कांग्रेस का हाल देखकर दिल दरिया हुआ जाता है। पंजाब में Navjot Singh Sidhu की राजनीति कैप्टन अमरिंदर सिंह को बेदखल करके खुद सत्तासीन होने की थी लेकिन किस्मत दगा दे गया। कैप्टन तो गए लेकिन कई सवाल खड़े कर गए। वैसे तो पाकिस्तानी दोस्तों की फेहरिस्त किसी के भी कम नहीं है लेकिन दोनों में से किसी ने नहीं कहा कि ऐसे मामलों में हम नहीं है। राजनीति है तो सत्ता की दौड़ में शामिल लोग सत्ता हासिल करने के लिए तमाम हथकंडे अपनाएंगे ही। खैर पंजाब में कांग्रेस की राजनीति कॉमेडी शो की तरह हो गई लगती है, तो इसके कुछ प्रमुख कारण यह है:
1. अमूमन किसी प्रदेश में किसी पार्टी का एक अध्यक्ष होता है लेकिन पंजाब में कांग्रेस के एक अध्यक्ष से काम नहीं चला। साथ में चार अन्य को भी शामिल कर लिया। सिद्धू प्रमुख बने तो उनके सलाहकार ऐसे लोग हुए जिन्होंने भारतीय शहीदों की लहू का मजाक उड़ाया। नवजोत सिंह सिद्धू के चार एडवाइजर्स में से एक मलविंदर सिंह माली ने उस समय विवाद खड़ा कर दिया था जब उन्होंने कश्मीर के एक अलग देश होने का दावा किया था। उन्होंने कहा था कि भारत और पाकिस्तान दोनों अवैध कब्जेदार हैं। माली ने कहा था कि कश्मीर एक अलग देश है और भारत व पाकिस्तान, दोनों अवैध कब्जेदार हैं। कश्मीर वहां के लोगों का है। इस मामले में सिद्धू की जमकर किरकिरी हुई। बयान पर बवाल बढ़ा तो सिद्धू ने समन जारी किया।
2. रोज-रोज अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के अरोपों से तत्कालीन पंजाब सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह नाराज होते जा रहे थे। यह पहला मामला था जब राज्य का सीएम को अपनी ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के सवालों से सार्वजनिक तौर पर जलील होना पड़ रहा था। मामला हाईकमान तक पहुंचा। समाधान के लिए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को लगाया गया। जो मामला सुलझाते सुलझाते एक अलग ही कांड कर गए।
3. हरीश रावत, उत्तराखंड वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गए थें सुलह कराने लेकिन सिद्धू उनके गुरु निकले। ऐसी पट्टी पढ़ाई की कैप्टन ही दोषी दिखने लगे। जब प्रेस कांफ्रेंस करने आए तो कांग्रेस के अध्यक्ष अपने चार सलाहकारों के साथ उन्हें ‘पंज प्यारे’ दिखने लगे। ‘पंज प्यारे’ की अहमियत से अंजान वे अपने प्रदेश अध्यक्ष एवं सहयोगियों की तुलना ‘पंज प्यारे’ से कर बैठे। बवाल तो होना ही था, सो हुआ। इसके बाद माफी का दौड़ चला और उन्हें सबके सामने इसके लिए माफी मांगनी पड़ी। मतलब गए थे झगड़ा सुलझाने नया बवाल लेकर लौटे।
4. एक नया ऐलान हुआ। कहा गया कि आने वाला विधानसभा चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। बागी खेमे मतलब सिद्धू के समर्थक नेताओं से मिलने के बाद हरीश रावत ने स्पष्ट कर दिया कि पंजाब के नेतृत्व में किसी प्रकार का बदलाव नहीं होगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ही मुख्यमंत्री रहेंगे। कैप्टन के नेतृत्व में ही कांग्रेस 2022 में पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। लेकिन हरीश रावत के बयान देने के कुछ समय बाद ही सारा मामला पटल गया। मतलब कही कुछ और जा रही थी और हो कुछ और रहा था।
5. नवजोत सिंह सिद्धू की जीत हुई। कैप्टन बोल्ड हो गए थे। अगला सीएम कौन होगा। खोज शुरू हुई तो अंबिका सोनी से लेकर सुनील जाखड़ तक सबके मन में सपने सजा दिए गए लेकिन सीएम पद कोई और ले उड़ा। बीजेपी की तरह ही इस बार कांग्रेस ने चौंका दिया। नये सीएम का नाम था चरणजीत सिंह चन्नी। थोड़े समय के लिए कैप्टन भी खुश और सिद्धू तो सीएम के कांधे पर हाथ रखे नजर आए। ऐसे लग रहा था जैसे उनका कोई मुलाजिम सीएम बन गया हो। सोशल मीडिया में किरकिरी होनी ही थी। हुई भी। लग रहा था कांग्रेस ने बड़ी दूर की सोच के पंजाब में नया गेम कर दिया है। बीएसपी, अकाली, आम आदमी पार्टी और बीजेपी को मात दे दिया है। अब मंत्रिमंडल की तैयारी शुरू हो गई।
कैप्टन दुखी थें। इस्तीफे के बाद अपने दुख को छुपा नहीं पाएं और बोल दिया कि अपमानित हुआ। राहुल प्रियंका मेरे बच्चे जैसे हैं। मतलब बता ही दिया कि वे राजनीतिक नौसिखुए हैं। मंत्रिमंडल में अधिकांश पुराने लोगों की जगह नहीं मिली।
फिर एकदम से खबर आ गई कि अब नवजोत सिंह सिद्ध ने अपना अध्यक्षीय पारी घोषित कर दिया है। सिद्धू के रिजाइन करते ही कई मंत्री इस्तीफा दे दिए। अब कांग्रेस में ये नया तमाशा क्या चल रहा है…
बीजेपी से आने के बाद कांग्रेस में शामिल होने से पहले सिद्धू आम आदमी पार्टी से मोलभाव कर रहे थें। बात नहीं बनी तो कांग्रेस में शामिल हुए। चुनाव जीते, मंत्री बनाए गए। कैप्टन के शब्दों में …वो मंत्रालय संभाल नहीं पाए। आम जनता को पंजाब में कांग्रेस का यह तमाशा किसी कॉमेडी शो से कम नहीं लग रहा है।
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