सालों से उलझा राम मंदिर का मुद्दा सुलझ गया है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। पर देश में अयोध्या की तरह की कई ऐसी जगह है जो बेहद ही विवादित है। जहां पर मंदिर होने का दावा  किया जा रहा है। चाहे श्री कृष्ण जन्मभूमि की बात करें या फिर, वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद की बात करे।

ज्ञानवापी मस्जिद एक बार फिर चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल गुरुवार को वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक की कोर्ट ने विवादित ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश जारी किए हैं। इसके साथ ही एक बार फिर यह विवादित मामला चर्चा का केंद्र बन गया है।

मस्जिद को लेकर हिंदू दावा करते है कि, विवादित ढांचे के फर्श के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थपित है। यही नहीं विवादित ढांचे के दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है।

बताया जाता है कि, काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने 1664 में इसे नष्ट कर दिया था और इसके अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने के लिए किया, जिसे मंदिर की भूमि के एक हिस्से पर ज्ञानवापसी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।

काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल हुआ था। इस याचिका कि जरिए ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विशेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास,रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं। मुकदमा दाखिल होने के कुछ दिनों बाद ही मस्जिद कमिटी ने केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) ऐक्ट, 1991 का हवाला देकर हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था।

बता दें कि, याचिकाकर्ता ने कहा था कि मंदिर का निर्माण लगभग 2,50 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। यहां पर लोग पूजा करते थे। विवादित स्थल के भूतल में तहखाना और मस्जिद के गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार का दावा किया जाता है। ज्ञानवापी मस्जिद के बाहर विशालकाय नंदी हैं, जिसका मुख मस्जिद की ओर है। इसके अलावा मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। स्कंद पुराण में भी इन बातों का वर्णन है।

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