Mulayam Singh Yadav | 8 बार विधायक और 7 बार सांसद रहे थे ‘नेताजी’; चुनावी अखाड़े में चला करते थे ये दांव…

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Mulayam Singh Yadav | जानिए 28 साल की उम्र में विधायक बनने वाले मुलायम सिंह यादव के 55 साल के सियासी सफर के बारे में - APN News
Mulayam Singh Yadav

नेताजी के नाम से मशहूर देश के रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार 10 अक्टूबर को 82 वर्ष की आयु में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. नेताजी लंबे समय से बीमार चल रहे थे और 22 अगस्त से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे.

21 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने इटावा से ही ग्रेजुएशन की, इसके बाद आगरा से एमए (राजनीति विज्ञान) की पढ़ाई की. कॉलेज के ही समय से मुलायम छात्र राजनीति में सक्रिय थे. साल 1963 में उन्होंने सहायक अध्यापक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी. मुलायम सिंह को कुश्ती लड़ने का भी शौक था.

मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने थे. लेकिन 1991 में जनता दल टूटा गया. हालांकि 1993 में उन्होंने फिर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई ये सरकार भी मायावती के साथ टकराव के बीच कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. 2003 में वो तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और 2007 तक इस पद पर बने रहे. मुलायम सिंह अपने तीन कार्यकालों के दौरान लगभग 6 साल 9 महीने तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

एक समाजवादी नेता के रूप में उभरते हुए, मुलायम ने जल्द ही खुद को एक ओबीसी के दिग्गज नेता के रूप में स्थापित कर लिया, और उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के घटते जनाधार के बीच अपने आप को लगातार स्थापित करते चले गए.

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08 बार के विधायक और 07 बार सांसद

55 साल के सियासी सफर में मुलायम सिंह यादव 28 साल की उम्र में 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के उम्मीदवार के रूप में इटावा की जसवंतनगर से पहली बार विधायक चुने गए थे, लेकिन 1969 में कांग्रेस के बिशंभर सिंह यादव से चुनाव हार गए. मुलायम 1967 से 1996 तक 08 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए. एक बार 1982 से लेकर 1987 तक विधान परिषद के सदस्य रहे.

मुलायम सिंह का राजनीतिक सफर

82 वर्षीय समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव इस समय लोकसभा में मैनपुरी से सांसद थे. अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह का सियासी जीवन काफी उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर गुजरा है. पहलवानी करने वाले और फिर उसके बाद शिक्षक ओर राजनीति जैसे पेशे में आने वाले मुलायम सिंह अपनी 55 साल की सियासी पारी में कई दलों में रहे.

लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से की थी राजनीतिक शुरूआत

1966 में पहली बार राममनोहर लोहिया के इटावा पहुंचने के बाद मुलायम सिंह को डॉ लोहिया का सानिध्य प्राप्त हुआ. 28 साल की उम्र में मुलायम ने 1967 में लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से उत्तर प्रदेश की जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा ओर जीत हासिल की.

1969 में मिली हार तो 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर जीता चुनाव

सन 1967 में लोहिया के निधन के साथ ही सोशलिस्ट पार्टी कमजोर पड़ी तो मुलायम सिंह यादव को भी 1969 के विधानसभा चुनाव में हार नसीब हुई. हालांकि इस दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले किसान नेता चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल भी उत्तर प्रदेश में मजबूती के साथ खड़ा हो रहा था. लगातार कमजोर होती संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को छोड़कर मुलायम सिंह भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए, इसके बाद वो 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव जीते और विधानसभा पहुंचे.

भारतीय लोकदल के प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी

साल 1974 में आपातकाल से ठीक पहले चौधरी चरण सिंह ने अपने दल का विलय लोहिया द्वारा बनाई गई ओर लगातार कमजोर हो रही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ कर लिया. इसी के साथ भारतीय क्रांति दल का नाम लोकदल रख दिया गया. लोकदल मुलायम सिंह के राजनीतिक सफर की तीसरी पार्टी रही. मुलायम ने इस पार्टी में रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई.

जनता पार्टी, आपातकाल ओर मंत्री पद

जून 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देशभर में आपातकाल लगा दिया गया था. इसके खिलाफ प्रदर्शन में शामिल होने क चलते मुलायम सिंह यादव की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम- मीसा (Maintenance of Internal Security Act- MISA) के तहत गिरफ्तारी हुई.

1977 में हटे आपातकाल के ठीक बाद देश में जयप्रकाश नारायण (जेपी) की जनता पार्टी (23 जनवरी 1977 को बनी थी जनता पार्टी) का उभार हुआ. चौधरी चरण सिंह के लोकदल का विलय इसी पार्टी में हो गया. उत्तर प्रदेश में 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत के बाद राज्य में प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी. 1977 में ही पहली बार मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश की राम नरेश यादव सरकार में सहकारिता एवं पशुपालन मंत्री बनाया गया. हालांकि, जनता पार्टी 1980 में ही टूट गई और इसके घटक दल एक-एक कर अलग हो गए.

