Guru Teg Bahadur Martyrdom Day: देश के इतिहास में भारत माँ के कुछ ऐसे वीर सपूत भी हुए हैं, जो धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटे। उन्हीं में से एक हैं सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर जी (Guru Teg Bahadur Ji), जिन्हें अक्सर हिंद की चादर कहा जाता है, जिसका अर्थ है भारत की ढाल। हर साल 24 नवंबर को तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर ने इंसानियत के कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुती दे दी थी।
अमृतसर में हुआ था जन्म
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म बुधवार 18 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। सिखों के छठवें गुरु, गुरु हरगोविंद जी उनके पिता थे। आठवें गुरु गुरु हरकिशन जी की असमय मृत्यु के बाद उनको नौवां गुरु बनाया गया। उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह दशवे गुरु बने थे। धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।
औरंगजेब ने गुरुजी का शीश कर दिया था कलम
सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी ऐसे साहसी योद्धा थे, जिन्होंने खुशी खुशी अपनी जान दे दी लेकिन इस्लाम कबूल नहीं किया। इन्होंने न सिर्फ सिक्खी परचम ऊंचा किया, बल्कि अपने सर्वोच्च बलिदान से सिख पंथ की भी रक्षा की। उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म कबूल नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी हिम्मत से सामना किया। गुरु तेग बहादुर जी के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और वह 24 नवंबर 1675 का दिन था, जब गुरु तेग बहादुर जी ने देश धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। उनके अनुयाइयों ने उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा बनाया, जिसे आज गुरुद्वारा शीश गंज साहैब के तौर पर जाना जाता है।
गुरुजी की 5 शिक्षाएं
महान कार्य छोटे-छोटे कार्यों से बने होते हैं।
सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती, इनमें जो मायने रखता है वो है साहस।
सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।
दिलेरी डर की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि यह फैसला है कि डर से भी जरूरी कुछ है।
जीवन किसी के साहस के अनुपात में सिमटता या विस्तृत होता है।
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