सुप्रीम कोर्ट के आज दिए एक फैसले के बाद देश भर में करीब 8.24 लाख वाहन कबाड़ में बदल जायेंगे। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऑटो कंपनियों की उस याचिका के बाद में आया है जिसमे भारत स्टैण्डर्ड थ्री (बीएस-3) के वाहनों पर 31 मार्च के बाद लगी रोक को हटाने की मांग की गई थी। कंपनियों ने इस सम्बन्ध में अपनी याचिका में कहा था कि ऐसे वाहनों की बिक्री बंद होने के बाद उन्हें व्यवसायिक तौर पर बड़े नुकसान का सामना करना पड़ेगा। देश में 6,71,308 दो पहिया, 40,048 तीन पहिया, 96,724 व्यावसायिक वाहन और 16, 198 कारें हैं जो बीएस 3 के मानक के तहत हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक अप्रैल से देश भर में सिर्फ बीएस-4 स्टैण्डर्ड के वाहनों की बिक्री हो सकेगी। यह रोक इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि आपके व्यवसायिक हित से ज्यादा जनता की सेहत जरुरी है। इससे पहले कल सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कंपनियों ने कोर्ट से 6 महीने की मोहलत देने की मांग की थी। कंपनियों की इस मांग को अदालत ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि आपको इस फैसले से सम्बंधित अधिसूचना के बारे में 2014 से ही पता था। ऐसे में अब इसके लागू होने से तुरंत पहले इसे रोकना सही नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट में प्रमुख दो पहिया वाहन कंपनी हीरो मोटोकार्प की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि कंपनी के पास बीएस–तीन मानक वाले 3.28 लाख दोपहिया वाहनों का स्टॉक है। इन वाहनों पर रोक लगने से कंपनी को 1500 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। हालांकि, बजाज ऑटो की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने एक अप्रैल से बीएस-तीन वाहनों के पंजीकरण पर रोक लगाने संबंधी याचिका का समर्थन किया और कहा कि विनिर्माण पर रोक का मतलब इस तरह के वाहनों की बिक्री और पंजीकरण पर भी रोक लगाना है।
इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने अदालत को बताया कि बीएस–चार उत्सर्जन मानकों वाले वाहनों के लिए ईंधन अधिक साफ और स्वच्छ है। तेल रिफाइनरियों ने 2010 से इसके उत्पादन के लिए करीब 30,000 करोड़ रुपये खर्च किया है। ऐसे में बीएस-3 वाहनों पर रोक सही है और बीएस-4 वाहनों से सम्बंधित आदेश को 1 अप्रैल से लागू होना चाहिए। इस आदेश के बाद कई प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।