पदोन्नति में आरक्षण के मामले पर केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है इस मामले के लिए जल्द ही सात जजों की संविधान पीठ का गठन किया जाये। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो इस पर विचार करेगा हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में SC/ST के लिए प्रमोशन में आरक्षण पर 2006 के अपने पूर्व के आदेश के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया ये मामला ‘क्रीमी लेयर’ लागू करने से जुड़ा हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 3 अगस्त से प्रोन्नति में आरक्षण पर सुनवाई शुरू करेगी। बुधवार (11 जुलाई) को सुनवाई के दौरान केंद्र के ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि एम नागराज के फैसले में बताई गई शर्तों की वजह से देश भर के कई विभागों में पदोन्नति का काम ठप पड़ गया है। के के वेणुगोपाल ने कहा कि सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ को इस मामले की तत्काल सुनवाई करनी चाहिए क्योंकि विभिन्न न्यायिक फैसलों से उपजे भ्रम के कारण रेलवे और सेवाओं में लाखों नौकरियां अटकी हुई हैं। अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि सिर्फ रेलवे में 43 हजार वैकेंसी हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि एक संविधान पीठ के पास पहले ही बहुत सारे मामले हैं और वो 7 जजों की संविधान पीठ बनाने पर विचार करेगा।

पिछले महीने इस मामले में जुड़े एक अलग मुक़दमे में केंद्र सरकार ने कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है। इसके बाद कैबिनेट की बैठक हुई थी और ये फैसला लिया गया था कि वैकेंसी को भरने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग आदेश जारी करेगा लेकिन अब अटॉर्नी जनरल का कोर्ट से सात जजों की पीठ के गठन करने की मांग से साफ हो गया कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पद्दोन्नति में आरक्षण को कभी भी हरी झंडी नहीं दी थी।

2006 में पांच जजों की पीठ ने एम नागराज केस में फैसला सुनाया था। इस में कहा गया था कि सरकार पदोन्नति में आरक्षण तभी दे सकती है जब उसके पास उस समाज के पिछड़ापन का सबूत देने के लिए आंकड़ा हो। पिछले साल 15 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ केवल ये देखेगी कि क्या 2006 के एम नागराज और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिए गए फैसले पर दोबारा विचार करने की जरूरत है या नहीं।

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