प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूरी दुनिया ने एकसाथ मिलकर रासायनिक हमलों पर प्रतिबंध लगाए। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय कानून भी बनाए गए। इसके साथ ही अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों पर इस्तेमाल किए गए परमाणु बम की ताकत पूरी दुनिया देख चुकी थी। ऐसे में सर्वशक्तिमान की रेस में अन्य देशों को भी परमाणु संपन्न होने की लालसा जग गई थी। रूस, फ्रांस, जापान, ब्रिटेन जैसे देशों ने जल्द से जल्द परमाणु शक्ति को अपनाना शुरू कर दिया और पूरी दुनिया में अपनी पैठ बनाई। इसी रेस में चीन भी दौड़ रहा था और वह भी परमाणु संपन्न देश बन गया। पूरे एशिया में चीन का दबदबा कायम हो गया। ऐसे में भारत भी चुप बैठे सबकुछ देख नहीं सकता था। इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में यह आवश्यक हो गया था कि एक बार फिर भारत को अपनी ताकत को आजमा लेना चाहिए था।

भारत ने राजस्थान के पोखरण में 11 मई और 13 मई 1998 को पांच परमाणु परीक्षण किए। इस परीक्षण ने पूरी दुनिया को हैरान करके रख दिया। उस वक्त विदेश मंत्रालय में सेक्रेटरी (वेस्ट) थे ललित मान सिंह।

पहले के तीन परीक्षण 11 मई को 3 बजकर 45 मिनट पर किए गए। जबकि, 12 मई को बाकी दो परीक्षण हुए। यह परीक्षण विदेश सचिव के. रघुनाथ की तरफ से अपने अमेरिकी समकक्षीय को यह भरोसा देने के बावजूद किया गया कि भारत की परमाणु परीक्षण करने का ऐसा कोई इरादा नहीं है। मानसिंह ने याद करते हुए कहा- “यह परीक्षण पूरी तरह से गुप्त था। सिर्फ पांच लोग ही इस बारे में जानते थे। जाहिर तौर पर मैं या फिर विदेश सचिव उन पांचों में शामिल नहीं थे।”

बता दें कि इस तरह 1974 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुए पहले परमाणु परीक्षण के 24 साल बाद भारत एक बार फिर दुनिया को बता रहा था कि शक्ति के बिना शांति संभव नहीं है। इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण का कोड ‘बुद्ध मुस्कुराए’ रखा था, तो अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे ‘शक्ति’ का नाम दिया। पोखरण-2 के बीस साल होने का मतलब यह भी है कि आज इसके बारे में वह नौजवान पीढ़ी भी चर्चा करेगी, जो तब पैदा नहीं हुई थी।

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