युगों-युगों तक याद की जाने वाली है Shri Krishna और Sudama की सच्‍ची दोस्‍ती! जानिए गुरुकुल से लेकर गृहस्‍थ जीवन तक की कहानी

Shri Krishna: भगवान श्री कृष्ण और सुदामा बाल सखा थे।उन्होंने साथ-साथ विद्या अध्ययन भी किया लेकिन भगवान श्री कृष्ण और बलराम की शिक्षा मात्र 64 दिनों में ही पूरी हो गई। सुदामा को बहुत समय लग गया।

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Shri Krishna: आज फ्रेंडशिप डे है, यानी दोस्‍ती का दिन। दोस्‍त और दोस्‍ती से जुड़ी परंपरा वर्षों पुरानी है। बात अगर दोस्‍ती का हो, तो एक नाम हम सभी की जुबां पर हमेशा आता है, जो है भगवान श्रीकृष्‍ण जी के परम सखा सुदामा का। श्रीकृष्‍ण और सुदामा की दोस्‍ती की मिसाल कई युगों से जारी है और आगे भी जब तक विश्‍व रहेगा चलती रहेगी। आइये आपको बताते हैं बाल सखा श्रीकृष्‍ण और सुदामा की अमिट दोस्‍ती और प्रेम की कहानी।

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Shri Krishna: जानिए सुदामा के गरीब होने की कहानी

भगवान श्री कृष्ण और सुदामा बाल सखा थे।उन्होंने साथ-साथ विद्या अध्ययन भी किया लेकिन भगवान श्री कृष्ण और बलराम की शिक्षा मात्र 64 दिनों में ही पूरी हो गई। सुदामा को बहुत समय लग गया। एक बार एक चोर एक ब्राह्मण के घर से चने की पोटली चुराकर लाया लेकिन कुछ लोग उसके पीछे पड़ गए। जल्‍दबाजी में वह सांदीपनि गुरु के आश्रम से गुजरा और भागते- भागते वहीं उसके हाथ से चने की पोटली गुरु माता की रसोई के बगल में गिर गई।

जब वह चोर किसी भी प्रकार ब्राह्मणी के हाथ में नहीं आया तो उसने श्राप देते हुए कहा जो भी इस चने को खाएगा वह भयंकर गरीबी का शिकार हो जाएगा। अगले दिन गुरु माता ने श्री कृष्ण और सुदामा को जंगल से लकड़ी लाने के लिए कहा। अनजाने में चोरी की हुई चने की पोटली सुदामा को पकड़ाते हुए कहा जब भी भूख लगे तो इसे खा लेना।
दोनों मिलकर जंगल में लकड़ी लेने के लिए गए तभी वहां जोरों की बारिश होने लगी।

दोनों बारिश से बचने के लिए पास के दो अलग-अलग पेड़ों के ऊपर चढ़ गए। क्योंकि ब्रह्मज्ञानी महात्मा सुदामा जी को यह पहले से पता हो चुका था कि इस पोटली को खाते ही कोई भी गरीब हो जाएगा लेकिन गुरु माता के दी हुई पोटली को श्रद्धावश फेंक भी ना सके।

मन ही मन श्री कृष्ण के भले के लिए यह विचार करके पूरे चने खा गए कि मैं गरीब हूं तो हूं लेकिन मेरा मित्र गरीब नहीं होना चाहिए। इसी श्राप के फलीभूत होने पर सुदामा जी अत्यंत गरीब हो गए और भगवान कृष्ण, उनके ऐश्वर्य में तो दिन-रात वृद्धि होती गई।

Shri Krishna: अत्‍यंत दयनीय जिंदगी गुजार रहे थे सुदामा

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वयस्क होने पर दोनों की शादी हो गई।भगवान श्री कृष्ण द्वारका के महल में अपनी पत्नियों के साथ रहने लगे।वहीं सुदामा अत्‍यंत गरीबी में अपने परिवार के साथ झोपड़ी में रहने लगा।उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी थी। उन्हें हमेशा कई-कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता था। सुदामा हमेशा अपनी पत्नी को बताते कि श्री कृष्ण उनके बचपन के मित्र हैं और इसी बात को लेकर उनकी पत्नी भी उनसे हमेशा कहती कि यदि भगवान श्रीकृष्ण आपके मित्र हैं तो आप जाकर उनसे कुछ मांगते क्यों नहीं जिससे आपका भी कुछ भला हो जाए।

Shri Krishna: मुट्ठी भर चावल लेकर द्वारिका पहुंचे सुदामा

सुदामा अपने मित्र से कुछ भी मांगने के लिए कतई तैयार ना हुए। फिर एक दिन उनकी पत्नी ने कहा आप भगवान श्री कृष्ण से कुछ नहीं मांगना चाहते तो ठीक, लेकिन इतने वर्षों से उनसे मिले नहीं। कृपा करके एक बार उनसे उनसे मिल तो लीजिए। वह तो द्वारिकाधीश हैं उन्हें आने-जाने का कहीं समय नहीं मिलता लेकिन आप तो उनसे मिल सकते हैं। सुदामा को अपनी पत्नी की यह बात जंच गई और वे कुछ मुट्ठी भर चावल लेकर द्वारिका की यात्रा पर निकल पड़े।

