Earth Day: हमेशा से फिल्मी जगत का रहा है प्रकृति से नाता, इन फिल्मों ने दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश

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Earth Day
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श्वेता राय

नई दिल्ली। वाकई में प्रकृति हमेशा से ही मानव जीवन का अहम हिस्सा रही है। यही वजह है कि हमारे हिन्दी सिनेमा ने हमेशा से ही प्रकृति और उससे जुड़े मुद्दों को न केवल फिल्मों में दिखाया है बल्कि एक ताकतवर आवाज के तौर पर भी यह उभर कर सामने आया है, जिसमें शो मैन राजकपूर से लेकर विमल दा और आज के सिने जगत के कई ऐसे नाम हैं जिन्होनें बखूबी अपनी जिम्मेदारी को निभाया और इसी जिम्मेदारी में पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ मानव जीवन को सुरक्षित रखने का प्रयास अपनी फिल्मों के जरिये हमेशा करते रहे हैं। यही वजह रही है कि आज भी हिन्दी सिनेमा को समाज का एक अभिन्न अंग माना गया है।

Earth Day: कई पर्व और त्योहारों के जरिए होती है प्रकृति की पूजा

Earth Day: बॉलीवुड फिल्मों में  प्रकृति से जुड़ी हमारी संस्कृति और आस्था को फिल्मों के जरिये विशेष रूप ये दिखाया गया है जिसमें कभी नदियों की पूजा, कभी पेड़ों की तो कभी धरती की पूजा की जाती है और इससे जुड़े कई  ऐसे त्योहार भी हैं जिनमें छठ पूजा ऐसा एक त्योहार जिसमें प्रकृति के हर स्वरूप की पूजा होती है, जिसमें भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर जीवन में खुशहाली की कामना की जाती है।

वहीं गोवर्धन पूजा, वट सावित्री पूजा, गंगा दशहरा जैसे कई ऐसे पर्व हैं जिसमें प्रकृति को देवी–देवता का रूप माना गया है और उनके प्रति श्रद्धा दिखाई गई है। लोगों की आस्था और विश्वास का ही परिणाम है कि बदलते समय के साथ भी  इन परम्पराओं का अस्तित्व आज भी जीवित है जिसे हमारी फिल्मों में विशेष स्थान दिया गया है और उस आस्था को भी दिखाया गया है जो सदियों से चली आ रही हैं।

Earth Day: क्षिति,जल,पावक,गगन,समीरा ! पंचतत्व विन अधम शरीरा, हमारे वेद पुराणों में बताया गया है कि मानव इन पांच तत्व से मिलकर बना है अगर इसमें किसी का भी संतुलन बिगड़ता है तो इन्सान का जीवन खतरे में आ जाता है। ऐसा ही प्रकृति का संतुलन है जब वो बिगड़ता है तो इंसानी जीवन ही खतरे में आ जाता है। 1965 में आर के नारायण के उपन्यास पर बनी फिल्म गाइड (Guide Movie) में आस्था और प्राकृतिक आपदा को एक दूसरे से जोड़कर दिखा गया है।

उस गांव के इलाके में भी अकाल पड़ जाता है। राजू पसोपेश में पड़ जाता है, पहले तो राजू इसका विरोध करता है। अंततः राजू उपवास के लिए राज़ी हो जाता है हालांकि उसे विश्वास नहीं होता कि मनुष्य के उपवास रखने में और वर्षा होने में कोई संबन्ध है। लेकिन उपवास के दौरान राजू का आध्यात्मिक विकास होता है आखिर में बारहवें दिन वर्षा होती है लेकिन राजू का निधन हो जाता है।

Earth Day: वाकई में इस फिल्म में एक व्यक्ति का आत्मा परिवर्तन और लोगों के विश्वास पर खरा उतरने के लिये और बारिश लाने के लिये कैसे एक इंसान को जुड़ते दिखाया है ये बेहद मार्मिक है  कुछ इसी आस्था को प्रदर्शित करता ये गाना जिसमें गंगा को जीवन का प्रतीक बताया गया है और एक पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिये गंगा को प्रतीक मानती है इससे जल और जीवन क महत्व स्वयं समझ में आ जाता है।

