Iconic Villain: Kanhaiya Lal ने जब ‘Mother India’ में कहा, “सुखीलाला अगर कुत्ता भी पालेंगे, उसके गले में सोने की ज़ंजीर डालेंगे…”

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Kanhaiya Lal
Kanhaiya Lal

Kanhaiya Lal: उनकी आवाज में एक अजीब से वहशीपन की खनक थी, सिनेमा के पर्दे पर जब वो संवाद की अदायगी करते तो उनकी आंखें सारे कुकर्मों का आईना बन जाती थीं। वो अपने जमाने के मशहूर खलनायक हुआ करते थे। दिन के 12 घंटे फिल्म के शॉट देते वक्त भी उनके मुंह में पान की गिलौरी का कब्जा रहता था।

हम उन्हें उस दौर का महान खलनायक भी कह सकते हैं। फिल्म ‘मदर इंडिया’ में जालिम साहूकार बने जब वो कहते हैं, “सुखीलाला अगर कुत्ता भी पालेंगे, उसके गले में सोने की ज़ंजीर डालेंगे…सोने की” तब सच में एक ऐसी सिहरन पैदा होती कि दिमाग में उनकी कारस्तानी की कल्पना मात्र से नफरत और गालियां फूट पड़ती थीं। ऐसे थे बनारस के Kanhaiya Lal

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Kanhaiya Lal अभिनेत्री नरगिस के साथ फिल्म मदर इंडिया में

असल जिंदगी में पर्दे के ठीक उलट शख्सियत के मालिक Kanhaiya Lal का जन्म साल 15 दिसंबर 1910 को बनारस के प्रह्लाद घाट मुहल्ले में हुआ था। Kanhaiya Lal के पिता भैरोदत्त चौबे वाराणसी में सनातन धर्म नाटक मंडली चलाते थे। घर में संगीत और नाटक के भरपूर माहौल में पले-बढ़े कन्हैयालाल बचपन से ही स्वांग रचने में माहिर थे। अक्खड़ बनारसीपना कूट-कूट कर भरा था कन्हैयालाल में। रूप-रंग तो भगवान ने हीरो लायक दिया नहीं था लेकिन चाल-ढ़ाल और हाव-भाव क्या कहने।

Kanhaiya Lal कभी ठेठ कंजूस सेठ, कठोर साहूकार तो कभी बदमाश मुनीम…

50 के दशक में हिंदी सिनेमा के पर्दे पर ठेठ कंजूस सेठ, कठोर साहूकार और बदमाश मुनीम के साथ सभी तरह की बदमाशियों से भरपूर Kanhaiya Lal ने खलनायकी में भी मधुरता की मिठास रखी। वो कभी पर्दे पर आक्रामक नहीं रहे बल्कि हमेशा हीरो से डरा करते थे कि कहीं पीट न दे। मदर इंडिया में सुखी लाला के किरदार में वो राधा रानी के मोहपाश में अंत तक पड़े रहे लेकिन राधा के लड़के बिरजू (सुनील दत्त) से डरा भी करते थे कि कहीं दो-चार झापड़ न रसीद कर दे। पर्दे पर उनकी अदाकारी ऐसी है कि आप उसमें पूरा इंस्टिट्यूशन देख सकते हैं।

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Kanhaiya Lal

पर्दे पर भी ठेठ बनारसी अंदाज में धोती-कुर्ता, जाकेट, टोपी और हाथ में छड़ी या छाता लिये Kanhaiya Lal पूरी तरह से बनारसी ठग लगते हैं। बड़े भाई संकठा प्रसाद चतुर्वेदी के पीछे-पीछे बनारस से बंबई (मुंबई) पहुंचे कन्हैया लाल। संकटा प्रसाद चतुर्वेदी पहले से ही मूक फिल्मों में एक्टिंग कर रहे थे। संकटा प्रसाद चतुर्वेदी ने साल 1931 में फिल्म ‘वीर अभिमन्यु’, साल 1938 में फिल्म ‘वतन’ और साल 1954 में फिल्म ‘डाकू की लड़की’ में काम किया था। Kanhaiya Lal फिल्मों में राइटर बनने का ख्वाब पाल रहे थे, कोशिश भी कर रहे थे लेकिन कहीं काम बन नहीं पा रहा था।

साल 1938 की बात है, एक दिन जब वो सागर मूवीटोन फिल्म कंपनी में 35 रुपया मेहनताने पर काम कर रहे थे। वही पर फिल्म ‘झूल बदन’ की शूटिंग हो रही थी। शूटिंग में हीरो मोतीलाल के पिता के किरदार वाला पात्र सेट पर नहीं आया। डायरेक्टर परेशान इधर-उधर भाग रहा था तभी उसकी नजर फिल्म कंपनी के मुलाजिम कन्हैया लाल पर पड़ी।

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कन्हैयालाल

कन्हैया लाल को असली प्रसिद्धी मिली साल 1957 में महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ से। लेकिन बहुत ही कम पाठकों को पता होगा कि दरअसल फिल्म ‘मदर इंडिया’ एक रिमेक थी। ‘मदर इंडिया’ बनने के 17 साल पहले महबूब खान ने ही साल 1940 में एक फिल्म बनाई थी ‘औरत’।

उसमें सुखीलाला के कैरेक्टर को Kanhaiya Lal ने ही निभाया था। हुआ ये कि फिल्म के राइटर वजाहत मिर्जा से कन्हैयालाल की खूब छनती थी। उन्होंने महबूब खान से सिफारिश करके Kanhaiya Lal को सुखी लाला का रोल दिलवा दिया। लेकिन एक बात ध्यान रखियेगा कि यह कन्हैयालाल की काबिलियत थी कि उन्होंने महबूब खान जैसे दिग्गज निर्देशक वह रोल देने के लिए रजामंद हो गये और वो भी उनके अभिनय के कारण।

