मुस्लिम (Muslim) पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय, बिना कारण के और पहले से नोटिस दिए बगैर तलाक (talaq-ul-sunnat) देने के अधिकार को दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में चुनौती दी गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह प्रथा ‘मनमानी, शरिया विरोधी, असंवैधानिक, स्वेच्छाचारी और बर्बर’ है। याचिका में मांग की गई है कि तलाक-उल-सुन्नत के तहत पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को स्वेच्छाचारी घोषित किया जाए।
जनहित याचिका की तरह होगी सुनवाई
दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में पीड़ित महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस याचिका में उठाया गया मुद्दा जनहित से जुड़ा है। इसलिए इस मामले की सुनवाई जनहित याचिका की तरह की जाए। अब हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जनहित याचिका के रूप में 23 सितंबर को होगी।
बता दें कि याचिकाकर्ता महिला का प्रतिनिधित्व वकील बजरंग वत्स ने किया। इसमें आग्रह किया गया कि पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को स्वेच्छाचारी घोषित किया जाए। इसमें इस मुद्दे पर दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है। और निर्देश देने की मांग की गई है कि मुस्लिम विवाह महज अनुबंध नहीं है बल्कि यह दर्जा है।
28 साल की मुस्लिम महिला ने दायर की है याचिका
याचिका 28 वर्षीय मुस्लिम महिला ने दायर की है। जिसने कहा है कि उसके पति ने इस साल 8 अगस्त को 3 तलाक देकर उसे छोड़ दिया और उसके बाद उसने अपने पति को कानूनी नोटिस जारी किया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में फैसला दिया था कि मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा अवैध और असंवैधानिक है। अदालत के इस फैसले के बाद से तीन तलाक कानून के तहत सैकड़ों मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
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