POCSO Act पर Supreme Court का बड़ा फैसला, कहा- Skin to Skin Contact जरूरी नहीं, 7 Points में समझें कोर्ट ने क्या कहा?

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स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट (Skin to Skin Contact) के बिना POCSO एक्ट लागू नहीं होता है, मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court)  ने आज अपना फैसला सुनाया है। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पॉक्सो एक्ट में स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट को जरूरी नहीं बताया है। कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay high court) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद 30 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज यानी कि 18 नवंबर को कोर्ट ने साफ कर दिया है कि, पॉक्सो एक्ट में स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट जरूरी नहीं है।

यह हैं 7 Points

  1. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच के फैसले को रद्द कर दिया।
  2. जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने फैसले में कहा कि शारीरिक संपर्क को त्वचा से त्वचा के संपर्क तक सीमित रखने का संकीर्ण अर्थ देने से POCSO अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
  3. स्किन टू स्किन कि व्याख्या को POSCO की धाराओं में स्वीकार नहीं किया जा सकता। POSCO एक्ट कि धारा 7 को इस आधार पर नहीं रखा जा सकता।
  4. सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को दोषी मानते हुए सजा को जारी रखते हुए कहा है कि POCSO अपराध के लिए स्किन टू स्किन टच आवश्यक नहीं है।
  5. कोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न की मंशा से शरीर को छूना POSCO एक्ट के तहत मामला बनता है। कपड़े के ऊपर से बच्चे को छूना यौन शोषण नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता।
  6. बच्चों के साथ होने वाले अपराधों को ऐसे तर्कों से अपराधियो को बचाने से बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने POSCO एक्ट का अर्थ ही समाप्त हो जाएगा।
  7. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यौन शोषण के आरोपी को निचली अदालत से दी गई सजा और जुर्माने को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।

19 जनवरी 2021 को Bombay High Court ने क्या कहा था?

बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में 19 जनवरी 2021 को कहा था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट के बिना छूना POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा।

बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का विरोध किया था साथ ही इसे गलत भी बताया था।

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