सहारनपुर जातीय हिंसा का आरोपी औऱ भीम आर्मी का मुखिया चंद्रशेखर उर्फ रावण को रिहा कर दिया गया है। पिछले 15 महीनों से रासुका के तहत जेल में कैद रावण की रिहाई से सियासी पारा गर्म है। दरअसल, दलितों में पनप रहे आक्रोश और बीएसपी के समानातंर एक नए दलित नेतृत्व के इस्तेमाल के लिए रावण की वक्त से पहले रिहाई भले ही बीजेपी के लिए एक दांव की तरह हो। लेकिन जेल से आजाद होने के बाद रावण ने जिस तरह बीजेपी के खिलाफ जहर उगला है उससे ये साफ है कि बीजेपी का ये दांव फिलहाल उस पर भारी पड़ता दिख रहा है।

दलित सियासत के नए चेहरे चंद्रशेखर उर्फ रावण का साथ पाने की राजनीतिक दलों में होड़ सी मची है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी तक रावण को अपने पाले में लाने की जुगत भिड़ा चुके हैं। हालांकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती को लेकर रावण का नर्म रुख और बीजेपी को लेकर सख्त अंदाज भले ही बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो। लेकिन चुनौती बीएसपी के लिए भी कम नहीं है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब तक दलित वोटबैंक की सबसे बड़ी दावेदार रही बीएसपी को भीम आर्मी से चुनौती मिलना नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

लोकसभा चुनाव की घड़ियां धीरे-धीरे नजदीक आती जा रही हैं। ऐसे में सवाल इस बात को लेकर उठ रहे हैं कि क्या यूपी में एक बार फिर जाति का जहर घोला जाएगा। क्या रावण को रिहा करना क्या बीजेपी की मजबूरी है और सबसे बड़ा सवाल क्या चंद्रशेखर की बातों पर विश्वास करेगी जनता।

एपीएन ब्यूरो

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