China ने नए समुद्री नियमों को एक सितंबर से लागू कर दिया है, जिसके तहत चीन विदेशी जहाजों के प्रवेश को नियंत्रित करेगा। इसे चीन ने Chinese Terrestrial Water नाम दिया है। इस कदम से विवादित दक्षिण चीन सागर (South China Sea ), पूर्वी चीन सागर (East China Sea) और ताइवान जलडमरूमध्य में वाणिज्यिक (commercial in the Taiwan strait) और सैन्य दोनों क्षेत्रों पर दूरगामी परिणाम होने की संभावना है। माना जा रहा है कि इससे इस क्षेत्र में अमेरिका और उसके पड़ोसियों के साथ तनाव बढ़ सकता है।

क्या है China का नया समुद्री कानून

China ने नए समुद्री नियमों के अनुसार, अब विदेशी जहाजों, सैन्य और वाणिज्यिक दोनों को “Chinese Terrestrial Water” के तहत चीन के समक्ष जांच के लिए प्रस्तुत होना होगा। चीन का मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि समुद्री सुरक्षा के तहत पनडुब्बियों, परमाणु जहाजों, रेडियोधर्मी सामग्री ले जाने वाले जहाजों, थोक तेल, रसायन, तरलीकृत गैस और अन्य जहरीले और हानिकारक पदार्थों को ले जाने वाले जहाजों के संचालकों को अपनी विस्तृत रिपोर्ट पेश करने की आवश्यकता होगी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “चीन की समुद्री यातायात सुरक्षा को खतरे में डालने वाले जहाजों” को अपने नाम, कॉल साइन, वर्तमान स्थिति और अगले बंदरगाह तक जाने और आगमन के अनुमानित समय की रिपोर्ट पेश करने की आवश्यकता होगी।

टोक्यो में Japan Institute of International Affairs (JIIA) में सीनियर फेलो और समकालीन एशियाई सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक रणनीति में विशेषज्ञता रखने वाली डॉ मोनिका चांसोरिया ने इस कदम को उन फैसलों की एक श्रृंखला के रूप में कहा, जो चीन 2020 से पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में उठा रहा है। फरवरी 2021 के कानून का जिक्र करते हुए वो कहती हैं कि चीनी तटरक्षक को विदेशी जहाजों पर हथियारों का इस्तेमाल करने और विवादित क्षेत्रों में आर्थिक ढांचे को ध्वस्त करने के लिए अधिकृत किया गया। दरअसल चीन जिसे देश का तट रक्षक कहता है, वह  एक “अर्ध-सैन्य संगठन है जो पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन) के अंतर्गत आता है।

चांसोरिया कहती हैं कि ये सभी घोषणाएं बहुत खतरनाक हैं, इससे दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में समग्र स्थिरता और सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

क्यों महत्वपूर्ण है Chinese Terrestrial Water

दक्षिण चीन सागर चीन, ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच स्थित है, यह विश्व स्तर पर आर्थिक महत्व रखता है। दुनिया का लगभग एक-तिहाई शिपिंग यहां से होकर गुजरता है।

यह भारत के लिए सैन्य और व्यावसायिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण मार्ग है। दक्षिण चीन सागर जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों के साथ भारत के व्यापार को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और ऊर्जा आपूर्ति की खरीद में भी सहायता करता है। विदेश मंत्रालय का अनुमान है कि भारत का 55% से अधिक व्यापार दक्षिण चीन सागर और मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है। भारत समुद्र के किनारे अपतटीय ब्लॉकों में तेल और गैस की खोज में भी शामिल है, जिसके कारण चीनी अधिकारियों के साथ विवाद पैदा हो गया है।

“नौ-डैश लाइन” मानचित्र के तहत चीन दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से को अपने संप्रभु क्षेत्र के रूप में दावा करता है। इस दावे का उसके पड़ोसियों और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विरोध किया जाता है। दोनों देशों ने हाल ही में समुद्री सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में इस मुद्दे पर बात किया, जिसमें अमेरिका ने कहा कि चीन समुद्र क्षेत्र में गैर कानूनी दावे कर रहा है, जबकि चीन ने पलटवार किया है कि दक्षिण चीन सागर में उकसाने के लिए अमेरिका मनमाने ढंग से उन्नत सैन्य जहाजों और विमानों को भेज रहा है।

इस कानून के प्रभावी होने के साथ ही कई सवाल बने हुए हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि चीन विनियमन को कैसे लागू करना चाहता है। अमेरिका नियमित रूप से इस क्षेत्र में नौसैनिक अभ्यास करता है, उसके द्वारा  बीजिंग के कानून को पालन करने की संभावना नहीं दिखती। यह भी देखना बाकी है कि यूएनसीएलओएस के बाकी हस्ताक्षरकर्ता समझौते पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं।

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