इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को 30 जनवरी तक  बूचड़खानों के संबंध में कानून में बदलाव करने का अंतिम मौका दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर सरकार निर्णय नही लेती तो कोर्ट याचिकाओं पर आदेश पारित करेगा।

दिलशाद अहमद और कई अन्य की याचिकाओं की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस डी बी भोसले और जस्टिस सुनीत कुमार की खण्डपीठ ने तीखी टिप्पणी की और कहा कि बूचड़खानों को बंदकर सरकार परोक्ष रूप से अवैध वध को बढ़ावा दे रही है। सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बताया कि सरकार वधशाला स्थापित करने के लिए कानून संशोधन करने जा रही है। कोर्ट ने इस पर कहा कि अध्यादेश लाया जा सकता है। सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जा रहा है। बूचड़खाना स्थापित करना स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है।

कोर्ट ने पूछा कि केंद्र और राज्य सरकार ने करोड़ों रूपये दिए उसका क्या किया गया। कोर्ट ने कहा कि सरकार लोगों के खाने के अधिकार की अवहेलना नहीं कर सकती।

इधर बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में नगर निगम और नगर पालिका प्रशासन द्वारा संचालित बूचड़खानों को बंद करने के लिए अध्यादेश के माध्यम से अधिनियम को संशोधन के प्रस्ताव को मजूरी दी गई। राज्य सरकार ने बताया कि बूचड़खानों का निर्माण शहर की सीमा से बाहर ही होगा। उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 और उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम-1916 में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन का प्रस्ताव पर कैबिनेट ने अपनी मुहर लगा दी।

इन अधिनियमों के तहत नगर निगम और नगर पालिकाएं बूचड़खानों का निर्माण, संचालन और निगरानी कर सकते थे लेकिन अब नगर निगम और नगर पालिका प्रशासन सिर्फ बूचड़खानों को रेगुलेट ही कर सकेंगे। वह न तो इनका निर्माण कराएंगे और न ही अपने स्तर से संचालन कर सकेंगे।

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