कोरोना काल में सबसे अधिक प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है। वैसे ऑनलाइन स्कूल तो चल रहा है लेकिन पूरा भारत फोन और लैपटॉप इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं है साथ ही आर्थिक रुप से इतना मजबूत भी नहीं है कि फोन खरीद सके। भारत में अभी भी ग्रामीण इलाकों में कई जगह लोग फोन जैसी वस्तू से अनजान हैं।

कोरोना का प्रकोप जारी है। साथ ही जानकारों ने तीसरी लहर की भी चेतावनी दी है। तीसरी लहर बच्चों को अपना शिकार बना सकती है। स्कूल खोलने के लिए सरकार अभी भी विचार कर रही है। इस बीच आईआईटी प्रोफेसर, डॉक्टरों, अभिभावकों ने तीन राज्यों के सीएम को ओपन लेटर जारी करके स्कूलों को फिर से खोलने की मांग की है।

आईआईटी बॉम्बे में कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत प्रोफेसर भास्करन रमन ने महाराष्ट्र, दिल्ली और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों को खुला पत्र लिख स्कूल खोलने के लिए कहा है। यहां पर सिर्फ रमन ने ही पत्र नहीं लिखा है बल्कि इसमें आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी दिल्ली, विभिन्न डॉक्टर, पेशेवर और महाराष्ट्र, दिल्ली और कर्नाटक राज्यों के संबंधित माता-पिता भी शामिल हैं।

पत्र में लिखा है कि पिछले 16 महीने से देशभर में बड़े पैमाने पर स्कूल बंद है। साथ ही सीखने और विकास के नुकसान के मामले में स्कूल बंद होने की लागत बढ़ रही है, जबकि वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि सुरक्षा उपायों के साथ फिर से खोलना संभव है।

उन्होंने पत्र में आगे लिखा है कि 170 देशों में आंशिक रुप से स्कूल खुले हैं। कई देशों में पूरी तरह से स्कूल चल रहे हैं वहीं फ्रांस और स्वीडन की बात करें तो वहां पर पूरी तरह से स्कलू बंद नहीं हुए थे। कोरोना काल के समय भी कक्षाएं चल रही थी। वहां कोरोना का कोई बड़ा प्रकोप नहीं देखा गया है।

इन लोगों द्वारा पत्र में कहा गया कोरोना से बचाने के उपायों के साथ जोखिमों को दूर करने के लिए प्रयास होना चाहिए। साथ ही कहा कि रातोंरात स्कूल नहीं खोले जा सकते। इसके लिए सभी स्तरों पर विशेष रूप से स्थानीय परिस्थितियों के संबंध में सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता होगी।

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प्रो. गोविंदा ने बताया कि हर वर्ष करीब 30 प्रतिशत छात्र आठवीं कक्षा तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। हर साल करीब पांच फीसदी गरीब बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। कोरोना काल में ऐसे और खासकर गरीब छात्रों की परेशानी काफी बढ़ गई है। गरीब अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट का संसाधन ही नहीं उपलब्ध करा सके। इस स्थिति में गरीब माता पिता सोचते हैं कि एक बच्चे को ठीक से पढ़ाओ और दूसरे को छोड़ दो। लड़कियों के मामले में यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा दिखाई देती है। अनुमान के हिसाब से कोरोना काल में आठवीं कक्षा तक की 15 प्रतिशत लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया है। (इस पैराग्राफ को अमर उजाला डॉट कॉम से लिया गया है।)

वहीं कुछ दिनों पहले यूनिसेफ ने एक आंकड़ा जारी किया था। इस आंकड़े के तहत दुनिया भर में 2016 में 94 मिलियन बाल मजदूर थे। यह संख्या अब बढ़ कर 160 मिलियन हो चुकी है। दरअसल स्कूल बंद और बच्चें घर बैठे हैं ऐसे में लड़कों को काम पर लगा दिया जा रहा और लड़कियों की शादी कर दी जा रही है।

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