Book Review: ‘महाभारती’ की द्रौपदी अबला नारी नहीं बल्कि कर्म और पुरुषार्थ की प्रतिमूर्ति है

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Book Review: महाभारत की कहानी हमारे देश के घर-घर में मशहूर है। इतिहास में ‘जयसंहिता’ के रूप में जानी जाने वाली महाभारत की लोकप्रियता की एक वजह यह भी है कि इससे रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े संदेश मिलते हैं। गीता चूंकि इस महाकाव्य का हिस्सा है। इसलिए गीता के चलते भी यह रचना इतना महत्व रखती है। महाभारत का हर एक चरित्र एक शिक्षा देता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो भले ही महाभारत को वास्तविकता माना जाए, मिथक माना जाए या कोई किंवदंति लेकिन भारतीय समाज के लिए इसकी प्रासंगिकता किसी भी लिहाज से कम नहीं है।

हिंदी की लेखिका चित्रा चतुर्वेदी (Chitra Chaturvedi) ‘कार्त्तिका’ का उपन्यास ‘महाभारती’ इसी महाभारत के एक चरित्र द्रौपदी के जीवन पर आधारित है। उपन्यास की शुरुआत उस जगह से होती हैं जहां कौरव और पांडव दीक्षा पाने के उपरांत अस्त्र-शस्त्र संचालन का प्रदर्शन करते हैं। इस अवसर पर द्रौपदी भी वहां पहुंचती हैं और उन्हें गांडीवधारी अर्जुन पसंद आ जाते हैं।

लाक्षागृह की घटना के बाद अर्जुन ब्राह्मण के वेश में द्रौपदी के स्वयंवर में पहुंचते हैं और स्वयंवर जीत जाते हैं। माता कुंती के द्रौपदी को पांच भाइयों में बांटने के आदेश के बाद द्रुपदसुता पर क्या बीतती है इसका भलीभांति वर्णन लेखिका ने इस उपन्यास में किया है।

आमतौर पर महाभारत को कौरव और पांडवों की लड़ाई के रूप में सिमटा समझा जाता है लेकिन ‘महाभारती’ द्रौपदी को मुख्य पात्र के रूप में रखता है। मैंने खुद इस पर कभी विचार नहीं किया था कि महाभारत में द्रौपदी के पांच पतियों से विवाह का औचित्य क्या था? लेकिन उपन्यास पढ़ने के बाद इस पर चिंतन किया।

उपन्यास में श्रीकृष्ण स्वयं द्रौपदी को समझाते हैं कि पांडवों के पास कुछ ऐसा नहीं है जो उन्हें एक साथ रख सके और द्रौपदी पांच भाइयों को एकजुट रखने का निमित्त बन सकती है। उपन्यास में द्रौपदी की पीड़ा को दिखाया गया है कि कैसे वह अर्जुन के प्रति विशेष अनुराग रखने के बावजूद बाकी चारों भाइयों का भी वरण करती है।

द्रौपदी का पात्र अलग इसलिए है क्योंकि न तो वह गांधारी की तरह अधर्म होता देख भी चुप्पी साधे रखती है। न ही वह सुभद्रा की तरह एक अबला है। महाकाव्य महाभारत की अन्य महिला पात्रों के विपरीत द्रौपदी एक नेत्री है। जिसकी प्रतिभा के बारे में लेखिका चित्रा चतुर्वेदी ने बखूबी लिखा है।

महाभारत की कहानी को सही से समझा जाए तो समझ आएगा कि कौरवों के मन में पांडवों के प्रति ईर्ष्या का सबसे बड़ा कारण द्रौपदी थी। जिसकी बुद्धिमता, सौन्दर्य, ज्ञान और तर्क उसको अप्रतिम बनाते थे। द्रौपदी का चीरहरण करना या अपमानित करने का उद्देश्य सिर्फ एक महिला का अपमान करना नहीं था वरन पांडवों की उस शक्ति को शिथिल कर देना था जिसके बूते वे कौरवों को चुनौती दे सकते थे।

द्रौपदी चीरहरण के प्रसंग को लिखना किसी भी लेखक या लेखिका के लिए एक कड़ी चुनौती या अहम कसौटी हो सकती थी। लेकिन लेखिका ने इस प्रसंग को बहुत अच्छे से लिखा है। कुरुसभा में द्रौपदी की ओर से पेश किए जाने वाले तर्क सुनकर आप कहेंगे कि द्रौपदी साक्षात सिंहनी है जो पुरुषों की उस सभा को चुनौती देती है।

ध्यान देने वाली बात ये है कि श्रीकृष्ण जिन्हें द्रौपदी के रक्षक के रूप में समझा जाता है वे किसी अबला के मददगार नहीं हैं बल्कि द्रौपदी के मित्र कृष्ण हैं जो अपनी मित्रता निभा रहे हैं। इससे ही आप समझ सकते हैं कि द्रौपदी का चरित्र कितना बलिष्ठ है।

द्रौपदी श्रीकृष्ण के गीता ज्ञान देने से पहले से ही कर्म और पुरुषार्थ में कितना यकीन रखता है इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वह पांडवों के साथ वनवास और अज्ञातवास को स्वीकार करती है। इस दौरान भी वह पांडवों को नियमित रूप से कर्म और भविष्य के युद्ध के लिए प्रेरित करती रहती है।

वनवास और अज्ञातवास के बाद जब पांडव युद्ध से विमुख होने लगते हैं तो ऐसे में द्रौपदी ही उन्हें युद्धरत होने के लिए प्रेरित करती है। लेखिका ने उपन्यास में इस बात को उजागर किया है कि कर्म के विधान की समझ द्रौपदी को पांडवों से कहीं बेहतर है। यहां तक कि भीष्म पितामह भी द्रौपदी के ज्ञान, सत्यवादिता के प्रशंसक हैं।

कोई यह समझ ले कि द्रौपदी इस नरसंहार की प्रणेता है तो यह गलत होगा। दरअसल, कौरव अधर्म के मार्ग पर थे इसलिए उनका अंत होना ही था। साथ ही द्रौपदी की करुणा का दृष्टांत यह है कि जब अश्वत्थामा द्रौपदी के पांच पुत्रों ,पिता और भाई की छल से हत्या कर देता है। उसके बाद भी अश्वत्थामा की माता के बारे में विचार कर वह उसे क्षमा कर देती है।

साथ ही साथ द्रौपदी महज पुरुषों को रिझाने वाली महिला नहीं है। इस बात की समझ उस प्रसंग से बनती है जब द्रौपदी सत्यभामा के अज्ञान के पर्दे को हटाती है। हालांकि महानता की पराकाष्ठा पर स्वयं को सिद्ध करने के बाद भी अंतिम समय में युधिष्ठिर द्रौपदी पर अर्जुन के प्रति विशेष रूप से अनुरक्त होने का आरोप लगा देते हैं। द्रौपदी पर पक्षपात का आरोप। जिसके बाद लेखिका ने लिखा, ‘अन्तर की उदास सुप्त नारी अकस्मात् आज पुन: विकल हो रो पड़ी।’ इस अवस्था में ‘महाभारती’ संसार से कूच कर जाती है।

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(लेखक: सुबोध आनंद गार्ग्य युवा पत्रकार हैं। देश-विदेश के विषयों पर लिखते रहे हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्र रह चुके हैं। कई सामाजिक आंदोलन में भी इनकी हिस्सेदारी रही है।)

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