‘पागलखाना’ में बाजार का असली चेहरा दिखाने का प्रयास करते हैं लेखक ज्ञान चतुर्वेदी

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”यह सोच सत्ता का भोलापन था, कमीनापन था काइयांपन, पता नहीं, पर यह स्पष्ट था कि सरकार बाज़ार के साथ मिल गई थी…”, लेखक ज्ञान चतुर्वेदी अपने उपन्यास ‘पागलखाना’ में ऐसे ही कई वाक्यों से समाज में पूंजीवाद, बाज़ारवाद और सरकार के बीच संबंध को एक पागलों की दुनिया के जरिए समझाने का प्रयास करते हैं।

ज्ञान चतुर्वेदी अपने उपन्यास ‘पागलखाना’ में सरकार और बाजार के कारण पागल हुए व्यक्तियों की बात करते हैं या उन चुनिंदा लोगों के बारे में बताते हैं जो बाजार को पहचान गए हैं। यह उपन्यास पढ़ते हुए आपको दार्शनिक कार्ल मार्क्स का क्रांतिकारी विचार याद आ सकता है, “कारण का हमेशा अस्तित्व होता है लेकिन इसका कारण हमेशा कारण ही नहीं होता।”

उपन्यास को पढ़ते हुए आप पाएंगे कि पागलों की परेशानियों का असली कारण जान पाना मुश्किल होता जा रहा है। ‘मुझे अब सपने नहीं आते’, जैसे झकझोर देने वाले वाक्यों से लेखक ने आम आदमी और बाज़ार के एक उपभोगी को सचेत किया है। इसके साथ ही यदि आपकी सोच बेहद गहरी और कभी ना खत्म होने वाले ख्यालों से भरी पड़ी है तो यह उपन्यास आपको अपनेपन का एहसास कराएगा।

जब आप इस उपन्यास को आधा खत्म कर चुके होंगे तब तक यह केवल पागलों की रोचक सोच को बयान करता हुआ दिखेगा। लेकिन आगे चलकर उपन्यास में आपको उन पागलों की कथा का एक ऐसा अंत मिलेगा जो कि अमूमन होता नहीं है। यानी ये उपन्यास पढ़ने वालों को एक ‘फुल सर्किल मोमेंट’ देगा।

जो लोग पूंजीवाद को जानते हैं या नहीं भी जानते उनको यह किताब बाज़ार का असली चेहरा दिखाने की कोशिश करती दिखती है। उपन्यास में एक पागल की कहानी से बाजारवाद को अच्छे से समझा जा सकता है। साइकेट्रिस्ट के पास जाते वक्त जब एक पागल उसे अपने ‘सपनों के हत्यारों’ में शरीक करता है वह दृश्य भयानक एवं रोंगटे खड़े करने वाला है।

पूंजीवाद के अलावा, लेखक अपने इस उपन्यास में अवसाद जैसे विषय पर भी बात करते हैं। अवसाद जिसे समाज में आमतौर पर एक मानसिक विकृति मान लिया जाता है। उन्होंने अपने उपन्यास में अवसाद होने को एक सामान्य प्रक्रिया बताया है।

अगर आप भी बाजार में अपनी अलग आवाज़ न सुने जाने से परेशान हैं तो ज्ञान चतुर्वेदी अपकी वो आवाज़ बनकर यह पागलखाना आप तक लेकर आए हैं। ज्ञान चतुर्वेदी अक्सर अपने उपन्यासों में समाज के असल चेहरे को व्यंग्य के माध्यम से दिखाते हैं लेकिन पागलखाना द्वारा वह उससे एक कदम आगे जाते हुए पाठक को सच्चाई से अवगत कराने की कोशिश करते हैं। यानी इस उपन्यास में लेखक का उद्देश्य पाठक को भावुक करने के साथ-साथ उसे सचेत करने का भी है।

किताब के बारे में-

उपन्यास : पागलखाना
लेखक: ज्ञान चतुर्वेदी
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
पेज संख्या : 270
मूल्य: 399 रुपये (पेपरबैक)

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