Earth Day: एक किसान के लिये उसकी धरती उसकी माँ के समान है उसी से उसका और उसके परिवार का अस्तित्व जुड़ा होता है और धरती पर जब वह लहलहाती फसलें देखता है तो उसके जीवन में  मानो नयी उमंग तरंग का संचार होता है और हो भी क्यों ना वही तो उसके जीवन की जमा पूँजी है उसका मान सम्मान है और अपने लोगों से जुड़े होने का एहसास दिलाती है।

Earth Day: उपकार का वो गीत तो सभी को याद होगा जिसमें धरती की खूबसूरती और संपदा का वर्णन  किया गया है यही धरती किसान के लिये उसका जीवन है उसकी आशा और सपने हैं। ‘मेरे देश की धरती’  मनोज कुमार पर फिल्माये गये गाने में वो सभी एहसास है जो एक किसान की खुशहाली और उसके स्वामित्व का एहसास दिलाती है जो आज भी अपनी  जड़ों से जुड़े हैं अपने लोगों से जुड़े हुए हैं। 1953 में आयी बिमल दा की  बेहतरीन फिल्म  ‘दो बीघा ज़मीन’ में बड़े सहज ढंग से शम्भू महतो के रूप में एक किसान के लिये उसकी  धरती का क्या मोल है बड़ी खूबसूरती से फिल्माया गया है।

Earth Day: किसान की आस उसकी धरती से ही जुड़ी होती है लेकिन जब वही धरती उसके पास नहीं होती है कैसे एक किसान मजदूर बन जाता है उसे बेहद मार्मिक ढंग से दिखाया गया है। गोदान, 1963 में मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यास पर बनी वो फिल्म है जिसे  ग्रामीण जीवन और कृषक संस्कृति का महाकाव्य कहा जा सकता है  यह फिल्म नायक होरी की वेदना को लोगों मन में गहरी संवेदना भर देती है।  गोदान औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत किसान का महाजनी व्यवस्था में चलने वाले निरंतर शोषण की कहानी है और वो वेदना है जो किसान अपने ज़मीन को खो देता है।

Earth Day: ‘गोदान’ होरी की कहानी है, उस होरी की जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके, फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता। परिणामतः वह जप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। यह होरी की कहानी नहीं, उस काल के हर भारतीय किसान की आत्मकथा है। और उसके दर्द को दर्शाती है कि किस तरह उसकी धरती छिन जाने पर उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।

Earth Day: ‘नीले गगन के तले धरती का प्यार पले’ गीत- केवल संस्कृति और आस्था को ही नहीं बल्कि जीवन के उस खूबसूरत  हिस्से को भी प्रकृति से जोड़ा है जो मानव जीवन का अहम हिस्सा है और वो है प्रेम कई ऐसी फिल्मी गाने हैं जिसमें प्रेम की परिभाषा को प्रकृति से जोड़ा गया है और वो फला फूला भी उसी के आंगन में है और यही नहीं कई बार कवियों ने  प्रेमिका के सौन्दर्य की व्याख्या भी प्रकृति से प्रेरित होकर लिखी है।

Earth Day: प्रेम और सौंदर्य का वर्णन करने के लिये हमेशा से कवियों और लेखकों ने प्रकृति का सहारा ही लिया है और यही नहीं बॉलीवुड फिल्मों में भी कई ऐसे गाने फिल्माये और लिखे गये जो प्रकृति का ही सौन्दर्य वर्णन था। वो चाहे प्रेमिका के प्रेम का वर्णन हो या फिर इसके सौन्दर्य दोनों को प्रकृति से ही जोड़ा गया है हो भी क्यों ने प्रेम की ऋतु बसन्त मे न केवल प्रकृति का सौन्दर्य बढ़ जाता है बल्कि इसे तो ऋतुओं का राजा भी कहा गया है इस मौसम में चारों ओर का वातावरण मनमोहक लगने लगता है।

बालिका वधू का ये खूबसूरत गाना जिसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका की तरीफ करने के लिये प्रकृति को प्रतीकों के रूप में इस्तोमाल करता है। वहीं 1956 मे बनी फिल्म चोरी चोरी का खूबसूरत गीत ‘पंछी बनूं उड़ती फिरूं’ जिसमें पंछी बनकर खुले आकाश में उड़ने की तमन्ना को बेहद खूबसूरती से फिल्माया गया है ।

