सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा पाए कैदी को क्षमादान देने से इंनकार कर दिया। दरअसल हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाए कैदी को सात वर्ष की कैद के बाद राज्यपाल ने क्षमादान दे दिया था।

जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल द्वारा लिया गया कोई भी ऐसा फैसला जो अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देता हो, वह न्यायिक परीक्षण के दायरे से बाहर नहीं हो सकता है।

जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने सोमवार को पिछले साल सितंबर में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद-161 के अधिकार का प्रयोग पर हत्या मामले में दोषी ठहराए गए मार्कंडेय उर्फ अशोक शशि को दिए गए क्षमादान को निरस्त कर दिया।

पीठ ने राज्यपाल के क्षमादान के निर्णय को अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देने वाला बताया। साथ ही पीठ ने कहा कि राज्यपाल द्वारा इस तरह का लिया गया कोई भी निर्णय न्यायिक परीक्षण के दायरे से बाहर नहीं हो सकता।

पीठ ने पाया कि राज्यपाल द्वारा दोषी को दिए गए क्षमादान का कोई पुख्ता आधार नहीं है। वास्तव में पीठ ने इस बात पर बेहद आश्चर्य व्यक्त किया कि आखिर हत्या के दोषी को सात वर्ष की कैद के बाद कैसे क्षमादान दिया जा सकता है जिसने जमानत के दौरान भी चार आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया हो।

पीठ ने दोषी के वकील की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि उनका मुवक्किल 60 फीसदी विकलांग है, इसलिए उसे रियायत मिलनी चाहिए। पीठ ने कहा कि वह रियायत पाने का हकदार नहीं है।

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