Kandahar Plane Hijack 1999: कंधार विमान अपहरण, जब दुनिया के सामने आया तालिबान का खौफनाक चेहरा

Kandahar Plane Hijack 1999: शाम करीब पांच बजे जैसे ही आईसी 814 इंडियन एयर स्पेस में दाखिल हुआ। तभी इसे पांच नकाबपोश आतंकवादियों द्वारा हाईजैक कर लिया। उनमें से आतंकी इब्राहिम अख्तर पिस्टल लेकर कॉकपिट में घुसा और कैप्टन देवी शरण को गनपॉइंट पर ले कर जहाज को अपने कंट्रोल में कर लिया।

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Kandahar plane hijack 1999 top news of the day
Kandahar plane hijack 1999

-Shweta Rai

Kandahar Plane Hijack 1999: तारीख 24 दिसंबर 1999 कंधार विमान अपहरण की वो तारीख़ जब दुनिया के सामने तालिबान का एक खौफनाक चेहरा सबके सामने आया। आतंकियों ने एक हफ्ते तक 178 यात्रियों को बंधक बनाए रखा और पांच देशों के चक्कर लगाये। 24 दिसंबर की वो खौफनाक शाम जब किसी को इस बात का एहसास ही नहीं था कि आने वाले समय में कुछ ऐसा होगा। जिसे देखकर लोगों कि सांसे थम जायेगीं.. जी हाँ हम बात कर रहे हैं, इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट संख्या आईसी 814 की, दिन शुक्रवार, घड़ी में 4.30 मिनट हुये थे और नेपाल में काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट संख्या आईसी 814 नई दिल्ली के लिए उड़ान भरने को तैयार थी। एक ऐसा एयरपोर्ट जहां पर सुरक्षा बहुत ही साधारण सी थी किसी ने नहीं सोचा था कि नेपाल के इस एयरपोर्ट से आतंक की इतनी बड़ी घटना घटने वाली है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कुछ ही दिन पहले इसी एयरपोर्ट पर एक संदिग्ध आदमी था जो एयरवेज के एक विमान के कॉकपिट तक पहुंच गया था। आईसी 814 में कुल 187 यात्री थे जिनमें कुछ विदेशी यात्री भी थे और 11 क्रू-मेंबर सवार थे और फ्लाइंग कमांडर कैप्टन देवीशरण ने इंदिरा गांधी एयरपोर्ट दिल्ली के लिए उड़ान भरी।

Kandahar Plane Hijack 1999 aniversary.
Kandahar Plane Hijack 1999.

Kandahar Plane Hijack 1999: पांच नकाबपोश आतंकवादियों ने प्‍लेन किया हाईजैक

Kandahar Plane Hijack 1999: ताकॉकपिट में उनके साथ थे फ्लाइट इंजीनियर अनिल जागिया और को-पायलट थे राजेंद्र कुमार, शाम करीब पांच बजे जैसे ही आईसी 814 इंडियन एयर स्पेस में दाखिल हुआ। तभी इसे पांच नकाबपोश आतंकवादियों द्वारा हाईजैक कर लिया। उनमें से आतंकी इब्राहिम अख्तर पिस्टल लेकर कॉकपिट में घुसा और कैप्टन देवी शरण को गनपॉइंट पर ले कर जहाज को अपने कंट्रोल में कर लिया। बाकी चारों आतंकवादियों ने प्लेन में सवार यात्रियों को अपने कब्जे में लेकर धमकाना और मारना शुरू कर दिया।कैप्टन देवी शरण ने चीफ़ हाईजैकर से पूछा, आप लोग क्या चाहते हैं ?