जनता पार्टी (सेक्युलर) और दूसरी बार चुनावी हार

1980 में हुई जनता पार्टी की टूट के चलते कई पार्टियां बनीं. चौधरी चरण सिंह ने भी जनता पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी (सेक्युलर) बनाई. इसके साथ ही मुलायम सिंह भी चरण सिंह के साथ चले गए. 1980 के विधानसभा चुनाव में मुलायम को दूसरी बार हार नसीब गुई उन्हें कांग्रेस के बलराम सिंह यादव ने हराया.

लोकदल, लोकदल (अ) और लोकदल (ब)

 1980 में चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी (सेक्युलर) का नाम बदलकर लोकदल कर दिया गया. 1985 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुलायम लोकदल के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 1987 में जब चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद जब उनके बेटे अजीत सिंह और मुलायम में विवाद हुआ तो इसके बाद लोकदल के दो हिस्सों में बंट गया एक दल बना अजीत सिंह का लोकदल (अ) और दूसरा मुलायम सिंह के नेतृत्व वाला लोकदल (ब).

मुलायम सिंह ने 1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला ओर 1985-87 के बीच उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे.

फिर से जनता दल का गठन और सीएम की कुर्सी

विश्वनाथ प्रताप सिंह 1989 में जब बोफोर्स घोटाले को लेकर हो रहे हंगामे के बीच जब कांग्रेस से बगावत कर अलग हुए, तब विपक्षी एकता की कोशिशों को एक बार फिर से पंख लगे. इसी के साथ एक बार फिर जनता दल का गठन हुआ और मुलायम सिंह यादव ने अपने लोकदल (ब) का विलय इसी जनता दल में करा दिया. इस फैसले का मुलायम को काफी फायदा भी हुआ और वे 1989 में ही पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे.

प्रमुख विपक्षी चेहरे के रूप में उभरने के बाद, उन्होंने राज्यव्यापी क्रांति रथ यात्रा शुरू की. उनकी रैलियों में एक थीम गीत था, “नाम मुलायम सिंह है, लेकिन काम बड़ा फौलादी है….”

1991 में गिर गई सरकार

1990 में केंद्र की वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह, चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए. 1989 में मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह से जब अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई. 1991 में उत्तर प्रदेश में हुए मध्यावधि चुनाव में मुलायम सिंह जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े ओर जीते.

1996 से की केंद्र की राजनीति

मुलायम सिंह 1996 में केंद्र की राजनीति का रुख करते हुए उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे और एचडी देवेगौड़ा एवं इसके बाद आईके गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकारों में रक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया. हालांकि 1996 में मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार में था लेकिन कुछ नेताओं के विरोध के चलते वे इस पद तक नहीं पहुंच पाये.

1996 के बाद से अब (3 अक्टूबर 2022) तक मुलायम सिंह 07 बार लोकसभा (मैनपुरी, संभल, आजमगढ़, कन्नौज) का चुनाव जीत चुके थे.

समाजवादी पार्टी का गठन

कई दलों में रहने के बाद 4 अक्तूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की ओर पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल बना. मुलायम सिंह साल 1992 से लेकर 1 जनवरी 2017 तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी रहे. पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को 2016 में समाजवादी पार्टी का संरक्षक घोषित कर दिया था.

साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की. हालांकि इस बार उन्होंने खुद मुख्यमंत्री बनने की जगह अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव

मुलायम सिंह यादव अपने तीन कार्यकालों के दौरान लगभग 6 साल 9 महीने तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

1989 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी के बाहरी समर्थन के साथ जनता दल के नेता के रूप में मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश के 15वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. 1989 के बाद आजतक कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्ता में नहीं लौटी.

1993 में समाजवादी पार्टी के नेता के रूप में मुलायम सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, जब कांशीराम के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) उनकी सहयोगी बनी.

मुलायम सिंह ने 2003 में तीसरी बार समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता के रूप में मुख्यमंत्री की शपथ ली.

1985 के विधानसभा चुनाव में, मुलायम जसवंतनगर से लोक दल के टिकट पर चुने गए और विपक्ष के नेता बने.

कैसा रहा सीएम और रक्षा मंत्री के तौर पर कार्यकाल

मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, मुलायम गैर-उच्च जातियों के लोगों की बढ़ती राजनीतिक और सामाजिक आकांक्षाओं पर सवार थे. उन्होंने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे एससी / एसटी / ओबीसी उम्मीदवारों के लिए एक कोचिंग योजना सहित उनके सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं शुरू कीं.

मुलायम सिंह 1993 के चुनावों के बाद जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उनकी सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया.

2003 में शुरू हुआ उनका तीसरा सीएम कार्यकाल उनके पुराने सहयोगी स्वर्गीय अमर सिंह से अत्यधिक प्रभावित था, जिन्होंने उन्हें कॉर्पोरेट और फिल्मी हलकों से भी जोड़ा.

इसके साथ ही त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं में विभिन्न सामाजिक श्रेणियों के लिए आरक्षण सुनिश्चित किया. लेकिन वह अपराधियों को बचाने और अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में बढ़ावा देने के आरोप लगातार झेलते रहे.

रक्षा मंत्री के रूप में, मुलायम रक्षा प्रतिष्ठानों के पत्राचार में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे.

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