भारत में 28 नवंबर से चल रहा किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट 5 अप्रैल से सुनवाई करने वाला है। इससे पहले किसानों के मुद्दे को विस्तार में समझाने के लिए तीन सदस्यीय टीम ने 85 किसान संगठनों से बातचीत कर के कोर्ट को रिपोर्ट सौंप दी है। टीम ने कहा कि, रिपोर्ट तब तक सार्वजनिक नहीं होगी जब तक मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे इसपर सुनवाई और चर्चा शुरू नहीं करते।
कमेटी ने कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट
बता दें कि, किसानों के उलझते मुद्दे को देखकर सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था जिसमे कमेटी में कृषि विशेषज्ञ और शेतकारी संगठन से जुड़े अनिल धनवट, अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी शामिल हैं। दरअसल किसानों और सरकार के बीच 9 राउंड बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकलता देख कोर्ट ने कमेटी बनाई। कमेटी का काम है कि, वे किसानों से बात करें उनके मुद्दे को विस्तार में समझे और कोर्ट को रिपोर्ट पेश करे।
मामले में सुनवाई 5 अप्रैल के बाद होने की उम्मीद है जब अदालत होली की छुट्टी के बाद फिर से खुल जाएगी। समिति ने दो महीने के लिए तीन कृषि कानूनों पर कई किसान संगठनों के साथ विचार-विमर्श किया। सुप्रीम कोर्ट ने गत जनवरी में कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी और इस कमेटी का गठन किया था।
किसान कमेटी से हैं नाराज
हालांकि, किसान कोर्ट द्वारा गठित की गई कमेटी से नाराज हैं। उनका कहना है कि, इसमें सरकार के हिमायती लोग शामिल हैं। किसानों का कहना है कि, कमेटी से काम नहीं चलेगा बस काले कानून को रद्द कर दो हम घर वापस चले जाएंगे।
एक महीने बाद ही किसानों और सरकार के बीच हल को लेकर वार्ता शुरू हो गई थी। हर वार्ता में तारीख पर तारीख मिलती रहती थी। सरकार और किसान संगठनों के बीच करीब 9 राउंड बातचीत हुई थी लेकिन हल शून्य ही रहा। हालांकि इसमें सरकार ने किसानों की कुछ मांगो को स्वीकार कर लिया था। पर किसानो का अमह मुद्दा कृषि कानून को रद्द कराना है।
किसान आंदोलन ने पूरे किए 4 महीने
कृषि कानून के खिलाफ पंजाब, हरियाणा के किसान 4 महीने से दिल्ली की दहलीज पर आंदोलन कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि, मोदी सरकार द्वारा कृषि को लेकर बनाया गया नया कानून हमारे लिए जहर है। इसे सरकार को रद्द करना ही पड़ेगा। किसान मांगो पर अटल हैं। इनका एक ही नारा है, कृषि कानून रद्द करो, हम घर चले जाएंगे।
सरकार बीच के रास्ते पर विचार कर रही है। सरकार ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि, कृषि कानून किसी भी सूरत में रद्द नहीं होगा। वहीं किसान भी अपनी मांगो पर अटल हैं। अब देखना होगा कि, कोर्ट द्वारा गठित की गई कमेटी इस मुद्दे को सुलझाने में कितना कामयाब होती है।