वहीं मणिरत्नम की फिल्म  रोजा का वो सुरीला गीत जिसमें कश्मीर की खूबसूरत वादियों का जिक्र गाने के जरिये किया गया है। वहीं हरियाली और रास्ता का गीत जिसमें हरियाली और प्रेम को एक साथ दिखाया गया है कि अगर  हरियाली है तो ही जीवन है। ज्वैल थीफ में प्रेमी प्रेमिका अपने खूबसूरत लम्हों को भी आसमान और ज़मीन पर यादों के रूप में संजों कर रखना चाहते हैं वहीं लव स्टोरी का वो गाना जिसमें दोनो अपने घरौदें को खूबसूरत वादियों  में बनाने की तमन्ना करते हैं। ‘देखा मैंने देखा फूलों के शहर’ फिल्म ‘कश्मीर की कली’ मे शर्मिला टैगोर और शम्मी कपूर पर फिल्माया वो सुरीला गीता जहाँ बादल भी प्रेमिका के प्रेम और सोन्दर्य को देख कर उसका दीवाना हो जाता है।

Earth Day: वहीं फिल्म हिमालय की गोद में  मनोज कुमार अपनी महबूबा की तारीफ चाँद से करते हुये अपनी प्रेमिका के सौन्दर्य में  चार चाँद लगा देते हैं। प्रेम के साथ-साथ  सरहदों के बीच की कड़वाहट को  भी कम करने के लिये रिफ्यूजी फिल्म में प्रकृति का ही सहारा लिया गया है। वहीं अगर अपने देश का बखान और उसके अनोखे सौन्दर्य का वर्णन करना हो तो भी प्रकृति से अच्छा उदाहरण कौन हो सकता है।  

Earth Day: प्रकृति ने हमेशा हम सभी को कुछ न कुछ दिया है वो भी निस्वार्थ भाव से लेकिन मानव जब इसी संपदा का दुरुपयोग करने लगता है तो कई ऐसी आपदायें आती हैं जो हमारे जीवन को अस्त व्यस्त कर देती हैं इनमें से सूखा  ,अकाल और बाढ़  ऐसी समस्या है जिसका सभी को सामना करना पड़ रहा है। जिस प्रकार हम अपने स्वार्थ के लिये जंगलों को काटते जा रहे हैं और वन्य जीवन को खतरे में डाल रहे हैं तो वो दिन दूर नहीं जब हम मानव संपदा को भी खो देंगे। हमारी हिन्दी फिल्मों में भी हमेशा से पर्यावरण औऱ उससे जुड़े मुद्दों पर फिल्में बनती रही हैं और साथ ही साथ इसके जरिये सामाजिक संदेश देने की भी कोशिश की जाती रही कि है प्रकृति हमारे लिये कितनी महत्वपूर्ण है।

Earth Day: प्रकृति मे लगातार जलवायु परिवर्तन हो रहा है जिसकी वजह से पानी की समस्या हमेशा बनी रहती है  आज जब देश के सामने पानी की समस्या विकराल रूप ले रही है, जिसकी वजह से समय समय पर हिन्दी फिल्मकारों ने  इस विषय पर फिल्म बनाते आ रहे हैं !

दरअसल, सिनेमा किसी भी मुद्दे को प्रभावी ढंग से लोगों तक अपनी बात पहुँचाने का सबसे सशक्त माध्यम है। क्योंकि, लोग इसे पर्दे पर देखते हैं और इसका सीधा असर उनके जहन पर पड़ता है। पानी की किल्लत पर ख्वाजा अहमद अब्बास ने 1971 ‘दो बूंद पानी’ जैसी सामाजिक फिल्म बनाई! राजस्थान की पृष्ठभूमि और पानी की किल्लत पर आधारित  है जिसमें पानी की समस्या जैसे मुद्दे को बड़े  सशक्त ढंग से फिल्माया गया है।  इस फिल्म को राष्ट्रीय अखंडता के लिए पुरस्कार भी मिला।

