इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई जनप्रतिनिधि सदन में कैसा आचरण करे या जनता  को मूल कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने के कदम उठाने का निर्देश नही दे सकता। इसी के साथ कोर्ट ने मेरठ की महापौर सुनीता वर्मा को सदन में वंदेमातरम का सम्मान करने और शहर के लोगों को राष्ट्रगान के प्रति मूल कर्तव्यों के बारे में जागरूकता लाने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है।

यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डी बी भोसले और जस्टिस सुनीत कुमार की खण्डपीठ ने मेरठ के रमाकांत शर्मा की याचिका पर दिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि नगर निगम मेरठ सदन की कार्यवाही में वंदेमातरम गीत के समय महापौर और कुछ पार्षदों ने राष्ट्रगीत का अपमान किया। वह सीट पर बैठे रहे। राष्ट्रगीत देश की आजादी के आंदोलन का प्रेरणादायी गीत रहा है। राष्ट्रगान के समान ही उसका सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का दायित्व है। महापौर को राष्ट्रगीत का सम्मान करने का आदेश दिया जाय। याचिकाकर्ता का कहना था कि इस गीत का किसी संप्रदाय से कोई संबंध नहीं है। तमाम दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि ऐसा निर्देश नहीं दिया जा सकता और याचिका खारिज कर दी।

बता दें कि पिछले साल मेरठ में नगर निगम में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान वंदेमातरम गाने को लेकर हंगामा हो गया था। महापौर के शपथग्रहण समारोह के दौरान वंदे मातरम हुआ। इस दौरान निगम के कमिश्नर और सभासद राष्ट्रगीत के सम्मान में खड़े हो गए लेकिन मेयर सुनीता वर्मा मंच पर बैठी रहीं, जिसके बाद वहां हंगामा मच गया। इस पर बीएसपी महापौर सुनीता वर्मा ने कहा था कि संविधान में वंदे मातरम का उल्लेख नहीं है। सदन में वहीं होगा, जो संविधान में लिखा होगा।

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