SC/ ST एक्‍ट में संशोधन को लेकर दिए आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने सही बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये न्‍याससंगत है। लोगों को आसानी से क्‍यों गिरफ्तार किया जाना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में गिरफ्तारियों से पहले सिर्फ एक फिल्‍टर प्रदान किया है। शिकायत की जांच किए बिना गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए।

केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि कोर्ट इस तरह नया कानून नहीं बना सकता। ये उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा की क्यों कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर जीने के अधिकार को लागू नहीं कर सकता ? जस्टिस ए के गोयल ने कहा कि कोर्ट के दिए गए फैसले को गलत तरीके समझा जा रहा है। हमने कहा है कि FIR से पहले अफसर संतुष्ट हो कि किसी को झूठा नहीं फंसाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारा फैसला ये नहीं है कि FIR को दर्ज न किया जाए या फिर अपराध करने वालों को सजा न मिले। फैसले की कॉपी को ‘कोट’ करते हुए जस्टिस यू यू ललित ने कहा कि हमनें आदेश में कहा कि किसी को गिरफ़्तार करने से पहले जांच की जाए और अगर जरूरत हो तो ही गिरफ्तारी की जाए।

जस्टिस ललित ने कहा टाडा, पोटा जैसे कानूनों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है और न ही तुरंत जमानत का प्रावधान है। इसे समझा जा सकता है लेकिन SC/ ST एक्ट के मामलो में ऐसा नहीं है अगर जिसके खिलाफ शिकायत की गई है और गिरफ्तारी के बाद उसे अदालत में पेश किया जाता है तो वो जमानत के लिए योग्य हो जाता है। इस एक्ट में कुछ प्रावधान ऐसे भी हैं जहां केवल 6 महीने की सजा होगी ऐसे में अग्रिम जमानत क्यों नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमनें केवल एक फिल्टर लगया है ताकि गिरफ्तारी करने से पहले ये देखा जाए कि वो गिरफ्तार करने योग्य है या नहीं।

20 मार्च को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति उत्पीड़न निरोधक कानून के तहत आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके बाद केंद्र ने इस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है, 4 राज्यों ने भी पुनर्विचार याचिका दायर की है। अब मामले पर 16 मई को सुनवाई होगी।

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