जवाब में हुक्म मिला, जहाज को लखनऊ के रास्ते से होकर लाहौर ले चलो। हालांकि कैप्टन देवीशरण ने अपनी सूझबूझ का सहारा लेते हुये, ये समझाने की कोशिश की कि प्लेन में लाहौर तक का तेल नहीं है और जानबूझकर विमान की रफ़्तार भी कम कर दी। लेकिन बदले में आतंकी ने कहा कि अगर नहीं ले चलोगे तो जहाज को बम से उड़ा देंगे। देवीशरण के पास अब प्लेन को लाहौर की तरफ़ मोड़ने के सिवा कोई रास्ता नहीं था लेकिन पाकिस्तान में लाहौर की तरफ से साफ़ कह दिया गया कि आप पाकिस्तान एयरस्पेस में नहीं घुस सकते हैं। यात्री बेहद डरे हुए थे, कि आगे क्या होने वाला है। शाम 6 बजकर 4 मिनट पर देवी शरण का संदेश सरकार तक पहुंचा, ‘प्लेन हाईजैक हो चुका है और हमारे पास सिर्फ आधे घंटे का फ्यूल बचा है, कृपया हमें लाहौर उतरने की अनुमति दिलाएं, वे हमें मार डालेंगे।’

उस समय की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और तब के तत्कालीन सिविल एविएशन मिस्निस्टर थे शरद यादव। उन्होंने मीडिया से कहा, ‘वो सब आसमान में हैं, और पायलट के सिवा कोई कम्युनिकेशन नहीं है, आतंकियों के पास AK-47 है या पिस्टल है कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है।’ मैं कोई अंदाजा नहीं लगा सकता, फ्लाइट में जो यात्री हैं, उनकी सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है।’

शाम करीब 6:30 बजे इस्लामाबाद में भारतीय हाईकमीशन ने विमान को लाहौर में उतारने की अनुमति मांगी, लेकिन इस बार भी निराशा ही हाथ लगी। तब तक देवी शरण हाईजैकर्स को विमान अमृतसर में लैंड कराने के लिए राजी करा चुके थे और ये एक अच्छा मौका था सरकार के लिये कि प्लेन चंडीगढ़ में उतरे और सरकार को प्लानिंग करने का वक्त मिल जायेगा।

Kandahar Plane Hijack 1999: एयर ट्रैफिक कंट्रोल से लगाई ईंधन की गुहार

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Kandahar Plane Hijack 1999.

प्लेन काफ़ी देर अमृतसर एयरपोर्ट के ऊपर मंडराता रहा और आखिरकार करीब 7 बजकर 2 मिनट पर लैंड हुआ। एयरपोर्ट पर अमृतसर पुलिस तैनात की गई। आतंकवादी पायलट्स को बार-बार टेकऑफ के लिए कह रहे थे और पायलट्स एयर ट्रैफिक कंट्रोल से ईंधन की गुहार लगा रहे थे। लेकिन दिल्ली सरकार की तरफ से निर्देश थे कि प्लेन को किसी भी हालात में अमृतसर में ही रोक कर रखा जाये। तय किया गया कि प्लेन को टेकऑफ का रास्ता रोका जायेगा और एटीसी ने ईंधन ले जाते हुये टैंकर के ड्राइवर के धीमे जाने को कहा। कॉकपिट से आतंकवादियों ने भांप लिया कि सरकार प्लेन को देर तक रोकना चाहती है और अनिल जागिया के सिर पर पिस्टल रखकर कैप्टन देवीशरण से टेकऑफ करने को कहा।

Kandahar Plane Hijack 1999: बिना फ्यूल लिए जहाज ने एक बार फिर उड़ान भरी
शाम 7 बजकर 50 मिनट हो रहे थे और कुछ देर बाद जहाज लाहौर के एयर स्पेस में था। लाहौर एयरपोर्ट की बत्तियां बुझा दी गई थीं भारत ने पाकिस्तान अथॉरिटी को एयरक्राफ्ट की लैंडिग के लिए मंजूरी देने के लिए कहा क्योंकि जहाज में कुछ मिनट का ही फ्यूल था। पाकिस्तानी कमांडो से घिरे लाहौर एयरपोर्ट को सील कर दिया गया और प्लेन की लैंडिग हुई। यहां प्लेन में फ्यूल डाला और फ्यूल लेने के बाद रात साढ़े दस बजे आईसी 814 ने दोबारा टेक ऑफ किया।

