Supreme Court ने मंगलवार को सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण देने के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायमूर्ति नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों के लिए उपस्थित अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुना।
‘सालों बाद भी SC और ST को योग्यता के स्तर पर अगड़ी जातियों के बराबर नहीं लाया जा सका’
केंद्र ने पहले न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ से कहा था कि यह एक तथ्य है कि लगभग 75 वर्षों के बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया है। अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा था कि एससी और एसटी से संबंधित लोगों के लिए समूह ए श्रेणी की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है और समय आ गया है जब शीर्ष अदालत को एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग की रिक्तियों को भरने के लिए कुछ ठोस आधार देना चाहिए।
पीठ ने पहले कहा था कि वह अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण देने के मुद्दे पर अपने फैसले पर फिर से विचार नहीं करेगी और कहा कि यह राज्यों पर निर्भर करता है कि वे इसे कैसे लागू करने जा रहे हैं।
ग्रुप C और D में SC और ST का प्रतिनिधित्व अधिक: सरकार
बता दें कि सुनवाई के दौरान के के वेणुगोपाल ने कहा था कि ग्रुप A और B की नौकरियों में प्रतिनिधित्व जहां कम है। वहीं ग्रुप C और D में प्रतिनिधित्व अधिक है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में यह पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि हम केवल इस बात पर विचार करेंगे कि क्या हाईकोर्ट के फैसलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए पहले के दो फैसलों में तय सिद्धांतों का पालन हुआ है या नहीं?
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि वह 2006 के एम. नागराज और 2018 के जरनैल सिंह मामलों में दिए गए निर्णयों पर पुनर्विचार नहीं करेगी। इन दोनों फैसलों में ही पदोन्नति में आरक्षण संबंधी नीतियों के लिए शर्तें निर्धारित की गई थीं।