उत्तरप्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद बदलाव की उम्मीद जगी थी। लोगों में एक आस जगी थी और यही वजह थी कि लोगों ने बीजेपी के नाम पर भरोसा जताते हुए प्रचंड बहुमत की सरकार भी बनवा दी। योगी सरकार के आने के बाद जनता के हित में कई फैसले लिए भी जा रहे हैं लेकिन जनता की बुनियादी जरूरतों में से एक स्वास्थ सुविधा यूपी में आज भी बदहाल है। कम से कम इटावा और हाथरस से आई ख़बरें तो यही बयां कर रही हैं। इन दोनों घटनाओं में स्वास्थ सेवाओं की बदहाली साफ़ तौर पर नजर आती है। इटावा से आई खबर में जहाँ एक बेबस बाप अपने 15 साल के बेटे के शव को कंधे पर लेकर अस्पताल से घर गया वहीं हाथरस में एक बेटा अपने वृद्ध पिता की मौत के बाद पोस्टमार्टम के लिए 18 घंटे तक इंतजार करता रहा। इसके बावजूद जब अस्पताल प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली तो वह मजबूर होकर शव को कंधे पर ही उठाकर घर ले गया।

इटावा में शर्मसार हुई मानवता

family compel to carry the dead body on the shoulderइटावा अस्पताल में आज मानवता को शर्मशार करती तस्वीर सामने आई जब मुफलिसी (गरीबी) के बोझ से दबा एक बेबस बाप अपने मासूम बेटे पुष्पेन्द्र को मौत से बचाने के लिए पहुँचा लेकिन पुष्पेन्द्र की साँसों के साथ ही मानवता ने भी दम तोड़ दिया। इसके बाद एक मज़बूर बाप अपने मृत बेटे को अपने कन्धों पर लाद कर इटावा अस्पताल की लाचार व्यवस्था को ठोकर मारता हुआ अकेले ही घर की ओर चल दिया। व्यवस्थाओं का तामझाम दिखाने वाला यह सरकारी अस्पताल एक गरीब को शव वाहन भी न दे सका।

इस घटना पर जब इटावा के सीएमओ राजीव कुमार यादव और सीएमएस ए के पालीवाल से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बच्चे की मौत पहले ही हो चुकी थी और परिजनों ने अस्पताल प्रशासन से शव वाहन की मांग नहीं की थी। अगर मांग की जाती तो हम वाहन जरुर उपलब्ध कराते। उन्होंने डॉक्टरों की कमी की बात मानते हुए कहा कि गलती हुई है। जांच कर कारवाई की जाएगी। अब सवाल यह है कि ऐसा शव वाहन और व्यवस्था किस काम कि जहाँ एक बाप अपने बेटे की लाश को कंधे पर उठाकर ले जाए। क्या अस्पताल प्रशासन बिना मांगे यह सेवा उपलब्ध नहीं करा सकता था।

हाथरस में बेटे ने कंधे पर ढोया पिता का शव

इटावा के अलावा हाथरस में भी ऐसी ही एक इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना देखने को मिली। यहाँ जिला अस्पताल मे डॉक्टरों ने सम्वेदनहीनता की सभी हदें पार कर दी। इस घटना में एक मजबूर बेटा अपने पिता के मृत्यु के बाद 18 घंटे तक पोस्टमार्टम का इंतजार करता रहा लेकिन अस्पताल प्रशासन सोया रहा। इस दौरान बेटे के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह शव को लेकर अस्पताल से पोस्टमार्टम गृह और घर तक पहुंचे। बावजूद इसके अस्पताल प्रशासन ने कोई जिम्मेदारी नहीं ली और न ही एम्बुलेंस या शव वाहन की व्यवस्था की गई।

लाचार बेटे ने वहां मौजूद कुछ लोगों से पैसे लेकर शव को ई रिक्शे से पोस्टमार्टम गृह तक पहुँचाया इसके बाद वहां से घर तक वह शव को कंधे पर लाद कर ले गया। इस दौरान जिला अस्पताल में शव वाहन खड़ा रहा लेकिन डॉक्टरों या अस्पताल के किसी भी अन्य कर्मचारी ने इन मजबूर गरीबों की मदद की नहीं सोची। इस बाबत किसी भी डॉक्टर या अधिकारी ने पूछने पर कोई जवाब नहीं दिया और बचते नजर आये। ऐसे में सवाल यह है कि चिकित्सा विभाग के अफसर,और जिला अस्पताल के चिकित्सक कब तक ऐसे ही अपनी मनमानी करते रहेंगे?

इन दोनों ही मामलों में उत्तरप्रदेश की बदहाल स्वास्थ व्यवस्था की बदरंग तस्वीर दिख रही है। सबसे बड़ा सवाल है कि विकास के नाम पर चुन कर आई योगी सरकार क्या लोगों के लिए सबसे जरुरी सुविधाओं में से एक स्वास्थ को लेकर अभी तक अनभिज्ञ है? क्या इसमें सरकारी अधिकारी और मंत्रियों को सुधार की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है? सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब फिलहाल इतना ही है कि यूपी में सत्ता तो बदल गई लेकिन अभी भी अधिकारियों और अफसरों के काम करने का तरीका नहीं बदला।

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