पंजाब सरकार ने भगत सिंह को शहीद का औपचारिक दर्जा देने से इंकार कर दिया है। पंजाब सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 18 के तहत एबोलिशन ऑफ़ टाइटल्स नियम का हवाला देते हुए कहा है कि सरकार फौजियों के अलावा किसी को कोई टाइटल नहीं दे सकती।

आपको बता दें कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट हरि चंद अरोड़ा ने सरकार को पत्र लिखकर भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग की थी। इस पत्र के जवाब में सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च द्वारा प्रकाशित किताब डिक्शनरी ऑफ मार्टियर्स : इंडियाज फ्रीडम स्ट्रगल का जिक्र करते हुए कहा है कि इस किताब में भारत के शहीदों का वर्णन है। सरकार भी शहीदों के सम्मान में समय-समय पर राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करती है। पंजाब में शहीदों के स्मारक भी बनाए गए हैं और शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकारी छुट्टी का प्रावधान भी है।

पंजाब सरकार ने इस चिट्ठी के जवाब में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का हवाला का जिक्र भी किया। विरेंद्र सांगवान वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स के केस में दिसंबर 2017 में अदालत ने कहा था कि भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को शहीद का दर्जा देने की याचिकाकर्ता की अपील का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है और इसलिए ये याचिका खारिज की जाती है।

पंजाब देशभर में भगत सिंह के केस और उनको शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग पुरानी है। लाहौर में भी उनके केस को खोलने की मांग की जाती रही है। वहीं भगत सिंह और उनके साथियों को शहीद का दर्जा दिलाने को लेकर जबर विरोधी संघर्ष कमेटी के कनवीनर जसवंत सिंह भारटा आठ दिनों से पंजाब में भूख हड़ताल कर रहे हैं।

बता दें कि भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नायकों में से थे। भगत सिंह ने कम उम्र में ही अंग्रेजी शासन को अपने क्रांतिकारी विचारों और गतिविधियों से डरा दिया था। अंग्रेज ऑफिसर सैन्डर्स को मारकर भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला अंग्रेजों से लिया था। अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी। भगत सिंह को पंजाब में शहीद का दर्जा देने के लिए लंबे समय से मुहिम चलाया जा रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here