Climate Change के कारण भारत में आने वाले समय में प्रचंड गर्मी, अत्यधिक बारिश तथा तूफानों के आने की संभावना : रिपोर्ट

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Climate Change के कारण भारत में आने वाले समय में प्रचंड गर्मी, अत्यधिक बारिश तथा तूफानों के आने की संभावना

Climate Change को लेकर यूनाईटेड नेशंस “क्लाईमेट चेंज काॅन्फ्रेंस” (Climate Change Conference) नवंबर में यूके में हाने वाला है, इससे 45 दिन पहले एप्सन ने अपने क्लाईमेट रियलिटी बैरोमीटर के परिणामों की घोषणा की है। एप्सन के अध्ययन में क्लाईमेट की वास्तविक स्थिति और इसके विनाशकारी परिणामों के प्रति लोगों की समझ के बीच भारी अंतर सामने आया है। सर्वे में भारत के 1,207 लोगों सहित Asia, Europe, North America और South America के 15,264 लोगों के बीच क्लाईमेट परिवर्तन के वैश्विक अनुभवों और धारणाओं का अध्ययन किया गया।

एप्सन के क्लाईमेट रियलिटी बैरोमीटर (Climate Reality Barometer)के तहत अपने जीवन में क्लाईमेट संकट को टालने के लिए मानव की क्षमता के बारे में पूछे जाने पर भारत में लगभग एक तिहाई (73.4 प्रतिशत) लोगों ने कहा कि इस मामले में वो ‘बहुत’ या कुछ आशावादी हैं, जबकि 10 में से एक (11.4 प्रतिशत) ने कहा कि वो ‘बहुत’ या ‘कुछ’ निराशावादी हैं। यह ग्लोबल् रूझान से काफी ज्यादा है, जहां आधे लोगों (46 प्रतिशत) ने कहा कि वो आशावादी हैं और 27 प्रतिशत ने कहा कि वो निराशावादी हैं। इन परिणामों से एक तरफ क्लाईमेट की आपात स्थिति की तत्कालिता एवं स्केल के प्रति, लोगों की धारणा और दूसरी तरफ इसे हल करने के लिए किए गए कार्यों के बीच चैंकानेवाला क्लाईमेट रियलिटी डेफिसिट (Climate Reality Deficit) प्रदर्शित होता है। भारत में 4.1 प्रतिशत लोग मानते ही नहीं हैं कि दुनिया में क्लाईमेट की आपात स्थिति जैसी कोई चीज है। इस स्थिति को अस्वीकार करने के मामले में 11 प्रतिशत लोगों के साथ अमेरिका शीर्ष स्थान पर है

भारत में लोग क्लाईमेट परिवर्तन के खतरों से अवगत ही नहीं हैं, वे जीवाश्म ईंधन जैसे कोयले की बजाय अक्षय ऊर्जा जैसे पवन ऊर्जा का इस्तेमाल (21.4 प्रतिशत) करने में समर्थ होना है। दूसरी तरफ, कुछ लोगों के निराशावादी होने का कारण उनका यह यकीन है कि लोगों को क्लाईमेट परिवर्तन के खतरों का आभास नहीं (32.6 प्रतिशत) तथा सरकार द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयास पर्याप्त नहीं (30.2 प्रतिशत) है। 17.4 प्रतिशत लोगों को यकीन है कि हम पवन ऊर्जा जैसे ऊर्जा के अक्षय स्रोतों की ओर पर्याप्त गति से नहीं बढ़ रहे हैं।

क्लाईमेट परिवर्तन पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल (IPCC) की नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आने वाले दशकों में भारत में और ज्यादा प्रचंड गर्मी की लहरें, अत्यधिक बारिश और त्रुटिपूर्ण मानसून तथा तूफानों के साथ-साथ मौसम से संबंधित अन्य संकट देखने को मिलेंगे। एप्सन के क्लाईमेट रियलिटी बैरोमीटर के अध्ययन में प्रमाण के मुकाबले आशावादिता की जीत सामने आई है, जिसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

भारत में एक चैथाई (25.8 प्रतिशत) मानते हैं कि ‘क्लाईमेट की आपात स्थिति को संभालने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी’ सरकारों की है और 26.9 प्रतिशत मानते हैं कि क्लाईमेट को संभालने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी व्यवसायों की है। 66.2 प्रतिशत भारतीय प्लास्टिक (Plastic) का इस्तेमाल करना कम कर चुके हैं, लेकिन चिंताजनक बात यह है 8.8 प्रतिशत भारतीयों का या तो ऐसा करने का कोई विचार नहीं, या वो नहीं जानते कि यह कैसे किया जाए। 16.7 प्रतिशत ने कहा कि वो ऐसा करने के इच्छुक नहीं या उन्हें नहीं पता कि इस मामले में क्या किया जाए।

इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि व्यक्तिगत एवं सामूहिक जिम्मेदारी का विचार ज्यादा महत्वपूर्ण हो रहा है। उत्साहजनक बात यह है कि 21 प्रतिशत लोग खुद को व्यक्तिगत रूप से ‘सबसे ज्यादा जिम्मेदार’ मानते हैं, जबकि (21.5 प्रतिशत) का मानना है कि हम सभी जिम्मेदार हैं- और इस दिशा में काम करने की जिम्मेदारी सरकारों, व्यवसायों एवं आम लोगों की समान रूप से है।

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