सुप्रीम कोर्ट ने स्टॉकब्रोकर केतन पारेख को विदेश जाने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने कहा कि पारेख अपनी बेटी के इलाज के लिए UK जा सकते हैं। कैनबैंक म्यूचुअल फंड घोटाला मामले में आरोपी केतन पारेख ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर विदेश जाने की अनुमति मांगी थी। स्टॉकब्रोकर केतन पारेख को 1992 के स्टॉक घोटाले से जुड़े मामले में दोषी ठहराया गया था। जिसमें 47 करोड़ रुपये से अधिक की सीएफएस को धोखा दिया गया था।
18 आपराधिक मामले SEBI कोर्ट में, 27 मामले देशभर में
इससे पहले सेबी की एक विशेष अदालत ने केतन मेहता को विदेश जाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पारेख के ऊपर कई मामले अभी लंबित हैं इसलिए उन्हें विदेश जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती । बता दें कि कोर्ट ने कहा था कि 18 आपराधिक मामले उनकी कोर्ट में लंबित हैं जबकि 27 मामले देशभर में पारेख पर चल रहे हैं।
हर्षद मेहता, केतन पारेख के मेंटर थे
बता दें कि हर्षद मेहता की तरह केतन पारेख घोटाला को भी देश नहीं भूल सकता। कहा जाता है कि हर्षद मेहता, केतन पारेख के मेंटर थे। मेहता की तर्ज पर साल 2001 तक केतन पारेख देश के सफल ब्रोकर बन गये। हर्षद मेंहता की तरह ही केतन पारेख ने उस समय ग्लोबल ट्रस्ट बैंक और माधवपुरा मर्चेंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक से पैसा लिया और के-10 स्टॉक्स के नाम से हेरफेर की। पारेख ने तमाम नियमों को तोड़ते हुए कई फर्जी कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ा दिये थे। बाद में आई जोरदार बिकवाली से देश के लाखों निवेशकों को करोड़ों रुपए का चूना लगा।
कई बार अपराध को दिया अंजाम
गौरतलब है कि केतन पारेख ने भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में सिर्फ एक बार नहीं बल्कि कई बार अपराध को अंजाम दिया है। वह 1992 के कैनबैंक म्यूचुअल फंड घोटाले में शामिल था, जिसमें सरकारी स्कियोरिटीज को खरीदने के लिए एक ग्रुप फर्म से मिले पैसो को स्टॉकब्रोकरों के खातों में डाला गया था।
पारेख के K-10 स्टॉक
इसके बाद 2001 में पारेख ने फिर से शेयर बाजार घोटाले की साजिश रची। K-10 स्टॉक में- पेंटामीडिया ग्राफिक्स, एचएफसीएल, जीटीएल, सिल्वरलाइन टेक्नोलॉजीज, रैनबैक्सी, ज़ी टेलीफिल्म्स, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, डीएसक्यू सॉफ्टवेयर, अफटेक इंफोसिस और एसएसआई शामिल थे। पारेख इन शेयरों में कम लिक्वडिटी का फायदा उठाते और प्रोमोटरों की मिलीभगत से स्टॉक की कीमतों में तेजी लाते।
बाद में पता चला कि अहमदाबाद स्थित माधवपुरा मर्केंटाइल कोऑपरेटिव बैंक द्वारा जारी किए गए ड्यूड पे ऑर्डर के खिलाफ उधार के जरिए पैसो को सिक्योर कर लिया गया था। जिस बैंक के अधिकारी घोटाले में शामिल थे, उसके पास पीओ को कवर करने के लिए पर्याप्त पैसे भी नहीं थे। एक अन्य बैंक जिसने पैसे उपलब्ध कराये वह ग्लोबल ट्रस्ट बैंक था। पारेख के अन्य स्रोत कई कंपनियों के प्रोमोटर थे जो घोटाले में शामिल थे और अपनी खुद की होल्डिंग पर फायदा उठाना चाहते थे।
मार्च 2001 में व्यापारियों और दलालों ने K10 शेयरों को डंप करना शुरू कर दिया। इन शेयरों में बड़े लीवरेज वाले पारेख अब फंस गए थे। आरबीआई द्वारा एमएमसीबी को डिफॉल्टर घोषित करने के बाद सच सामने आया जिससे बैंक ऑफ इंडिया को भारी नुकसान हुआ। 2001 के केंद्रीय बजट के एक दिन बाद बाजारों में 176 अंकों की भारी गिरावट के बाद, सेबी और आरबीआई ने जांच शुरू की। पारेख पर इनसाइडर ट्रेडिंग और बैंकों को ठगने के लिए तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया गया था।
पारेख को बाजार में हेरफेर के लिए दोषी पाया गया
आखिरकार, पारेख को बाजार में हेरफेर के लिए दोषी ठहराया गया और 2017 तक व्यापार करने से रोक दिया गया। हालांकि, 2009 में सेबी ने पाया कि पारेख फ्रंट कंपनियों के जरिए कारोबार कर रहे थे और उनके ट्रेडों के कारण कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज को भुगतान संकट का सामना करना पड़ा था। मार्च 2014 में पारेख को कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी, जबकि एमएमसीबी का लाइसेंस अंततः 2012 में आरबीआई द्वारा रद्द कर दिया गया था और 2004 में जीटीबी का ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में विलय कर दिया गया था।