मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सीरिया की जेलों पर आधारित एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में सीरिया की राजधानी दमिश्क के नजदीक एक जेल में 13,000 लोगों की फांसी देने का जिक्र किया गया है। इस रिपोर्ट के आने के बाद सीरिया में मानवाधिकारों की स्थिति पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गए हैं। सीरिया की जेलों और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर आधारित इस रिपोर्ट से पहले भी वहां से ऐसी ख़बरें आती रही हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया की इस जेल में 2011 से 2015 के बीच ऐसे लोगों को फांसी दी गई है जो सरकार विरोधी माने जाते थे या राष्ट्रपति बशर–अल–असद के विरोध में शामिल रहे थे। “मानव कसाईखाना: सामूहिक फांसी और सैदनाया जेल में तबाही” नाम से छपी 48 पृष्ठों वाली यह रिपोर्ट सुरक्षाकर्मियों, बंदियों और न्यायाधीशों सहित 84 प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक दमिश्क के पास सैदनाया मिलिटरी जेल में कई बार सामूहिक फांसी की सजा दी गयी। अभी भी वहां मौत का खेल बदस्तूर जारी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वकील और ट्रायल के बगैर यहाँ केवल यातना देकर अपराध कबूल कराया जाता था।बाद में अपराधियों को फांसी की सजा दे दी जाती थी।
रिपोर्ट में जेल की खौफ़नाक कहानी बताने वाले लोगों के हवाले से लिखा गया है कि जेल से सप्ताह में दो दिन आधी रात के बाद 20 से 50 लोगों के समूह को यहाँ से यह कह कर ले जाया जाता था कि उन्हें किसी दूसरी जगह शिफ्ट किया जा रहा है। लेकिन उनका अंजाम मौत होती थी। इस पूरी प्रक्रिया में कैदियों की आँखों पर पट्टी बंधी होती थी। फांसी देने का काम काफी गुपचुप तरीके से होता था। यहाँ मारे गए लोगों को दमिश्क के बाहर सामूहिक कब्रों में दफन कर दिया जाता था। उनके परिजनों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती थी।
गौरतलब है कि इससे पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मार्च 2011 से देश में उत्पन्न हुए संघर्षों के बाद से करीब 17,700 लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट दी थी। इन लोगों की मौत सरकार की हिरासत में होने की बात भी कही गई थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इतने बड़े पैमाने पर कैदियों को फांसी देने को युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध बताया है। एमनेस्टी ने सीरिया सरकार पर बंदियों का बार बार उत्पीड़न करके और उन्हें भोजन, पानी एवं चिकित्सकीय देखभाल से वंचित रखके ‘तबाही की नीति’ अपनाने की बात भी अपनी रिपोर्ट में कही है। इस रिपोर्ट के बाद संस्था द्वारा संयुक्त राष्ट्र से जाँच की मांग भी की गई है।