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कन्हैयालाल

खैर, महबूब खान ने तो कन्हैयालाल को सुखीलाला बना दिया लेकिन उनके ज्यादातर कारिंदे कन्हैयालाल को एक्टर मानने को तैयार ही नहीं थे क्योंकि कन्हैयालाल ठहरे ठेठ अड़ीबाज प्रह्लाद घाट के बनारसी। मुंह में पान दबाए गंवई स्टाईल में सेट पर टहला करते थे। कोई भी उनका मेकअप करने को तैयार नहीं था। मेकप के नाम पर उनके मुंह पर एक मुंछ चिपका दी गई थी।

अब जब कैमरे के सामने टेक देने की बारी आयी तो उससे पहले अपना ब्लड प्रेशर बढ़ाये Kanhaiya Lal हैरान-परेशान सीधे पहुंचे कैमरामैन फरदून ईरानी के पास। उन्होंने फरदून से समस्या बताई और जग भर पानी डकार गये। फरदून ने कन्हैयालाल को भरोसा दिलाया कि वो नेचुरल खलनायक लगते हैं, उन्हें मेकअप की जरूरत ही नहीं है। इसे सुनने के बाद कन्हैयालाल को थोड़ा हौसला मिला। वजाहत मिर्जा ने भी उन्हें समझाया कि पर्दे पर कन्हैयालाल को भुल जाओ, वहां पर सुखी लाला हो।

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कन्हैयालाल

उसके बाद तो कैमरे के सामने Kanhaiya Lal ने जो बनारसी भौकाल दिखाया कि दर्शक देखकर कांप उठे। फिल्म ‘औरत’ का तो जो हुआ सो हुआ। कन्हैया लाल हिट हो गए। साल 1942 में कन्हैयालाल को फिल्म ‘बहन’ में मात्र चार सीन का कैरेक्ट मिला। लेकिन जब कैमरा रोल हुआ तो डायरेक्टर ने कन्हैयालाल को लेकर कुल 14 सीन छाप डाले।

फिल्म ‘औरत’ के रिलीज के करीब 17 साल बाद साल 1957 में महबूब खान ने ने ‘मदर इंडिया’ बनाई। इस फिल्म में महबूब खान ने सारे चरित्र में बदलाव किया सिवाय सुखी लाला के और इस बार भी मौका दिया उसी पुराने सुखीलाला को यानी कन्हैयालाल को। कन्हैयालाल ने सुखी लाला को जो चरित्र निभाया कि फिल्म ‘मदर इंडिया’ इतिहास के पन्नों में अमर हो गई।

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कन्हैयालाल अभिनेत्री नरगिस के साथ फिल्म मदर इंडिया में

महबूब खान ने फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ में अभिनेत्री नरगिस के बाद सबसे ज़्यादा फ़ीस पूरे दस हज़ार रुपये कन्हैयालाल को दी थी। यह वो पहली फिल्म थी जिसे भारत की ओर से ऑस्कर के लिए भेजा गया था। यकिन मानिए अगर कन्हैयालाल ने सुखीलाल का कैरेक्टर नहीं निभाया होता तो फिल्म ‘मदर इंडिया’ उस ऊंचाई पर नहीं पहुंचती, जहां वो आज भी खड़ी है।

ऐसा नहीं है कि Kanhaiya Lal ने अपने फिल्मी जीवन में केवल खलनायकी की। उन्होंने ‘धरती कहे पुकार के’ में दयालु किसान का रोल प्ले किया, जो छोटे भाईयों को पढ़ाने के लिए खेत गिरवी रखकर रुपये उधार लेता है। वहीं फिल्म ‘सत्यम शिवम् सुंदरम’ में वो ज़ीनत अमान के बीमार पिता थे जो बेटी का जन्मदिन केवल इसलिए नहीं मना सकते क्योंकि उसी दिन उनकी पत्नी गुजर गई थीं। कन्हैयालाल के अभिनय में खलनायकी की प्रधानता रही लेकिन उन्होंने पर्दे पर तरह-तरह के रोल निभाये।

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Kanhaiya Lal की कुछ अन्य मशहूर फ़िल्में हैं, गंगा जमुना, गोपी, उपहार, अपना देश, जनता हवालदार, दुश्मन, बंधन, भरोसा, हम पांच, दादी मां, हत्यारा, पलकों की छांव में, राम और श्याम, हीरा, तीन बहुरानियां, दोस्त आदि। करीब 120 फ़िल्मों में अभिनय करने के बाद कन्हैयालाल ने 70 के दशक में हिंदी सिनेमा और बंबई को अलविदा कह दिया और वापस लौट आये बनारस के अपने प्रहलादघाट के घर।

कई तरह की बीमारियों से घिरे कन्हैयालाल को इस बात का रंज उनकी मौत तलक रहा कि हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री ने उन्हें आखिरी वक्त में भुला दिया। सैकड़ों फिल्मों में अदाकारी के जलवे बिखरने वाले कन्हैयालाल का 72 साल की उम्र में 14 अगस्त 1982 को निधन हो गया। बनारस के प्रह्लाद घाट स्थित कन्हैया लाल के घर पर उनकी बेटी प्रेमा शुक्ला और उनके नाती राजीव शुक्ला उनकी बनारसी विरासत को संभाल रहे हैं।

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