कहते हैं भगवान के यहां देर है अंधेर नहीं, बस लड़ने के लिए हिम्मत होनी चाहिए मदद के लिए खुदा साथ रहता है। इस कहावत को सच चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू  ने किया था। इन्होंने अपनी हिम्मत से जाने-माने बाहुबली शाहबुद्दीन को जेल पहुंचाया था। इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाले चंदा बाबू का हार्ट के कारण निधन हो गया है। 2004 स 2014 तक कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते चंदा बाबू ने दुनिया को अलविदा कह दिया और जाते-जाते लाखों के लिए मिसाल बन गए।

चंदा बाबू का निधन उनके ही आवास पर हुआ है। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। अधिक हालत खराब होने के बाद परिवारजन उन्हें अस्पताल ले गए जहां डॉक्टरों ने चंदा बाबू को मृत घोषित कर दिया। उनके निधन की खबर सुनते ही घर पर नेताओं की भीड़ इकट्ठा हो गई। सभी लोग उनके दिव्यांग पुत्र को सांत्वना दे रहे थे।

एक समय था जब चंदा बाबू का सुंदर सा परिवार था। घर में चार बेटे और पढ़ी-लिखी पत्नी थी। एक बेटा दिव्यांग हैं। दो बेटे सिवान में अपनी दुकान संभाल रहे थे और एक बेटा पटना में अधिकारी था। चंदा बाबू व्यवसाय करने वाले अपने दो बेटों के साथ सिवान में रहते थे। घर काफी बड़ा था। इसलिए उन्होंने सोचा की क्यों न एक कमरे को किराए पर दे दिया जाए। चंदा बाबू ने उसमें एक किराए दार को रखा किराए दार उसमें छोटी सी गुमटी चलाता था। उसी वक्त से उनके घर मे काल मंडराने लगा।

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दुकानदार ने उस दुकान पर अपना कब्जा बनाना चाहा । इसी को लेकर पंचायती आरंभ हुई और 16 अगस्त 2004 को कुछ बाहरी तत्वों के दबाव बनाने पर चंद्रकेश्वर बाबू उर्फ चंदा बाबू के परिवार और बाहरी आगंतुकों के बीच झड़प हो गई। जान बचाने के उद्देश्य से चंदा बाबू के परिवार वालों ने कारोबार के उद्देश्य से रखे गए तेजाब को फेंक कर अपनी जान बचाई जिसमें बाहरी तत्वों के दो लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए ।

परिणाम स्वरूप प्रतिरोध के रूप में चंदा बाबू के दो पुत्रों को शहर के विभिन्न विभिन्न दुकानों से अपहरण कर लिया गया। मां कलावती देवी ने अपने दो बच्चों के अपहरण को लेकर मुफस्सिल थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। प्राथमिकी दर्ज होने के पश्चात भी दोनों बच्चे प्राप्त नहीं हुए और अपहरण को लेकर मामला न्यायालय में स्थानांतरित हो गया। चंदा बाबू पर कई प्रकार का दबाव बनाया गया था कि मुकदमे को उठा लिया जाए, लेकिन चंदा बाबू का साहस ही था कि मामला तेजाब कांड के रूप में चर्चित हो गया।

दो लड़कों के साथ बड़ा लड़का राजीव रोशन उर्फ राजेश भी उसी समय से लापता था, लेकिन अचानक से वह 2015 में उपस्थित हो आया और न्यायालय में आकर  मोहम्मद शहाबुद्दीन के विरुद्ध उसने गवाही दी और मामला अपहरण से हत्या के रूप में स्थानांतरित हो गया। अंततः तेजाब हत्याकांड की सुनवाई हुई और मोहम्मद शहाबुद्दीन सहित अन्य तीन को आजीवन कारावास की सजा विशेष अदालत द्वारा दी गई। मामले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील हुआ तदनुसार उच्चतम न्यायालय तक मामला गया और उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत की सजा को कंफर्म करते हुए मोहम्मद शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल तक पहुंचा दिया।

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मोहम्मद शहाबुद्दीन

तेजाब कांड के मुख्य गवाह राजीव रोशन की भी हत्या 2015 में अपराधियों द्वारा कर दी गई। वह मामला न्यायालय में अभी लंबित है। चंद्र केश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू का जंग अभी यहीं समाप्त नहीं हुआ था । बल्कि तेजाब कांड में मरे अपने बच्चों के विरुद्ध अन्य आठ अभियुक्तों के लंबित मामले में भी उनकी गवाही हो गई थी । जो एडीजे वन के न्यायालय में लंबित है ।

राजीव रोशन के हत्यारों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज थी वह मामला भी ट्रायल के स्तर पर था । यह दो महत्वपूर्ण मामले भी उनके लड़ाई के अंग थे। किंतु इंसाफ की लड़ाई लड़ते-लड़ते वह मानसिक रूप से भी कमजोर हो गए थे और उम्र ने शरीर का साथ देना छोड़ दिया था। वे जीवन की जंग के आगे अपनी हार मानते हुए अंतिम विदा ले ली। उनके परिवार में मात्र अब एक दिव्यांग पुत्र ही शेष है जो उनके धरोहर के रूप में है।

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