रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे के निजीकरण की संभावना से इंकार किया है। रेल मंत्री ने कहा कि रेलवे का निजीकरण नहीं किया जा सकता। इसका दायित्वा सरकार ही संभालेगी। रेल मंत्री का यह बयान ऐसा समय में आया है जब विपक्ष रेलवे के निजीकरण को लेकर सरकार पर हमला बोलता रहा है। कई बार रह रह कर ऐसी ख़बरें भी आती रही हैं जिनमे रेलवे के निजीकरण को लेकर बात की जाती रही है। ऐसे में रेल मंत्री का यह बयान इन सवालों के जवाब और अटकलों को विराम देने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है।

सुरेश प्रभु ने रेलवे के निजीकरण पर बोलते हुए कहा है कि भारत में रेलवे का निजीकरण नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि आम आदमी के हितों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता और सार्वजनिक सेवा दायित्व को सहन करना होगा। इस समय भारतीय रेलवे की सार्वजनिक सेवा दायित्व लगभग 30 हजार से 35 हजार करोड़ रुपये का है। भारत के अन्दर बड़ी संख्या में लोग इसका इस्तेमाल करते हैं और भारत में रेलवे आम आदमी के परिवहन के लिए अंतिम उपाय है। इसलिए रेलवे को यह जिम्मेदारी और बोझ उठाना ही पड़ेगा।

रेल मंत्री ने यह भी कहा कि विश्व के बहुत कम देशों में ही रेलवे का निजीकरण हुआ है। वह भी सीमित क्षेत्रों में। ऐसे में हम इसके बारे में नहीं सोच सकते। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया की क्या कोई निजी विमानन कंपनी किसानों के लिए अलग एयरलाइन्स की सुविधा उपलब्ध कराएगी?नहीं क्योंकि निजीकरण होने पर किराया से लेकर सुविधाओं तक में बढ़ोतरी होगी। जिसके वजह से आम आदमी की रेल यात्रा महंगी होगी। सरकार यह कतई नहीं चाहती। इसलिए हम निजीकरण के बारे में नहीं सोच रहे हैं और सस्ती यात्रा और जनसेवा ही हमारी प्राथमिकता है।

प्रभु ने रेलवे के लिए वर्ष 2016-2017 को चुनौतीपूर्ण साल बताया। उन्होंने कहा कि रेलवे के लिए यह बहुत ही कठिन साल रहा। शायद सबसे चुनौतीपूर्ण वर्षों में से एक साथ ही उन्होंने नीति आयोग से जनसेवा दायित्व के पहलू पर गौर करने को कहा है। प्रभु के इस बयान से साफ़ है कि भारतीय रेल फ़िलहाल सरकारी हाथों से ही संचालित होगी।

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