Earth Day: इसी तरह से राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित महाश्वेता देवी के उपन्यास पर  1993 में फिल्म रुदाली  बनी। फिल्म रुदाली में रुदाली के जीवन को आधार बनाते हुये पानी की समस्या को बहुत ही मार्मिक तरीके से दिखाया गया है कि कैसे पानी की किल्लत पूरे जीवन को प्रभावित कर देती है। इसी तरह मैला आँचल फिल्म में गाने के माध्यम से पानी की समस्या को दिखाया गया है कि किस तरह लोग पानी की आस में जीवन की आस को ढूंढ़ रहे हैं । आमिर खान ने 2001 में ‘लगान’ बनाई! ये फिल्म बारिश की कमी से किसानों को होने वाली परेशानी और अंग्रेज सरकार द्वारा वसूले जाने वाले लगान पर आधारित थी।

Earth Day: अपने सशक्त कथानक के कारण फिल्म हिट रही, पर इसमें जलसंकट जैसे  मुद्दे के साथ किसानों की समस्या को भी दिखाया गया है। इसी तरह 2013 और 2014 में पानी के मुद्दे पर ‘कौन कितने पानी में’ और ‘जल’  फिल्म आई ‘जल’ को कच्छ के रण में फिल्माया गया था। ये बक्का नाम के एक ऐसे युवक की कहानी है, जिसके पास दैवीय शक्ति है। इसके दम पर वो रेगिस्तान में भी पानी खोज सकता है। इस फिल्म को विदेशी भाषा की ऑस्कर अवॉर्ड फिल्मों में भारत की तरफ से भेजा भी गया था।

Earth Day: वहीं फिल्म ‘कौन कितने पानी में’ दो गाँवों ऊपरी और बैरी की कहानी है। ऊपरी गाँव ऊँची जाति वालों का है और बैरी गाँव में पिछड़ी जाति के लोग रहते हैं। लेकिन, वे जागरूक हैं और पानी को सहेजते हैं। एक ऐसा समय आता है, जब ऊँची जाति वालों के गाँव में पानी की किल्लत आती है।  और ऊँची जाति वाले बैरी गाँव से छल प्रपंच करके पानी जुगाड़ लेते हैं। फिल्म का निष्कर्ष  निकलता है कि यदि पानी को सहेजा नहीं गया तो इस किल्लत से हमें निपटना पड़ेगा?

Earth Day: पानी की समस्या पर बनी एक फिल्म और है जो बेहद मार्मिक है 2017 में बनी फिल्म ‘कड़वी हवा’ की कहानी दो ज्वलंत मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है। एक है जलवायु में बदलाव के कारण बढ़ता जलस्तर और दूसरे सूखे की समस्या! फिल्म में सूखाग्रस्त बुंदेलखंड दिखाया गया है। बुंदेलखंड ऐसा इलाका है, जो हमेशा सूखे के लिए चर्चित रहता है। सूखे की समस्या के कारण यहां के किसान कर्ज में डूबे  हुए हैं। उनकी आत्महत्याओं की ख़बरें भी लगातार  आ रही  हैं। यहां तक कि गरीब किसान पेड़ों के पत्ते उबालकर खाने को मजबूर हो जाते हैं। किसानों की बेबसी और सूखी जमीन की हकीकत दिखाती फिल्म ‘कड़वी हवा’ में संजय मिश्रा ने बेहतरीन अभिनय किया है।

Earth Day: नील माधव पांडा द्वारा निर्देशित यह फिल्म आपको अंदर तक झकझोर देगी। क्योंकि ये उस कहानी को बयां करती है जिसे हर वो किसान झेल रहा है जो बारिश न होने के कारण परेशान है। यहां तक कि आत्महत्या तक कर लेने के लिये मजबूर हैं। 1992 में बनी चेलुयी फिल्म  गिरीश कर्नाड औऱ सोनाली कुलकर्णी स्टारर ऐसी  फिल्म है जो बेहद अलग है जिसमें एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके पास ऐसे मैजिकल पावर्स हैं जिसकी वजह से वो लड़की से पेड़ बन जाती है और उस पेड़ की डाल टूट जाने पर उसके दर्द को दिखाया गया है कि कैसे एक इंसान को जब चोट लगती है तो कितना दर्द होता है वैसे ही पेड़ पौधे भी  होते हैं उन्हे भी तकलीफ होती है उन्हे भी अगर काट दिया जाए तो वही दर्द होता है वो भी इंसानों की ही तरह है।     

