सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड जारी करने के केंद्र की मोदी सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली सीपीएम की याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस  एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय बेंच ने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया साथ ही 2007 से लंबित दो NGO की याचिकाओं को भी इसके साथ जोड़ दिया।

सरकार ने 2 जनवरी को चुनावी बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था और कहा था कि इसका मकसद चुनवी चंदे में पार्दर्शिता लाना है। केंद्र के फैसले को चुनौती देते हुए CPM ने याचिका में कहा है कि इस कदम से राजनीतिक भ्रष्टाचार और ज्यादा बढ़ जाएगा हालांकि सरकार ने दावा किया था कि इससे चुनाव में काले धन पर रोक लगेगी। याचिका में कहा गया है कि सीताराम येचुरी ने संसद में भी यह मामला उठाया था और सरकार द्वारा पेश प्रस्ताव में संशोधन का अनुरोध किया था लेकिन सरकार ने राज्य सभा की सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया।

याचिका में यह भी कहा गया है कि कॉरपोरेट दान की इस व्यवस्था में इस बात को गोपनीय रखने का प्रावधान किया गया है कि जिस राजनीतिक दल को चंदा दिया जाना है उसका नाम उजागर नहीं किया जाएगा। याचिका में तर्क दिया गया है कि ऐसी गोपनीयता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सूचना की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में वित्त अधिनियम 2017 को भी चुनौती दी गई है क्योंकि इसे मनी बिल की तरह लोकसभा में पेश किया गया और पास किया गया।

केंद्र सरकार ने अपने पिछले बजट में चुनावी बॉन्ड की घोषणा की थी और निर्वाचन आयोग ने शुरू में इस पर अपनी आपत्ति जताई थी। पिछले महीने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने भी कहा था कि चुनावी बॉन्ड की इस योजना से चुनावी चंदे में पारदर्शिता नहीं आएगी और इससे कॉरपोरेट और राजनीतिक दलों के बीच की सांठगांठ को तोड़ना मुश्किल होगा।

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