गोरक्षा के नाम पर हिंसा के साथ साथ भीड़ की ओर से पीट पीट कर मार डालने यानी मॉब लिंचिग पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी हिंसा से जुड़ी तमाम याचिकाओं पर मंगलवार (17 जुलाई) को फैसला सुनाया कि देश में भीड़तंत्र को मंजूरी नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी कियो।

मॉब लिंचिंग की लगातार हो रही वारदातों पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि कोई भी अपने आप में कानून नहीं हो सकता है। देश में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को सख्त आदेश दिया कि वह संविधान के मुताबिक काम करें। अदालत ने कहा कि यह राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह इस तरह से हो रही भीड़ की हिंसा को रोके और मॉब लिंचिग की घटनाओं को रोकने के लिए कानून लाएं।

सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को लिंचिंग रोकने से संबंधित गाइडलाइंस को चार हफ्ते में लागू करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने जो दिशा निर्देश बनाए हैं उनके तहत

राज्य सरकार हर जिले में एसपी स्तर के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त करें जो स्पेशल टास्क फोर्स बनाए।

राज्य सरकारें उन इलाकों की पहचान करें जहां ऐसी घटनाएं हुई हों।

नोडल आफिस लोकल इंटेलिजेंस के साथ मीटिंग करें।

डीजीपी और होम सेक्रेटरी नोडल अफसर से मीटिंग करें।

केंद्र और राज्य आपस मे समन्वय बनाए रखें।

सरकार भीड़ की ओर से होने वाली हिंसा के खिलाफ प्रचार प्रसार करें।

ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 153 ए में केस दर्ज हो।

फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चले और संबंधित धारा में ट्रायल कोर्ट अधिकतम सजा दें।

राज्य सरकार भीड़ हिंसा पीड़ित मुआवजा योजना बनाएं और चोट के मुताबिक मुआवजा राशि तय हो।

सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कहा है कि वो सुझाव देते हैं कि अलग से इस पर कानून बने।

पिछली सुनवाई के दौरान एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से इंदिरा जय सिंह ने अनुच्छेद 15 का हवाला देते हुए दलील दी थी कि मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवजे के लिए धर्म और जाति आदि को भी ध्यान में रखा जाए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है और उसे अलग श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए। इस दौरान कोर्ट ने 6 राज्यों उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड और कर्नाटक को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी हिंसा को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाने जरूरी हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here