उत्तर प्रदेश में गोमती रिवर फ्रंट पर फिर सियासत शुरू हो गई है…प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी द्वारा मामला दर्ज किए जाने के बाद फिर घमासान शुरू हो गया है…फिर से लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट मामला सुर्खियों में  है. पूर्व के अखिलेश यादव की सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में हुई धांधलियों की जांच सीबीआई भी कर रही है… अब आठ इंजीनियरों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज करके ईडी ने अधिकारियों में खलबली मचा दी है… अब डर लगने गया है कि कहीं जांच की आंच में वो भी नहीं जल जाएं… उम्मीद है कि कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे…

कब और कैसे हुई जांच?

योगी सरकार ने आते ही कहा था कि गोमती के गुनहगारों को सजा दिलाएंगे.. रिवर फ्रंट के नाम पर सरकारी खजाने को कंगाल करने वालों को किसी भी हाल में नहीं बख्शेंगे… शुरुआत में सरकार ने रिवर फ्रंट को लेकर खूब बवाल काटा लेकिन बाद में जांच के आदेश के बाद ठंडा पड़ गई… एक बार फिर कुछ इंजीनियरों पर एफआईआर दर्ज होने के बाद सियासत तेज हो गई है…लेकिन असली गुनहगार अब तक पर्दे के पीछे है… जिसे सरकार अब तक ढूंढ नहीं पाई है..गोमती रिवर फ्रंट सपा शासनकाल में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट था…लंदन की टेम्स नदी के तर्ज पर गोमती को बनाने की बात कही गई थी.. लेकिन आधे अधूरे काम को जल्दबादी में पूरे किए गए…बाद में पता चला कि इसमें पैसों को लेकर काफी अनियमितताएं हुई है…पूरे प्रोजेक्ट में कमीशनखोरी का खेल हुआ, तत्कालीन सत्ता के इशारे पर नियमों को धता बताकर मनचाहे ठेकेदारों को काम दिया गया, टेंडर की प्रक्रिया से लेकर सामान की खरीद में भ्रष्टाचार हुआ. जांच कराई गई…16 मई 2017 को राज्य सरकार को सौंपी गई…जांच रिपोर्ट में दोषी अफसरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की बात कही गई… फिर सीबीआई जांच की सिफारिश की गई… केंद्र सरकार ने 24 नवंबर को सीबीआई को केस दर्ज करने के लिए नोटिफिकेशन जारी की. 30 सितंबर, 2017 को सीबीआई ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की. ईडी ने गोमतीनगर पुलिस और लखनऊ सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो की एफआईआर को ही आधार बनाकर जांच शुरू की है. इसके बाद कई अधिकारियों के तोते उड़े हुए हैं… जांच की आंच में कई सफेदपोश भी आ सकते हैं.. इसलिए सपा के अंदर खलबली मची है… उधर कांग्रेस जांच के नाम पर कामबंद करने पर एतराज जता रही है…

क्या है पूरा मामला?

गौरतलब है कि रिवर फ्रंट कोनिखारने के लिए गोमती नदी के दोनों किनारों पर डायफ्राम वॉल के साथ खूबसूरत लैंडस्केपिंग करके साइकल ट्रैक, जॉगिंग ट्रैक, वाकिंग प्लाजा बनाया जाना था. लेकिन अफसरों ने खर्च करते वक्त लागत का ख्याल ही नहीं किया. प्रोजेक्ट के लिए फ्रांस से 45 करोड़ की लागत का फव्वारा मंगाया गया..चार करोड़ की लागत की वॉटर बस लाई गई. नतीजतन 656 करोड़ की लागत वाला प्रोजेक्ट बढ़कर 1513 करोड़ तक पहुंच गया… आरोप है कि इस रकम का 95 फीसदी यानि 1435 करोड़ खर्च कर दिया गया बावजूद इसके महज साठ फीसदी काम ही हो सका, भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेन्स का दावा करने वाली योगी सरकार की दलील है कि शुरुआती स्तर पर घोटाले की जांच उन्होंने की अब सीबीआई और ईडी अपने ढंग से कार्रवाई कर रहे हैं. फिलहाल ईडी ने प्रमुख सचिव सिंचाई को चिट्ठी लिखकर गोमती रिवर फ्रंट पर स्पेशल टेक्निकल ऑडिट कमिटी की रिपोर्ट मांगी है…अब ईडी उन अफसरों को भी समन भेजने जा रही है जो प्रोजेक्ट की कार्ययोजना से लेकर काम से जुड़े बैठकों में शामिल थे.. जांच में कई अफसरों की गर्दन फंसना तय है.

-एपीएन ब्यूरो

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