टेक ऑफ के कुछ मिनटों में ही जब जहाज में 25 साल के रुपन कात्याल ने बाथरूम जाने की परमिशन मांगी तो उन्हें चाकुओं से गोद कर मार दिया। जो अपनी पत्नी रचना सहगल के साथ हनीमून से वापस दिल्ली लौट रहे थे। लाहौर से टेक ऑफ करने के बाद विमान ने काबुल के लिए उड़ान भरी लेकिन काबुल और कंधार में रात के वक्त लाइट्स का सही इंतजाम न होने के चलते इसे दुबई डायवर्ट कर दिया गया।

आखिरकार 25 दिसंबर की सुबह करीब 3 बजे विमान दुबई में लैंड हुआ। यहां पर आतंकियों से ईंधन भरे जाने के बदले में 26 यात्रियों को रिहा करने पर समझौता हुआ। रिहा हुए ज्यादा यात्री बीमार, वृद्ध लोग एवं औरतें और बच्चे थे। यात्रियों को लाने मंत्री शरद यादव खुद उसी दिन दुबई पहुंचे साथ में रुपन कात्याल का पार्थिव शरीर भी दुबई में उतारा गया।

Kandahar Plane Hijack 1999: विमान ने अफगानिस्तान में काबुल की तरफ़ उड़ान भरी

इसके बाद विमान ने अफगानिस्तान में काबुल की तरफ़ उड़ान भरी लेकिन काबुल एयरपोर्ट की तरफ़ से विमान को कंधार ले जाने को कहा गया। 26 दिसंबर की ही सुबह करीब 8 बजे विमान ने कंधार हवाई अड्डे पर लैंड किया और इसके बाद शुरू हुई कड़ाके की ठंड। आतंक के साये में आईसी 814 विमान के यात्रियों को 6 दिन तक बंधक बनाये रखने की खौफनाक कहानी बेहद डरावनी है। इधर भारत में स्थिति को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विमान में बंधक बने यात्रियों के रिश्तेदारों को आपने आवास पर बुलाया और ये आशावासन दिया कि वो यात्रियों को कुछ नहीं होने देगें।

वहीं, दूसरी तरफ सरकार आतंकियों से समझौते के लिये बातचीत शुरू कर दी थी। ये बातचीत उस समय अफ़गानिस्तान की तालिबान सरकार ‘मुल्ला उमर’ और उसके विदेश मंत्री ‘वकील अहमद मुत्तवकिल’ के साथ हो रही थी। शुरुआत में जो तालिबानी सरकार की मांग थो वो कुछ इस तरह से थी। बंधक यात्रियों के बदले 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम, 36 आतंकवादियों को छोड़ने की मांग और आतंकवादी सज्जाद अफगानी की लाश सौंपने को कहा गया और जो तालिबानी मांग कर रहा था। वो कोई और नहीं आतंकी मौलाना मसूद का छोटा भाई था। शुरू- शुरू में उस समय के तत्कालीन विदेश और रक्षा मंत्री जसवंत सिंह किसी भी समझौते के खिलाफ थे लेकिन फिर जैसे-जैसे वक़्त बीता वो समझ चुके थे कि आतंकी कुछ भी कर सकते हैं। जब यह दिल्ली में बंधक यात्रियों से मिलने के लिये आये तो सभी ने उन्हें घेर लिया। विपक्ष भी सरकार पर लगातार हमलावर थी। चौथे दिन 27 दिसंबर को कंधार एयरपोर्ट पर अपहरण संकट को निपटाने के लिए कई सख्त और तेज़ तर्रार अफसरों के साथ क्रैक कमांडो का दस्ता वहां उतरा। पता चला कि तालिबानी लड़ाके पोजिशन लेकर खड़े हैं।