करीब 6 महीने तक यात्रा करने के बाद द्वारिकापुरी पहुंचे और श्री कृष्ण के महल के बाहर खड़े होकर द्वारपाल से श्री कृष्ण को अपना संदेश देने को कहा कि उनका बचपन का मित्र आया हुआ है।

सुदामा से गरीब ब्राह्मण को देखकर वह द्वारपाल तो तनिक भी विश्वास नहीं कर पा रहा था, कि ऐसे व्यक्ति भी भगवान श्री कृष्ण के मित्र हो सकते हैं लेकिन संस्कार और नम्रता बस वह उन्हें कुछ नहीं कहा और सीधा जाकर भगवान कृष्ण को यह संदेश दिया।

द्वारपाल के मुख से सुदामा जी के आने की खबर सुनकर श्री कृष्ण खुशी के मारे उछल पड़े और पागलों की तरह दौड़ते दौड़ते सुदामा जी के पास तुरंत ही पहुंच गए और उन्हें देखते ही गले लगा लिया।

Shri Krishna: श्रीकृष्‍ण ने सुदामा के सारे घाव साफ किए

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Shri Krishna: इतने वर्षों बाद मिलने पर दोनों मित्रों की आंखों से आंसू छलक पड़े और वे दोनों प्रसन्नता के मारे एक दूसरे से कुछ बोल भी ना पा रहे थे।तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा को अपने महल में ले गए।

उन्हें नहलाया और धुलाया और स्वयं अपने हाथों से उनके सारे घाव साफ किए और सुंदर वस्त्र पहनाकर उनका उन्हें विश्राम करने को कहा। सुदामा विश्राम के नाम पर लेट हो गए लेकिन प्रसन्नता के मारे उन्हें विश्राम में भी तनिक आनंद नहीं आ रही थी। श्री कृष्ण बार बार सुदामा को मजाक मजाक में ही उलाहना देते कि तुम कैसे मित्र हो? अपनी शादी में भी मुझे नहीं बुलाया, तब सुदामा जी कृष्ण को जवाब देते अरे मित्र मेरी तो सिर्फ एक ही शादी हुई है तुम्हारी तो 16108 शादियां हुई हैं।तुमने मुझे भी तो मुझे एक बार भी बुलाने का नहीं सोचा। फिर दोनों ठहाका मारकर हंसने लगे।

फिर भगवान श्री कृष्ण ने एक-एक करके अपनी सभी पत्नियों से सुदामा जी को मिलवाया यह करते-करते सुदामा जी इतने थक गए कि थकान और अनिद्रा के कारण से श्री कृष्ण की सभी पत्नियों से मिलने से पहले ही बार बार बिस्तर पर लुढ़क जाते।

सुदामा जी को ऐसा आनंद कभी नहीं आया उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे वे धरती पर नहीं स्वयं वैकुंठ लोक में निवास कर रहे हैं, और ऐसा लगे भी क्यों ना जब स्वयं भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मणी उनके साथ थी तो फिर व्यक्ति को और किस बात की कामना होगी। किसी तरह फिर दिन गुजर गया और सब ने विश्राम किया।

इसी बीच सुदामा को याद आ रहा था कि उनकी धर्मपत्नी सुशीला ने उन्हें अपने देवर को भेंट करने के लिए चावल की पोटली दी थी, लेकिन सुदामा भगवान कृष्ण को इसे देने से संकोच कर रहे थे। क्योंकि यह उनकी नजर में बहुत ही तुच्छ भेंट थी और वह अपने परम मित्र को स्वादहीन चावल नहीं देना चाहते थे।

Shri Krishna:भगवान को मालूम था कि सुदामा उन्‍हें चावल देने से हिचक रहे हैं

Shri Krishna: भगवान श्रीकृष्ण प्रत्येक व्यक्ति के हृदय की सभी बात जानते हैं वे प्रत्येक व्यक्ति के संकल्पों एवं कामनाओं से अवगत हैं। इसलिए वे सुदामा के आने का पूरा कारण जानते थे। उन्‍हें मालूम था कि वे चावल उनके लिए प्रेमपूर्वक भेंट लाए हैं।

संकोचवश देने से हिचक रहे हैं अतः उन्होंने सुदामा को कई बार कहा मित्र भाभी जी ने मेरे लिए कुछ तो अवश्य भेजा होगा। जिसे तुम मुझसे छुपा रहे हो और खुद ही पूरा खा लेना चाहते हो लेकिन सुदामा जी बार-बार इस बात को टाल देते कि ऐसा कुछ भी नहीं है।श्रीकृष्ण ने मौका पाते ही सुदामा के कंधे पर लटक रही वह पोटली चुपके से छीन ली और उसे देखते हुए कहा यह क्या है मित्र ?

