शरद पूर्णिमा यानी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शरद ऋतु की पूर्णिमा बहुत ही खास होती है। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात चंद्रमा अपने चरम पर रहता है यानी अपनी 16 कलाओं से युक्त होता है। इस पूर्णिमा की रात में कई प्रकार के पूजा अनुष्ठान और रीति-रिवाज का निर्वाह किया जाता है। इस दिन खीर का खासा महत्व होता है। लोग इस पूरी रात्रि में खीर बनाकर चांदनी में रख देते हैं, ताकि उसे प्रसाद के रूप में सुबह स्नान करके खाने के बाद निरोग हो पाएं। खीर के अलावा इस दिन के और भी मान्यताएँ हैं। कहा  जाता है कि चंद्रमा की रोशनी में, खुले आसमान में बैठकर सुई में 100 बार धागा डालने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और आंखें स्वस्थ्य रहती हैं।

इसक अलावा यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा पर रावण विशेष साधना करता था, जिससे वह सदैव युवा रहता था। रावण के नाभि में अमृत था। इस अमृत के वृद्धि के लिए वह शरद पूर्णिमा पर अलग-अलग दर्पण लगाकर चंद्रमा की रोशनी को नाभि पर केंद्रित करता था। यह एक तंत्र साधना थी।

खीर का महत्व इस दिन बड़ा ही रहता है। लेकिन इस दिन इसका इस्तेमाल बड़े ही खास तरीके से करना चाहिए। 24 अक्टूबर को चांद निकलने का समय है। शाम 05.58 बजे खीर बनाकर खुले आसमान में रखें।   खीर को मिट्टी या चांदी के बर्तन में ही बाहर रखें। साथ ही ध्यान दें कि खीर को सुरक्षित स्थान पर रखें, इसे कोई जानवर झूठा ना कर सके। खीर रात 12 बजने के बाद उठा लें और फिर प्रसाद के तौर पर खीर को बांटें और खाएं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here