करीब 30 साल पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ और कद्दावर नेता कल्याण सिंह एक प्रमुख हिंदू नेता के तौर पर जाने और माने गए। हालांकि, उस घटना के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था। कल्याण सिंह ने राम मंदिर की नींव तो देखी ली पर शिखर देखने का सपना अधूरा रह गया। कल्याण सिंह का शनिवार शाम लखनऊ के एसजीपीजीआई में निधन हो गया। वह 89 साल के थे।

कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह के बारे में उनके पिता तेजपाल लोधी और माता सीता देवी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनका बेटा कभी इतना बड़ा बनेगा। कल्याण सिंह बचपन से ही जुझारू, संघर्षशील और हिंदुत्ववादी छवि के नेता रहे।

अपने कार्यो को लेकर सुर्खियों में रहे कल्याण सिंह
कल्‍याण सिंह अपने पूरे राजनीतिक सफर के दौरान अक्सर सुर्खियों में रहे है। मस्जिद विध्वंस मामले में अदालत में लंबी सुनवाई चली। इस बीच वह राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। राजस्थान के राज्यपाल का कार्यकाल पूरा होने के बाद सितंबर 2019 में वह वापिस लखनऊ आ गए और फिर से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। इस दौरान उन्होंने सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष मुकदमे का सामना किया और अदालत ने सितंबर 2020 में उनके समेत 31 आरोपियों को बरी कर दिया।


राजनीतिक सफर में उतार-चढ़ाव
कल्‍याण सिंह ने दो बार भारतीय जनता पार्टी से नाता भी तोड़ा। पहली बार 1999 में पार्टी नेतृत्व से मतभेद के चलते उन्होंने भाजपा छोड़ी। साल 2004 में उनकी भाजपा में वापसी हुई। इसके बाद 2009 में सिंह ने भाजपा के सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया और आरोप लगाया कि उन्हें भाजपा में अपमानित किया गया।


राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन
इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाकर अपने विरोधी मुलायम सिंह यादव से भी हाथ मिलाने से पीछे नहीं हटें। अलीगढ़ जिले के मढ़ौली ग्राम में तेजपाल सिंह लोधी और सीता देवी के घर पांच जनवरी 1932 को जन्मे कल्‍याण सिंह ने स्नातक तथा साहित्य रत्न की शिक्षा प्राप्त की और शुरुआती दौर में अपने गृह जनपद में अध्यापक बने।

ऐसे हुई राजनीति की शुरूआत
राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से जुड़कर कल्‍याण सिंह ने समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखा और इसके बाद जनसंघ की राजनीति में सक्रिय हो गए। वह पहली बार 1967 में जनसंघ के टिकट पर अलीगढ़ जिले की अतरौली सीट से विधानसभा सदस्य चुने गए और इसके बाद 2002 तक दस बार विधायक बने।


आपातकाल के दौरान 20 महीने की जेल…फिर आया राम मंदिर आंदोलन
आपातकाल में 20 माह जेल में रहे कल्‍याण सिंह 1977 में मुख्यमंत्री राम नरेश यादव के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने। 1990 के दशक में वह राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में उभरे और 1991 का विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया। पूर्ण बहुमत की भारतीय जनता पार्टी की सरकार में वह जून 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन छह दिसंबर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस के बाद उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।

सीएम रहते हुए, अफसरो को दी सही काम करने की छूट
कल्‍याण सिंह के नेतृत्व वाली सरकारों में मंत्री रह चुके बालेश्वर त्यागी ने ”जो याद रहा” शीर्षक से एक किताब लिखी है जिसमें उन्होंने कल्‍याण सिंह की प्रशासनिक दक्षता और दूरदर्शिता से जुड़े कई संस्मरण लिखे हैं। कल्‍याण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए अफसरों को सही काम करने के लिए पूरी छूट दी।


निर्दलीय चुनने के बाद फिर बीजेपी की वापसी
इस बीच, एक दिन के लिए लोकतांत्रिक कांग्रेस के जगदंबिका पाल ने भी मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी लेकिन अदालत ने उन्हें अवैध घोषित कर दिया और कल्याण सिंह 12 नवंबर 1999 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रहे। 2004 में कल्याण सिंह भाजपा के टिकट पर बुलंदशहर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार लोकसभा सदस्य बने। 2009 में उन्होंने एक बार पुन: भाजपा छोड़ दी और एटा लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय सांसद चुने गये लेकिन बाद में वह भाजपा में लौट आए।


नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने में कल्याण सिंह का भी योगदान
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जब भाजपा नेताओं का एक खेमा लामबंद हो रहा था तो कल्‍याण सिंह ने मोदी की वकालत की थी। मोदी के नेतृत्व में 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया।


5 अगस्त 2020 में एक टीवी चैनल का दिए इंटरव्यू उन्होंने कहा था कि ‘जब इतिहास लिखा जाएगा, तो उसमें 15 अगस्त, 26 जनवरी की तरह 5 अगस्त 2020 की तारीख भी अमिट हो जाएगी। इस दिन राम मंदिर के लिए भूमिपूजन हुआ। उसी पन्ने में ये भी लिखा जाएगा कि 6 दिसंबर को ढांचा चला गया था। ढांचे के साथ सरकार भी चली गई थी। मेरे जीवन की आकांक्षा थी कि राम मंदिर बने। मंदिर बनते ही मैं बहुत चैन के साथ दुनिया से विदा हो जाऊंगा’।

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