अक्सर देखा जाता है जब चुनाव हो जाते हैं, तो उसके बाद राजनीतिक दलों की गतिविधियां थोड़ी थम सी जाती हैं। जब सदन चलता है, उस समय जरूर कुछ आवाजें उठती हैं, अन्यथा ज्यादातर माहौल शांत ही रहता है। लेकिन बिहार में सरकार बने अभी 9 महीने ही हुए हैं और हर तरफ वाकयुद्ध सुनने को मिल रहा है। सत्ता पक्ष दरबार लगाने में व्यस्त है तो प्रमुख विपक्षी दल राजद में लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप अपनों पर ही इतना गरम हैं कि संभाले नहीं संभल रहे। उन्हें अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और भाई तेजस्वी के निजी सचिव से परेशानी है।
फिलहाल तेजप्रताप के कारण लालू परिवार एक बार फिर से चर्चा में है। प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से शुरू हुए उनके हमले अब छोटे भाई तेजस्वी के निजी सचिव संजय यादव तक पहुंच गए हैं। जगदानंद सिंह के खिलाफ तेजप्रताप काफी दिनों से मुखर हैं। पिछले सप्ताह हिटलर कह दिया तो जगदानंद नाराज होकर हो गए थे। फिर लालू यादव और तेजस्वी से बात करने के बाद वे माने, लेकिन राजद छात्र अध्यक्ष पद पर तेजप्रताप के समर्थक को हटाकर किसी और को बैठा दिया। यह माना गया कि तेजस्वी के कहने पर ऐसा हुआ। हालांकि तेजस्वी ने भी स्पष्ट कर दिया कि जगदानंद को ही अधिकार है कि वे किसी को भी बैठाएं। जबकि तेजप्रताप का कहना है कि राजद छात्र की जिम्मेदारी लालू प्रसाद यादव ने उन्हें दी है, इसलिए जगदानंद को यह करने का अधिकार नहीं है।
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जगदानंद ने यह कहकर और भी आग लगा दी कि वे नहीं जानते तेजप्रताप कौन हैं। अब तेजप्रताप बिफरे हुए हैं, पार्टी संविधान का हवाला देकर जगदानंद को कोर्ट में घसीटने की बात कर रहे हैं। इस घटनाक्रम से राजद में सन्नाटा तो है लेकिन एनडीए मजा ले रहा है।
तेजप्रताप की बयानबाजी तेजस्वी को बर्दाश्त नहीं
राजनीतिक गलियारा इसे लालू परिवार में विघटन के रूप में देख रहा है। चर्चा है कि बड़ी बहन मीसा और तेजप्रताप का एक खेमा है और दूसरा तेजस्वी का। पार्टी पर तेजस्वी की पकड़ है और दूसरों के पास महत्वाकांक्षा। तेजप्रताप की आए दिन की कुछ न कुछ बयानबाजी अब तेजस्वी को भी बर्दाश्त नहीं हो रही है। इसलिए बुधवार को छात्र राजद में बदलाव तेजप्रताप के पर कतरने के लिए किया गया। साथ ही, यह मैसेज भी दिया गया कि पार्टी में अध्यक्ष का सम्मान है। इस कार्रवाई को तेजप्रताप अपने ऊपर हुआ हमला समझ रहे हैं। इसलिए उन्होंने तेजस्वी को तो कुछ नहीं बोला, लेकिन जगदानंद के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली। साथ ही, तेजस्वी के निजी सचिव संजय यादव को भी नहीं छोड़ा। उन्हें प्रवासी सलाहकार बताते हुए यह तक कह डाला कि वे तेजस्वी को क्या मुख्यमंत्री बनाएंगे, वो तो सरपंच बनाने लायक भी नहीं हैं। शुक्रवार को तेजस्वी से तेजप्रताप की मुलाकात में काफी बहस हुई और फिलहाल कोई निदान नहीं निकला।
सत्ता पक्ष दरबार लगाने में व्यस्त
इधर सत्तापक्ष इस समय जनता की चिंता में डूबा है। मुख्यमंत्री का जनता दरबार शुरू हो चुका है। भाजपा और जदयू के मंत्रियों के भी दरबार लगने लगे हैं। दरबारों के जरिए जनता की समस्याओं को सुनने और समाधान निकालने की सत्तारूढ़ दल की ललक बेवजह नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में विपक्ष की ओर से अफसरशाही का आरोप लगाया जा रहा था। चुनाव परिणाम में उम्मीद के अनुरूप सीटें न मिलने से इसे बल मिला। सत्ता मिलने के बाद आम लोगों की बात कौन कहे, सरकार के कई मंत्री सार्वजनिक जगहों पर बोलने लगे कि अफसर उनकी बात नहीं सुनते। नीतीश कैबिनेट के एक मंत्री मदन सहनी ने अफसरशाही से क्षुब्ध होकर इस्तीफे की घोषणा तक कर दी।