निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने आज एक फिर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार बताया है। चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने विस्तृत सुनवाई के बाद सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इससे पहले 3 अगस्त की सुनवाई में फैसले को सुरक्षित रखा गया था।

इस फैसले के द्वारा कोर्ट ने 1954 के एमपी शर्मा केस और 1962 के खड्ग सिंह केस में दिए गए फैसले को पलट दिया, जिसमें क्रमशः 8 और 6 जजों की संवैधानिक पीठ ने निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना था।

हालांकि, ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि निजता का अधिकार कुछ तर्कपूर्ण प्रतिबंध के साथ ही मौलिक अधिकार है। कोर्ट के मुताबिक, हर मौलिक अधिकार में युक्तियुक्त प्रतिबंध होते ही हैं। जीवन का अधिकार भी संपूर्ण नहीं है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय बेंच ने छह फैसले लिखे, लेकिन कोर्ट में सभी फैसलों का एक सारांश पढ़ा गया।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा ‘अगर किसी से कोई ऐसा सवाल पूछा जाता है, जो उसके प्रतिष्ठा और मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो वह निजता का मामला है।’ चीफ जस्टिस के मुताबिक, दरअसल स्वतंत्रता के अधिकार, मान-सम्मान के अधिकार और निजता के मामले को एक साथ कदम दर कदम देखना होगा। स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में मान-सम्मान का अधिकार है और मान सम्मान के दायरे में निजता का मामला आता है।

 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का प्रभाव देश के 134 करोड़ लोगों के जीवन और केंद्र सरकार के आधार योजना पर पड़ेगा। केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। इस फैसले के बाद अब कोई अपनी निजी जानकारी या फिर आधार के लिए बायोमैट्रिक जानकारी देने से इनकार कर सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। आधार के लिए सुप्रीम कोर्ट में अब अलग से सुनवाई होगी।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राइट टू प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 (ए) के तहत आता है। उन्होंने भी कहा कि आधार एक्ट वैध है या नहीं इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट की कोई छोटी बेंच करेगी।

आपको बता दें कि इसी 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर एक फैसले में कहा था कि इसे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा था कि बैंक खाते खोलने जैसी दूसरी सुविधाओं के लिए आधार को अनिवार्य करने से सरकार को नहीं रोका जा सकता है।

पिछले कुछ सालों से आधार की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं और कुछ मामलों में इन पर सुनवाई जारी है।

आइए एक नजर डालते हैं, अब तक आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कब और क्या-क्या कहा-

23 सितंबर, 2013

कुछ विभागों ने आधार को अनिवार्य घोषित करने वाले सर्कुलर जारी किए हैं। इस तथ्य के बावजूद आधार कार्ड नहीं बनवाये लोगों को इसका कोई नुक़सान नहीं होना चाहिए।

26 नवंबर, 2013

राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश आधार केस में पक्ष बने।

24 मार्च, 2014

आधार नंबर न होने की सूरत में किसी व्यक्ति को ऐसी किसी सुविधा से वंचित नहीं रखा जाएगा जिसका वह अन्य स्थिति में हकदार होता। ‘आधार अनिवार्य नहीं है’ ये बताने के लिए सरकारी विभाग अपने फार्म्स/सर्कुलर्स में संशोधन करें।

16 मार्च, 2015

हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों को 23 सितंबर, 2013 को दिए गए इस कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहिए।

11 अगस्त, 2015

  1. भारत सरकार रेडियो और टीवी सहित इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में बड़े पैमाने पर प्रचार करना चाहिए कि किसी नागरिक के लिए आधार कार्ड प्राप्त करना अनिवार्य नहीं है।
  2. किसी ऐसी सुविधा के लिए आधार कार्ड देना शर्त नहीं होगा जो सामान्य स्थिति में एक नागरिक को हासिल होती हैं।
  3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खासतौर पर खाद्यान्न, रसोई ईंधन जैसे केरोसिन के अलावा किसी और मकसद से प्रतिवादी (केंद्र और राज्य सरकार) इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे। आधार कार्ड का इस्तेमाल एलपीजी वितरण योजना में भी किया जा सकता है।
  4. आधार कार्ड जारी करते वक्त किसी व्यक्ति के बारे में यूनिक आइडेंटिफ़िकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईएइ) द्वारा प्राप्त की गई जानकारी का इस्तेमाल किसी अन्य मकसद से नहीं किया जाएगा। हालांकि आपराधिक जांच के मामलों में कोर्ट के आदेश से ऐसा किया जा सकता है।

15 अक्टूबर, 2015

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम (मनरेगा), राष्ट्रीय सामाजिक सहयोग कार्यक्रम (वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांगता पेंशन), प्रधानमंत्री जनधन योजना, और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से जुड़ी सुविधाओं को अपवादों की सूची में रखा गया है। हम भारत सरकार को हिदायत देते हैं कि 23 सितंबर, 2009 से इस कोर्ट के सभी पहले के आदेशों का सख्ती से पालन करे। हम ये भी स्पष्ट करेंगे कि आधार कार्ड योजना पूरी तरह से स्वैच्छिक है और जब तक कोर्ट इस पर कोई अंतिम आदेश नहीं दे देती है, इसे अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है।

14 सितंबर, 2016

15 अक्टूबर 2015 के आदेश को दुहराते हुए कोर्ट ने कई छात्रवृत्ति योजनाओं के लिए आधार को अनिवार्य करने के केंद्र और राज्य सरकारों के फ़ेसलों को पलट दिया।

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