Demonetisation: नोटबंदी के 5 साल, हमने क्या खोया, क्या पाया? जानें सबकुछ

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Demonetisation
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Demonetisation: 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पहले ही कार्यकाल में देश में सबको चौकाते हुए 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए थे। नोटबंदी के 5 साल हो गए हैं। नोटबंदी के बाद हमारे देश में पहली बार 2000 और 200 का नोट आया और साथ ही 500, 100, 50, 20 के नए नोटी भी आए। हालांकि नोटबंदी के बाद 1000 का नोट अभी तक नहीं आया है। नोटबंदी के 5 साल पूरे होने पर चलिए हम देखते हैं कि नोटबंदी से देश को क्या फायदा हुआ? और क्या घाटा हुआ?

काला धन (Black Money)

नोटबंदी करने का मुख्य लक्ष्य काले धन को खत्म करना था। काला धन वो कहलाता है जिसका बैंकिंग प्रणाली में हिसाब नहीं है या जिसके कर का भुगतान सरकार को नहीं किया गया है। लेकिन आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, नोटबंदी के बाद लगभग पूरा पैसा (99 फीसदी से ज्यादा) जो बैन हो गया था वो बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गया। 15.41 लाख करोड़ रुपये के बैन हुए नोटों में से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट वापस आ गए।

फरवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि नोटबंदी सहित सभी काले धन विरोधी उपायों के माध्यम से 1.3 लाख करोड़ रुपये का काला धन बरामद किया गया है। लेकिन सरकार को मूल रूप से उम्मीद थी कि केवल demonetisation से बैंकिंग प्रणाली के बाहर कम से कम 3-4 लाख करोड़ रुपये का काला धन समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार यह आंकड़े बताते हैं कि काले धन का पता लगाने में नोटबंदी से कोई फायदा नहीं हुआ।

नकली नोट

नोटबंदी का दूसरा बड़ा लक्ष्य नकली नोट को खत्‍म करना था। उपलब्ध आंकड़ों पर एक नज़र डालें तो 2016 में जिस साल नोटबंदी हुई थी, देश भर में 6.32 लाख नकली नोट जब्त किए गए थे। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी के बाद के चार वर्षों में कुल 18. 87 लाख नकली नोट देश भर से जब्त किए गए। 2019-20 के दौरान बैंकिंग क्षेत्र में पाए गए कुल नकली नोटों में से 4.6 प्रतिशत रिज़र्व बैंक में और 95.4 प्रतिशत अन्य बैंकों द्वारा पाए गए। इन आंकड़ों के आधार पर हम कह सकते कि नोटबंदी के बावजूद भी नकली नोटों का प्रचलन और उनको बनाना नहीं रुका है।

चलन में मुद्रा

नोटबंदी के प्रमुख लक्ष्य में कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाना भी था। लेकिन आंकड़ों को देखते हुए कह सकते हैं कि नोटबंदी के वर्षों बाद भी लोग कैश का उपयोग कर रहे हैं। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में 16.4 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा प्रचलन में थी और जो मार्च 2020 तक 24.2 लाख करोड़ रुपये की हो गई और करेंसी नोटों की संख्‍या 2016 में 9 लाख से बढ़कर 2020 में 11.6 लाख हो गई।

ऑनलाइन ट्रांजैक्शन को बढ़ावा मिला

नोटबंदी का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि इससे ऑनलाइन ट्रांजैक्शन को बहुत ज्यादा बढ़ावा मिला है। जहां 2015-16 के बीच 5.93 बिलियन का ऑनलाइन ट्रांजैक्शन हुआ तो वहीं 2020 के साल में 25.5 बिलियन का डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ। देश में साल 2020 के दौरान सबसे ज्यादा डिजिटल लेनदेन हुए और इस मामले में भारत ने अमेरिका-चीन को भी पीछे छोड़ दिया।

बैंक में पैसा बढ़ा

नोटबंदी के बाद से लोगों ने घरों में पैसा रखना छोड़ दिया और बैंक में जमा करना शुरू कर दिया। 2014 में लॉन्च की गई प्रधानमंत्री धन जन योजना की बात करें जो उसके तहत 43 करोड़ लोगों ने बैंक खाते खुलवाए हैं और उसमें कुल जमा राशि 1.46 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।

पैन कार्ड होल्‍डर बढ़े

आज हमारे देश में पैन कार्ड को बैंक अकाउंट से लिंक करना जरूरी है। जब भी बड़ा ट्रांजैक्शन होता है तो पैन कार्ड का नंबर भी बताना पड़ता है। पैन कार्ड को बैंक अकाउंट से लिंक करने से यह भी फायदा कि यह बता देता कि एक इंसान के कितने खाते हैं। लेकिन इसके बावजूद नोटबंदी के बाद देश में पैन कार्ड के होल्‍डर बढ़ रहे हैं। 2016 में करीब 24.37 करोड़ पैन कार्ड के होल्‍डर थे जो 2020 में बढ़कर 50.95 करोड़ हो गए। इसका मतलब लोग अब ज्‍यादा कैस का आदान-प्रदान नोटबंदी के डर से नहीं कर रहें हैं।

क्रेडिट कार्ड भी बढ़े

नोटबंदी के बाद क्रेडिट कार्ड भी बढ़ें हैं। आरबीआई के डाटा के अनुसार 2015-16 के वित्‍त वर्ष में 2 करोड़ 5 लाख क्रेडिट कार्ड जारी किए गए थे तो वहीं 2018-19 के वित्‍त वर्ष में यह संख्‍या 4 करोड़ 89 लाख हो गई। 2015-16 में ट्रांजैक्शन 0.8 बिलियन का हुआ तो 2018-19 में बढ़कर 1.7 बिलियन हो गया।

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