Kandahar Plane Hijack 1999: समझौते के लिए बात शुरू हुई

बातचीत के लिए वहां विवेक काटजू की अगुवाई में अजीत डोवाल और सीडी सहाय मौजूद थे। समझौते के लिये बातचीत शुरु हुई। तालिबान की तरफ़ से कहा गया कि मौलाना मसूद अजहर चाहिए। ये वही मौलाना मसूद अज़हर था जो हरकत उल मुजाहिदीन का मुखिया था और 1994 से जम्मू जेल में बंद था। दूसरा आतंकी था उमर शेख जो दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद था। तीसरा आतंकवादी था मुश्ताक ज़रगर जिस पर 40 से ज़्यादा हत्याओं का आरोप था। समझौते के लिये वहां तालिबान की तरफ से वो लोग थे जो केवल दहशत की भाषा ही समझते थे। इधर बंधक यात्रियों के लिये एक- एक दिन भारी पड़ रहा था जहाज के टॉयलेट्स ओवरफ्लो हो रहे थे। खाने का सामान भी नहीं था और सबके चेहरों पर मौत का सन्नाटा था।


28 दिसंबर को शास्त्री भवन में PIB की तरफ से जसवंत सिंह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। वहां मौजूद कुछ बंधकों के रिश्तेदार सवाल करने लगे कि जब मुफ्ती मोहम्मद की बेटी रुबइया के लिए आतंकवादियों को छोड़ा गया तो हमारे रिश्तेदारों के लिए क्यों नहीं,जो देना है दे दो। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि लोगों को समझाने के लिये करगिल युद्ध में शहीद स्कवाड्रन लीडर अजय आहूजा की पत्नी और शहीद लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के पिता कर्नल वीरेन्द्र थापर भी वहाँ पहुँचे लेकिन उन सभी की अपील बेअसर दिखी।

Kandahar Plane Hijack 1999: दो बातों पर सहमति बनी

उधर कंधार से आईबी के मुखिया अजीत डोवाल का फोन आया कि सर कुछ जल्दी कीजिए। इन का सब्र का बांध टूट रहा है। सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा था। 28 दिसंबर को सीसीएस की बैठक में 36 के बजाय 3 आतंकी मौलाना मसूद अज़हर, मुश्ताक अहमद ज़रगर और अहमद उमर सईद शेख को छोड़ने की बात तय हुई। अब सवाल अब ये था कि आखिर इन तीनों आतंकियों को लेकर कंदहार कौन जाएगा। यदि निर्णय लेना पड़े तो कौन है जो उस समय निर्णय ले सकता है। ऐसे में जसवंत सिंह आगे आये और वो तीनों आतंकियों को खुद लेकर कंधार गए। जसवंत सिंह अपनी किताब, A Call to Honour: In Service Of Emergent India में लिखते हैं कि मैंने तालिबानियों की सराहना की, उन्होंने जो किया उसके लिए उनका आभार व्यक्त किया, कम से कम उन्होंने समझौते के मुद्दे पर अपहरणकर्ताओं से बातचीत को आगे बढ़ाया था. दो बातों पर सहमति बन चुकी थी, एक कि तीनों आतंकवादियों की पहचान की जायेगी। दूसरा कि उसके बाद सभी बंधक यात्री नीचे उतरेंगे।

तारीख थी 31 दिसंबर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के लोग उन तीनों आतंकियों के रिश्तेदारों और दोस्तों को लेकर कंधार पहुंचें। उन्होंने तीनों आतंकियों को पहचाना और विमान में मौजूद अपहरणकर्ताओं को बताया गया कि सब ठीक है, भारत ने कोई चाल नहीं चली है। अपहरणकर्ताओं ने हाथ और खुशी के इशारे से यात्रियों को भी बता दिया कि वो कामयाब हुए हैं। इस सूचना के बाद यात्रियों को कुछ देर बाद एक-एक करके विमान से उतारना शुरू कर दिया गया। कई यात्रियों को चोटें लगी थी तो कई लोग हताश निराश भूखे प्यासे थे। पैसेंजर्स की रिहाई बाद उन्हें स्पेशल प्लेन से वापस भारत लाया गया। रिहाई के बाद मसूद अजहर ने 2000 में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद बनाया और 2001 में पार्लियामेंट में हुए आतंकी हमले को अंजाम दिया। जिसे उस वक्त पाकिस्तान ने अजहर के खिलाफ कार्रवाई करने और उसे भारत को सौंपने से इनकार कर दिया।

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