जब नमक को लेकर महात्मा गांधी ने किया था आंदोलन और अंग्रेज कर रहे थे जासूसी

महात्मा गांधी की जीवनी लिखने वाले अमरीकी जीवनी-लेखक लुई फिशर ने लिखा है कि असहयोग भारत (असहयोग आंदोलन) और गांधी जी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया. असहयोग शांति की दृष्टि से नकारात्मक किंतु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था.

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जब नमक को लेकर महात्मा गांधी ने किया था आंदोलन और अंग्रेज कर रहे थे जासूसी - APN News

राष्ट्रवाद के इतिहास में प्रायः एक अकेले व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण के साथ जोड़कर देखा जाता है. उदाहरण के लिए, हम इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डी को, अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध के साथ जॉर्ज वाशिंगटन और वियतनाम को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के संघर्ष को हो ची मिन्ह से जोड़कर देखते हैं. इसी तरह भारत में महात्मा गांधी को याद किया जाता है. हालांकि, वाशिंगटन या हो ची मिन्ह की तरह महात्मा गांधी का राजनीतिक जीवन-वृत्त उस समाज ने ही संवारा और नियंत्रित किया, जिस समाज में वे रहते थे. कोई व्यक्ति चाहे कितना ही महान क्यों न हो वह न केवल इतिहास बनाता है बल्कि स्वयं भी इतिहास द्वारा बनाया जाता है.

बात हो रही है उन राजनीतिक यात्रायों की जिसने देश की राजनीति को बदल कर रख दिया…

अंग्रेज सरकार द्वारा नमक को लेकर बनाई गई नीति के खिलाफ महात्‍मा गांधी अपने साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा करते हुए समुद्र की ओर चले. अमेरिकी मीडिया ने इसका जमकर मजाक उड़ाया और ब्रिटेन की सरकार गांधी के इस कदम को नजरअंदाज कर गई. लेकिन ब्रिटिश हुकूमत की यही नादानी गांधी की यात्रा को एक विराट फलक दे गयी. जो अमेरिकी मीडिया गांधी का मजाक उड़ा रहा था उसी अमेरिकी मीडिया ने अपना रुख बदला और गांधी के लिए तारीफों के पुल बांध दिए. गांधी के साथ देश की जनता खड़ी हो गई थी. ब्रिटिश हुकूमत एक विराट व्‍यक्तित्‍व के सामने बौनी नजर आने लगी थी. गांधी की यह यात्रा स्‍वतंत्रता आंदोलन में एक मील का पत्‍थर साबित हुई.

महात्मा गांधी की जीवनी लिखने वाले अमरीकी जीवनी-लेखक लुई फिशर ने लिखा है कि असहयोग भारत (असहयोग आंदोलन) और गांधी जी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया. असहयोग शांति की दृष्टि से नकारात्मक किंतु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था. इसके लिए प्रतिवाद, परित्याग और स्व-अनुशासन आवश्यक थे. यह स्वशासन के लिए एक प्रशिक्षण था.

दांडी मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन

दांडी मार्च, जिसे नमक मार्च और दांडी सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है, महात्मा गांधी के नेतृत्व में किया गया एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन था. 12 मार्च, 1930 से 6 अप्रैल, 1930 के बीच चले इस आंदोलन को नमक पर ब्रिटिश सरकार के एकाधिकार के खिलाफ प्रतिरोध करने और अहिंसक विरोध के अभियान के रूप में चलाया गया था.

महात्मा गांधी ने 12 मार्च को साबरमती से अरब सागर (दांडी का तटीय शहर) तक 78 अनुयायियों के साथ 241 मील लंबी यात्रा की. यात्रा का उद्देश्य गांधी और उनके समर्थकों द्वारा समुद्र के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश नीति को तोड़ना था. 6 अप्रैल 1930 को गांधी और उनके सहयोगियों ने नमक को लेकर बनाए गए कानून को तोड़ा.

गांधी की दांडी यात्रा की तर्ज पर भारतीय राष्ट्रवादियों ने बंबई और कराची जैसे तटीय शहरों में नमक बनाने के लिए भीड़ का नेतृत्व किया. इन सभी लोगों ने दांडी की तरह ही अलग-अलग स्थानों पर अपने हाथों से नमक बनाया और नमक का कानून तोड़ा. गांधी द्वारा किए गए दांडी मार्च ओर नमक को लेकर बनाए गए कानून को तोड़ने के बाद से ही पूरे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रसार पूरे देश में फैल गया था.

प्रसिद्ध कवयित्री सरोजिनी नायडू द्वारा 21 मई को बंबई के नजदीक धरसाना नामक स्थल पर 2,500 लोगों का नेतृत्व किया गया. अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर द्वारा दर्ज की गई इस घटना ने भारत में ब्रिटिश नीति के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश उत्पन्न कर दिया.

