पीएनबी घोटाला और रोटोमैक घोटाले के बाद भारतीय बैंक भारी एनपीए की समस्या से जूझ रही है। कई कॉरपोरेट कंपनियां बैंकों से लोन लेती हैं, कंपनी चलाती हैं और जब कंपनी नहीं चल पाती तो उनका दिवाला निकल जाता है। ऐसे में बैंकों को भी भारी नुकसान सहना पड़ता है। वर्तमान समय में कई ऐसी कंपनियां हैं जो भारतीय बैंकों से लोन लिए हुए है। ऐसे में इस प्रकार के रिस्क और भी बढ़ जाते हैं। लेकिन अब खबर आ रही है कि दिवालिया कानून में कई बदलाव किए जा सकते हैं। इस संबंध में कंपनी मामलों के सचिव इंजेटी श्रीनिवास की अगुआई में गठित समिति कई अहम सिफारिशें कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक, विशेषज्ञ समिति समाधान प्रक्रिया से गुजर रही सूक्ष्म, लघु एवं मझोली कंपनियों के प्रवर्वकों को बोली लगाने की अनुमति देने का सुझाव देने पर विचार कर रही है। साथ ही समिति इस बारे में भी भ्रम दूर कर सकती है कि घर खरीदारों को ऋणदाता माना जा सकता है या नहीं।

इसके अलावा समिति हाल में संशोधित दिवालिया कानून में कुछ अनिश्चितताओं को भी दूर करेगी। जैसे, संबद्घ व्यक्ति और संबंधित पक्ष की परिभाषा के बारे में भ्रम दूर करना। इसके साथ ही कूलिंग ऑफ पीरियड का भी प्रावधान किया जा सकता है। समिति इस कानून को देश से बाहर भी लागू किए जाने की संभावनाओं पर भी विचार कर रही है। बता दें कि इससे पहले दिवालिया कानून में संशोधन कर दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के प्रवर्तकों के बोली लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

वहीं दूसरी तरफ एक्सपर्ट का कहना है कि  मकान खरीदारों की स्थिति को परिचालन या वित्तीय ऋणदाता के तौर पर वर्गीकृत करना आवश्यक है। वर्तमान समय में मकान खरीदारों को ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत शामिल नहीं किया गया है। उन्हें केवल ऋणशोधन बोर्ड के पास अपने दावे जमा कराने की अनुमति है।

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