Benjamin Netanyahu की Israel की सत्ता में शानदार वापसी, जानिए कैसे रहे हैं उनके भारत के साथ रिश्ते

इजरायल की संसद कनेसेट (Knesset) में 120 सीटें हैं और 61 सीटों वाली पार्टी या गठबंधन सरकार बना लेता है. प्रधानमंत्री यार लापिड की येश-एटिड के ब्लाक को 53 सीटें मिलने का अनुमान जताया जा रहा है. वहीं Benjamin Netanyahu सहयोगियों को मिलाकर वो कुल 65 सीटें हासिल कर सकते हैं.

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Benjamin Netanyahu की Israel की सत्ता में शानदार वापसी, जानिए कैसे रहे हैं उनके भारत के साथ रिश्ते - APN News
Benjamin Netanyahu with his wife

इजरायल (Israel) के लोगों ने मंगलवार 1 नवंबर 2022 को पिछले लगभग चार सालों में देश में हो रहे पांचवें आम चुनाव में एक बार फिर मतदान का मौका मिला. इजरायल में बार बार हो रहे चुनावों के कारण आम लोगों को सरकार की स्थिरता और काबिलियत को लेकर चिंता बनी हुई थी. पूर्व प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) बुधवार को नाटकीय ढंग से इजरायल की सत्ता में वापसी करने जा रहे हैं.

अप्रैल 2022 में नफ्ताली बेनेट (Naftali Bennett) की सरकार के गिर जाने के बाद निर्धारित समय से तीन साल पहले ही चुनाव फिर से कराने पड़े. सरकार के गिरने के साथ ही संसद को भंग करना पड़ा ओर यार लापिड (Yair Lapid) को प्रधानमंत्री चुना गया था.

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नेतन्याहू की धमाकेदार वापसी

मंगलवार को हुए चुनाव के नतीजे आना शुरू हो गया है, इजराइली समाचार पत्र जेरूसलम पोस्ट के अनुसार पूर्व प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) बुधवार को नाटकीय ढंग से इजरायल की सत्ता में वापसी के लिए तैयार है, उन्होंने मतदाताओं से “विश्वास के विशाल वोट” का दावा किया और घोषणा की कि उनका दक्षिणपंथी खेमा एक शानदार चुनावी जीत के कगार पर था.

आम चुनाव में हुए कुल मतदान के 90 फीसदी मतों की गिनती के साथ, Benjamin Netanyahu के गुट 120 में से 65 सीटें मिलती दिख रही हैं. नेतन्याहू ने जेरूसलम में अपने उत्साही समर्थकों से कहा कि “हम एक बड़ी जीत के करीब हैं.” हालांकि, नेतन्याहू को अति-राष्ट्रवादी धार्मिक जियोनिजिम पार्टी के समर्थन पर निर्भर रहना होगा क्योंकि उनकी खुद की पार्टी को 30 सीट के आसपास ही मिलती हुई नजर आ रही हैं.

नेतन्याहू पिछले साल लगातार 12 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद शीर्ष पर थे. इस चुनाव को व्यापक रूप से नेतन्याहू की वापसी के पक्ष या विपक्ष में वोट के रूप में देखा गया.

Benjamin Netanyahu इजरायल के सबसे विवादास्पद राजनीतिक शख्सियतों में से भी एक हैं. वह इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के समाधान के रूप में वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में एक फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण का विरोध करते हैं. नेतन्याहू पर वर्तमान में कथित रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी और विश्वास के उल्लंघन के आरोपों को लेकर मुकदमों भी चल रहे हैं. हालांकि उन्होंने आरोपों का खंडन किया है.

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61 सीट वाले की सत्ता

इजरायल की संसद कनेसेट (Knesset) में 120 सीटें हैं और 61 सीटों वाली पार्टी या गठबंधन सरकार बना लेता है. प्रधानमंत्री यार लापिड की येश-एटिड के ब्लाक को 53 सीटें मिलने का अनुमान जताया जा रहा है. वहीं Benjamin Netanyahu सहयोगियों को मिलाकर वो कुल 62 सीटें हासिल कर सकते हैं.