Earth Day: बॉलीवुड में कई एसे डायरेक्टर हुए हैं जिनकी फिल्मों में प्रकृति के सौन्दर्य को बेहद खूबसूरती से दिखाया गया है अगर पुरानी फिल्मों की बात करें तो पहले सीनिक ब्यूटी का बहुत महत्व था। लेकिन आज की फिल्मों की बात करें तो  सबसे पहला नाम यश राज का आता है  औऱ उसके बाद  मणिरत्नम का नाम जिनकी फिल्में अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिये ही जानी और पहचानी जाती हैं।

Earth Day: पुरानी फिल्मों की बात करें तो उसमें प्रकृति को हमेशा से खूबसूरती और प्रेम से जोड़ कर दिखाया गया है जिनमें बिमल दा की फिल्में खासतौर से शामिल हैं। जिनमें प्राकृतिक सौन्दर्य को ही दिखाया गया है। वहीं 50-70 के दशक में देखें तो कई ऐसी फिल्में बनी हैं जिनके गानों की खूबसूरती ही इसकी सीनिक ब्यूटी थी। जैसे कि अराधना फिल्म का वो खूबसूरत गाना ( गाना कौरा कागजथा मन मेरा )। वहीं यश राज की फिल्मों  की बात करें तो मानों प्रकृति का सौन्दर्य दिखाने के लिये ही  उनकी फिल्म बनी हो। राजकपूर की भी कई ऐसी फिल्में हैं।

Earth Day: जिनमें  प्रेम और प्रकृति को एक दूसरे से जोड़ कर दिखाया गया है जैसे प्रेम रोग का वो खूबसूरत गीत तो आप सभी ने सुना होगा या फिर राम तेरी गंगा मैली का वो गीत जिसमें पहाड़ों की खूबसूरती को दिखाया गया है। फिल्म जंगली और कश्मीर की कली में तो कश्मीर का जो सौन्दर्य दिखाया है आज भी आपको उन वादियों में खो जाने के लिये मजबूर कर देता है।

Earth Day: कुछ ऐसा ही जादू मणिरत्नम की फिल्मों में भी देखने को मिलता है जिसमें कश्मीर की खूबसूरती को बेहद सुरीले ढंग से फिल्माया गया है। वहीं गुरु ,बॉम्बे और  दिल से ऐसी कई  फिल्मे हैं जिसमें भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य को बड़े अलग- अलग तरीके से भी दिखाया गया है।

Earth Day: बॉलीवुड में ही नहीं हॉलीवुड में भी कई ऐसे फिल्में बनी हैं जिसमें पर्यावरण से जुड़ी समस्या और उसके महत्व को दिखाया गया है जो बेहद प्रभावशाली भी रही। जिनमें ‘अवतार’, ‘2012’, ‘द हैपनिंग’, ‘वॉल ई’, ‘हैप्पी फीट’, ‘द डे आफ्टर टूमॉरो’ कुछ ऐसी  ही फ़िल्में हैं, जिनमें पर्यावरण असंतुलन से पैदा होने वाले ख़तरों के प्रति आगाह किया गया है। 

Earth Day: James Cameron’s की अवतार पर्यावरण पर बनी ऐसी फिल्म है जिसमें प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर उससे होने वाले नुकसान और उसके बाद पड़ने वाले प्रभाव को दिखाया गया है। फाइंडिंग निम्मो  में भी प्रदूषण से होने वाले असर और इससे होने वाली हानि और जीव जन्तुओं पर पड़ने वाले असर को भी  निम्मों के ज़रिये दिखाया गया है। ये एक एनिमेटेड फिल्म है जो काफी इमोशनल भी करती है और प्रदूषण से होने वाले खतरे को दिखाती है।

इसी तरह से पेंग्विन सीरिज की हैप्पी फीट भी लोगों को ग्लोबल वार्मिग के खतरे से आगाह करती है कि किस तरह हम एक बड़े खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। The Day After Tomorrow 2004 American science-fiction disaster  फिल्म है। जिसे Roland Emmerich ने डायरेक्ट किया है जो पर्यावरण से जुड़ी समस्या और उनसे पड़ने वाले प्रभाव को दिखाती है । 

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