सत्याग्रह की समाप्ति

सविनय अवज्ञा आंदोलन संपूर्ण देश में फैलने के बाद से ब्रिटिश अधिकारियों ने 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया. इसी देशव्यापी कार्रवाई के तहत 5 मई को गांधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन गांधी की गिरफ्तारी होने के बाद भी यह सत्याग्रह जारी रहा.

हालांकि गांधी को जनवरी 1931 में जेल से रिहा कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन से मुलाकात की ओर लंदन में भारत के भविष्य पर होने वाले गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने एवं सत्याग्रह को समाप्त करने पर सहमति बनी.

गोलमेज सम्मेलन

गांधी ने अगस्त 1931 में राष्ट्रवादी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित किए गए तृतीय गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लिया. हालांकि ये बैठक निराशाजनक ही रही, लेकिन ब्रिटिश नेताओं ने गांधी को एक ऐसी ताकत के रूप में स्वीकार किया जिसे वे न तो दबा सकते थे और न ही अनदेखा कर सकते थे.

आंदोलन को लेकर जासूसी

गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को मिल रही सफलता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने गुजरात में आ रहे तेज राजनीतिक बदलावों पर गहरी नजर रख रही थी, गुजरात को लेकर एक रिपोर्ट में लिखा गया था कि सविनय अवज्ञा आंदोलन को लेकर “प्रांत की राजनीतिक परिस्थितियों पर किस हद तक और क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है. रबी की फसल अच्छी हुई है इसलिए फिलहाल किसान फसलों की कटाई में व्यस्त हैं. विद्यार्थी आने वाली परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं. वल्लभ भाई पटेल की गिरफ्तारी पर कांग्रेसियों के अलावा और कहीं कोई खास उत्तेजना पैदा नहीं हुई. लेकिन नागपुर नगर कांग्रेस कमेटी द्वारा गांधी की यात्रा शुरू होने पर उन्हें बधाई देने के लिए आयोजित सभा में 3,000 से ज्यादा लोग जुटे थे.”

बंगाल को लेकर एक खुफिया रिपोर्ट में कहा गया था कि “गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत पिछले पखवाड़े की सबसे महत्वपूर्ण घटना रही. जे.एम सेनगुप्ता ने अखिल बंगाल सविनय अवज्ञा परिषद् का गठन किया है. बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने अखिल बंगाल अवज्ञा परिषद् बनाई है. इन परिषदों के गठन के अलावा बंगाल में सविनय अवज्ञा के प्रश्न पर और कोई सक्रिय कदम अभी नहीं उठाया गया है.”

बिहार और उड़ीसा को लेकर लिखा गया था कि “कांग्रेस की गतिविधि के बारे में रिपोर्ट करने लायक कुछ खास नहीं है. चैकीदारी टैक्स का भुगतान न करने के बारे में एक अभियान की काफी चर्चा हो रही है लेकिन अभी इस प्रयोग के लिए किसी इलाके का चुनाव नहीं किया गया है. गांधी की गिरफ्तारी के बारे में खूब कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि यह भविष्यवाणी सच साबित न हो पाने के कारण उनकी योजनाएं धरी की धरी रह गई हैं.”

बम्बई के बारे में एक रिपोर्ट में लिखा गया था कि “केसरी प्रेस ने आक्रामक भाषा का प्रयोग किया है और हमेशा की तरह आग उगलने के अंदाज में लिखा है: अगर सरकार सत्याग्रह की ताकत परखना चाहती है तो उसे पता होना चाहिए कि सत्याग्रह की सक्रियता और निष्क्रियता, दोनों से सरकार को ही नुकसान पहुंचेगा. यदि सरकार गांधी जी को गिरफ्तार करती है तो उसे राष्ट्र के कोप का भाजन बनना पड़ेगा और यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो सविनय अवज्ञा आंदोलन फैलता जाएगा. इसलिए हमारा मानना है कि अगर सरकार श्री गांधी को दंडित करती है तो भी राष्ट्र की विजय होगी और अगर सरकार उन्हें अपने रास्ते पर चलने देती है तो राष्ट्र की और भी बड़ी विजय होगी. दूसरी ओर विविध वृत्त नामक मध्यमार्गी अखबार ने इस आंदोलन की व्यर्थता की ओर संकेत किया है और कहा है कि यह आंदोलन अपना घोषित उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पाया है लेकिन उसने सरकार को भी चेतावनी दी है कि दमन का रास्ता उसके उद्देश्य को कमजोर कर देगा.”

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