हालांकि, तेल अवीव में अपनी पार्टी के शिविर में, प्रधान मंत्री लापिड ने अपने समर्थकों से कहा कि अभी “कुछ भी तय नहीं” हुआ है और उनकी येश-एटिड पार्टी अंतिम परिणामों की प्रतीक्षा करेगी.

सहयोगियों के साथ सत्ता में वापसी

इजराइल के इन चुनाव में 29 छोटे दल इस बार हिस्सा ले रहे थे. लेकिन इस बार भी दो लोगों के बीच कड़ी टक्कर का अनुमान था वो हैं – पूर्व प्रधान मंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू और मौजूदा प्रधानमंत्री यार लापिड.

Benjamin Netanyahu 1

इजराइली मीडिया के एक पोल के मुताबिक पहले से ही नेतन्याहू की लिकुड पार्टी बढ़त बनाते दिख रही थी. ज्यादातर पोल इशारा कर रहे थे कि नेतन्याहू की पार्टी 30 सीटें लाने में कामयाब हो सकती है इसके अलावा लिकुड के सहयोगियों को मिलाया जाए, तो ये संख्या 60 तक पहुंच सकती है.

चुनाव में धार्मिक जायोनिस्ट, जो कि नेतन्याहू के कथित समर्थक हैं, वो 14 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. वहीं दूसरी ओर उदारवादी बेनी गांट्स की नेशनल यूनियन पार्टी 12 सीटों के साथ चौथे स्थान पर है.

क्या रहे चुनावी मुद्दे?

चुनाव को लेकर दोनों प्रतिद्वंदियों के बीच करीबी मुकाबला दिख रहा है, वहीं कई मतदाता राजनीतिक अस्थिरता को लेकर चिंतित हैं. विश्लेषकों के अनुसार मतदाताओं के लिए स्थिरता स्थापित करना और अराजकता खत्म करना सबसे अहम मुद्दों में से एक है. इसके अलावा बढ़ती महंगाई और मुद्रास्फीति भी अहम मुद्दों में शामिल थे.

लेकिन पिछले दिनों इजराइल के खिलाफ फलस्तीनी हमलों में हुई बढ़ोतरी के कारण, चुनावों में सुरक्षा का मुद्दा भी अहम हो गया था. बढ़ते तनाव के बीच ही बेन गुएर जैसे धार्मिक नेताओं की लोकप्रियता बढ़ा दी है.

बेन गुएर (Itamar Ben-Gvir) ने पहले इजराइल का विरोध करने वाले फलस्तनियों को बाहर निकालने की अपील की थी, साथ ही अरबी सांसदों के लिए खिलाफ भी आवाज उठाते रहे हैं. गुएर अब वो नागरिक सुरक्षा (Public Security) का मंत्री बनना चाहता हैं. जेरुशलम पोस्ट के विश्लेषक इलिआव ब्रिवर कहते हैं कि धुर दक्षिणपंथियों का वर्चस्व देश में इसलिए बढ़ता दिख रहा है क्योंकि मौजूदा गठबंधन सरकार में अरब प्रतिनिधियों की मौजूदगी है.

ब्रिवर लिखते हैं कि, “पिछले डेढ़ सालों में पहली बार हमने इसराइली अरब पार्टी को सरकार में देखा है. कट्टरपंथी यहूदी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं और दावा करते हैं कि अरबों की मौजूदगी सुरक्षा के लिए खतरा है. हिंसा बढ़ने के बाद वो आरोप लगाते हैं कि सरकार ने ठीक से काम नहीं किया.”

भारत के साथ रिश्ते

बेंजामिन नेतन्याहू के भारत के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं. 5 साल पहले प्रधानमंत्री के तौर पर नेतन्याहू ने भारत की यात्रा की थी तो पीएम नरेंद्र मोदी प्रोटोकाल तोड़कर उनका स्वागत करने के लिए हवाईअड्डे पर पहुंचे थे. इसी साल वे इजराइल दौरे पर गए थे. मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने इजराइल की यात्रा की थी.

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