रोड स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी में जहरीली गैस का रिसाव हुआ। हादसा रात के समय हुआ था जब अधिकतर लोग सो रहे थे। इस घटना में 15000 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी। हजारों की संख्या में लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं। ये लोग आज भी उचित मुआवजा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

कंपनी का मालिक

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यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी चलाने वाले मालिक का नाम वारेन एंडरसन था। गैस कांड में उसे मुख्य आरोपी बनाया गया था। वारेन को गिरफ्तार भी किया गया। पर महज चार घंटे के भीतर उसे छोड़ दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद वो अमेरिका भाग गया। उसे कोई भी सरकार भारत वापस नहीं ला पाई। 92 साल की उम्र में 9 सितंबर 2014 को वारेन एंडरसन की अमेरिका के फ्लोरिडा में मौत हो गई।

भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। इस हादसे को 37 साल बीत चुके हैं लेकिन इसकी झलक आज भी वहां पर दिखती है। बच्चे आज भी अपंग ही जन्म लेते हैं। उस समय सरकार ने पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए Bhopal Memorial & Gas Rahat नाम से Hospital बनवा दिया था। पर आलम यह है कि पीड़ितों को यहां पर ठीक से इलाज नहीं मिलता है। कोरोना काल में सरकार ने पूरे अस्पताल को कोविड वार्ड में बदल दिया था।

सरकार की नाइंसाफी

भोपाल गैस कांड में जो गुजर गए उनकी याद में तो परिवारजनों का दिन रात कट जा रहा है लेकिन जिन महिलाओं ने अपने पती को खो दिया है उनका यह दर्द जीवन के साथ ही खत्म होगा। विधवा पेंशन योजना के तहत महिलाओं को सरकार 1000 पेंशन दे रही है लेकिन अभी भी कई ऐसी महिलाएं है जो इस योजना से वंचित हैं। ZEE News में छपी रिपोर्ट के अनुसार अभी भी 500 ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें पेंशन नहीं मिल रहा है।

पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए वहां पर कई संस्था काम कर रही हैं। गैस कांड में पीड़ितों के साथ जो हो गया उसे न किसी संस्था का काम बदल सकता है नहीं सरकार के पेंशन से महिलाओं का दर्द खत्म होने वाला है।

देख कर अनदेखा

नवम्बर 1984 तक कारखाना के कई सुरक्षा उपकरण न तो ठीक हालात में थे और न ही सुरक्षा के अन्य मानकों का पालन किया गया था। स्थानीय समाचार पत्रों के पत्रकारों की रिपोर्टों के अनुसार कारखाने में सुरक्षा के लिए रखे गये सारे मैनुअल अंग्रेज़ी में थे जबकि कारखाने में कार्य करने वाले ज़्यादातर कर्मचारी को अंग्रेज़ी का बिलकुल ज्ञान नहीं था। साथ ही, पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेन्ट ने भी काम करना बन्द कर दिया था। समस्या यह थी कि टैंक संख्या 610 में नियमित रूप से ज़्यादा एमआईसी गैस भरी थी तथा गैस का तापमान भी निर्धारित 4.5 डिग्री की जगह 20 डिग्री था। मिक को कूलिंग स्तर पर रखने के लिए बनाया गया फ्रीजिंग प्लांट भी पॉवर का बिल कम करने के लिए बंद कर दिया गया था। सब कुछ देख कर अनदेखा किया गया…

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