दिल्ली में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने का सपना देखा था। सपने को साकार करने के लिए उनकी सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन योजना भी चलाई। देखते ही देखते योजना ने अभियान का रूप ले लिया। सरकारी मदद से देश भर में घर-घर शौचालयों का निर्माण होने लगा। इस साल 2 अक्टूबर तक देश को खुले में शौच से मुक्ति वाला देश घोषित करने का था। लेकिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मिलीभगत कर ओडीएफ योजना को ऐसा पलीता लगाया है कि सरकार के इस कार्यकाल में तो ये सपना पूरा होता नजर नहीं आ रहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी स्वच्छ भारत मिशन के तहत निर्माण कराए गए इन शौचालयों से देश को खुले में शौच से मुक्ति मिले ना मिले। इन शौचालयों में शौच करने वाले लोगों को जीवन से मुक्ति मिलने के चांस जरूर बन जाते हैं। कहने को तो इन शौचालयों के निर्माण में बालू-सीमेंट और ईंट का इस्तेमाल किया गया है। बारिश से बचाव के लिए छत भी है। और नितजा को ढंकने के लिए दरवाजे भी लगाए गए हैं।

लेकिन निर्माण कितना घटिया स्तर का हुआ है ये साफ दिखाई दे रहा है। हाथ से छूने भर से प्लास्टर गिर रहे हैं। हाथ लगाने भर से टाइलें उखड़ जा रही है। साफ है शौचालयों के निर्माण के नाम पर खानापूर्ति की गई है। क्वालिटी के नाम पर धोखाधड़ी की गई है। सरकारी धन का जमकर बंदरबांट किया गया है। कहीं-कहीं तो साल भर से शौचालयों के लिए गड्ढे खोदे गए हैं। लेकिन निर्माण नहीं हुआ है।

समाज और सरकार की नजरों में धूल झोंककर जेबे भरने का ये खेल कुशीनगर जिले के नेबुआ नौरंगिया विकास खंड के पिपरा बुजुर्ग और विशुनपूरा विकाश खंड के नरचोचवा गांवों में खेला गया है। पिपरा बुजुर्ग ग्राम सभा में 68 शौचालयों के निर्माण के लिए लाभार्थियों के खाते में छह-छह हजार रुपये की पहली किस्त छह महीने पहले ही डाल दी गई।Swachh Bharat mission

सरकार ने सरकारी योजना के पैसे सीधे लाभार्थियों के खाते में डाले। लेकिन जिला पंचायती राज अधिकारी के कहने पर जिला पंचायत सदस्य गुड्डू सिंह द्वारा लाभार्थियों से पैसे लेकर शौचालयों का निर्माण शुरू कराया गया। छह महीने से ज्यादे का वक्त गुजर गया। 68 में से सिर्फ 10 शौचालयों का निर्माण भी पूरा नहीं हुआ। नरचोचवा गांव का हाल भी कुछ ऐसा ही है। दोनों ही गांवों में आधे अधूरे बने शौचालयों के निर्माण की गुणवत्ता भी घटिया है। ठेकेदारों ने लाभार्थियों से अलग से भी एक-एक हजार रुपये लिए थे। मजदूरों के रूप में उनसे काम भी कराया। इस बारे में अपना पक्ष रखने के लिए न जिला पंचायत सदस्य गुड्डू सिंह सामने आए और न ही जिला पंचायती राज अधिकारी ने फोन ही उठाया। बाद में पंचायती राज अधिकारी रास्ते में मिले तो खुद को पाक-साफ और निर्दोष साबित करते नजर आए।

साफ नजर आ रहा है कि शौचालयों के निर्माण की क्वालिटी क्या है। जैसा कि बताया जा रहा है जिला पंचायत अधिकारी ने खुद ग्रामीणों से ठेकेदार को पैसे दिलवाए। ऐसे में सवाल उठता है कि जांच कैसी और क्या होगी। और जांच करेगा कौन। अगर जांच जिला पंचायत राज अधिकारी ही करेंगे तो नतीजे क्या होंगे ये बताने की जरूरत नहीं। इसलिए जरूरी है कि इस गड़बड़ झाले की जांच आला अधिकारियों से कराई जाए। ताकि दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो सके।

एपीएन ब्यूरो

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