इससे पहले कि सुदामा कुछ बोल पाते तुरंत ही कृष्ण ने चावल की पोटली खोली और कहा, प्रिय मित्र तुम मेरे लिए इतना बढ़िया स्वादिष्ट चावल लाए हो और मुझसे अभी तक छिपा रहे थे।

उन्होंने झट से पोटली में से एक मुट्ठी चावल उठाए और मुंह में डाल लिए। इसी प्रकार उन्होंने दूसरी बार भी किया भगवान कृष्ण के ऐसा करते ही उन्होंने संपूर्ण संसार की ऐश्वर्य आदि सुदामा जी के घर में स्थापित कर दिया।भगवान कृष्ण को इस तरह चावल खाते देख सभी देवता घबरा गए यदि भगवान कृष्ण ने यह पूरा चावल खा लिया तो यह पृथ्वी तो जाएगी ही साथ में वह अपना बैकुंठ भी सुदामा को अर्पण कर देंगे।

इसी बीच लक्ष्‍मीस्‍वरूपा माता रुकमणी ने श्री कृष्ण का हाथ पकड़ लिया और कहा जब से सुदामा जी की शादी हुई है। तब से आपकी भाभी मेरी भाभी भी हुई ना तो इस स्वादिष्ट चावल पर सिर्फ आपका हक कैसे हो सकता है? यही कहते हुए उन्होंने झट से भगवान कृष्ण के हाथों से वे स्वादिष्ट चावल की पोटली छीन ली और स्वयं ही खा गई। देवी रुक्मणी के ऐसा करते ही समस्त दुर्लभ ऐश्वर्या सुदामा जी को स्वयं ही प्राप्त हो गए।

Shri Krishna: श्रीकृष्‍ण से विदा लेकर निकले सुदामा…….

Shri Krishna: जब सुदामा के अपने घर वापस लौटने का समय हो गया। वे अपने मित्र श्री कृष्ण से विदा लेकर चल पड़े। भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें विदाई की के समय कुछ भी नहीं दिया। सुदामा को इससे तनिक भी क्रोध नहीं हुआ और उन्होंने सोचा व्यक्ति थोड़ा धन आ जाने पर घमंड करने लगता है।

धन के लोभ के वशीभूत हो जाता है इसी से बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने मुझे कुछ भी नहीं दिया है।इस प्रकार विचार करके सुदामा धीरे-धीरे अपने निवास स्थान पर पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि प्रत्येक वस्तु आश्चर्यजनक रूप से बदल चुकी है और उनकी कुटिया के स्थान पर भव्य महल खड़ा है।

जिसमें अनेक बहुमूल्य रत्न लगे हैं।यह देख सुदामा को कुछ भी समझ नहीं आया। उन्होंने आसपास के लोगों से पूछना शुरू कि यहां पर मेरी कुटिया रहती थी यह था, वह था वह सब कहां गया।

महल के सेवकों को कुछ भी ना पता था कि यह व्यक्ति कौन है और कहां से आया है इसलिए उन्होंने इसकी खबर तुरंत ही सुदामा की पत्नी सुशीला को दी जो उस महल की मालकिन थी। सेवकों ने कहा महारानी जी यहां कोई एक दरिद्र ब्राह्मण आया है, कह रहा है कि यहां पर मेरी कुटिया थी यहां पर हम ऐसा करते थे, वैसा करते थे यह सब कहां गया।
यह सुनकर सुशीला अत्यंत खुश हो गईं और कहा वह कोई और नहीं बल्कि तुम्हारे महाराज ही हैं।

तुम सब जल्दी से उनकी आने स्वागत की तैयारियां करो। वे स्वयं अपने हाथों में आरती की थाली लेकर सुदामा के सामने आईं। वे सब कुछ समझ गए कि यह किसी और का नहीं बल्कि उनके मित्र श्री कृष्ण का ही सब किया धरा है। इसीलिए उन्होंने मुझे आते समय कुछ भी नहीं दिया कि मार्ग में मुझे परेशानी ना हो, अब सुदामा जी की आंखों से आंसू बहने लगे थे और वे दुखी मन से महल के बाहर निकल आए।

कहने लगे हे भगवान मैं क्या करूंगा इन सब का मुझे तो इन भौतिक वस्तुओं और ऐश्वर्या की तनिक भी चाह नहीं है, मैं तो केवल आपकी भक्ति में ही खुश रहना चाहता हूं। बड़े महल में नहीं रहना चाहता। सुदामा की इस प्रेम पूर्ण भक्ति को देखकर स्वयं श्रीकृष्ण वहां प्रकट हुए और कहा प्रिय सुदामा तुम तो मेरे सच्चे भक्त हो।
देखा जाए तो यही सच्ची मित्रता भी कहलाती है जो एक दूसरे को कभी भी संकट में नहीं देख सकते। एक सच्‍चा मित्र सदैव दूसरे मित्र की मदद को तैयार रहता है।

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