कई सालों से बंद पड़े बोफोर्स तोप मामले को कुछ लोगों द्वारा फिर से उछाला गया है। पब्लिक अकाउंट्स कमिटी (पीएसी) के कई सदस्यों ने इस मामले की दोबारा सुनवाई की अपील की है। गुरूवार को कैग की लंबित रिपोर्ट्स की जांच कर रही पीएसी की उप-समिति के सदस्यों ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा से सवाल किया है कि बोफोर्स की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में बंद हो जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं की गई? इस बाबत बीजेडी नेता भातृहरि माहताब ने सीबीआई से कहा कि वह सौदे के सिस्टमेटिक फेलियर और घूस लेने के आरोपों की फिर से जांच करे।

दरअसल साल 2005 में बोफोर्स घोटाले में दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की कार्यवाही निरस्त कर दी थी। तब से लेकर आज तक बोफोर्स मामले की जांच स्थगित है। सीबीआई भी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट नहीं गई। इसलिए बीजेपी नेता निशिकांत दूबे ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि जब बाबरी विध्वंस मामले में बीजेपी नेताओं के खिलाफ आरोप फिर से निर्धारित किए जा सकते हैं, तो फिर बोफोर्स मामले में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? वहीं सीबीआई के निदेशक ने उप-समति को बताया कि एजेंसी को इस सिलसिले में केंद्र सरकार से निर्देश लेने होंगे।

बता दें कि छह सदस्यीय पीएसी की रक्षा मामलों की उपसमिति बोफोर्स तोप सौदे पर 1986 की कैग रिपेार्ट के कुछ खास पहलुओं का अनुपालन नहीं किए जाने को लेकर गौर कर रही है। 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स  ने भारतीय सेना  को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकाई थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री के पद पर राजीव गांधी थे। इसके चलते 1980 के दशक में देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया था। 1989 में कांग्रेस को इसकी वजह से सत्ता भी हाथ से गंवानी पड़ी थी। कांग्रेस पर आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोकी ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की थी।

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